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This Article is From Aug 24, 2017

Movie Review: पॉवरफुल है मौत का पोस्टमैन 'बाबूमोशाय बंदूकबाज'

'डार्क हैंडसम हीरो' का कॉन्सेप्ट लेकर आने वाले नवाजुद्दीन सिद्दीकी की 'बाबूमोशाय बंदूकबाज' का रिव्यू...

Movie Review: पॉवरफुल है मौत का पोस्टमैन 'बाबूमोशाय बंदूकबाज'
नई दिल्ली: रेटिंगः 3.5
डायरेक्टरः कुषाण नंदी
कलाकारः नवाजुद्दीन सिद्दीकी, बिदिता बाग, जतिन गोस्वामी और दिव्या दत्ता

नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अपनी फिल्म ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ के जरिये ‘डार्क हैंडसम हीरो’ के कॉन्सेप्ट को बखूबी स्थापित किया है. फिल्म का सॉन्ग “पोस्टमैन हैं हम तो भैया, मौत की चिट्टी लाते हैं...” पूरी फिल्म पर सटीक बैठता है. कसी हुई कहानी, मजबूत कैरेक्टराइजेशन, देसी कनेक्ट और सीटीमार डॉयलॉग. कुल मिलाकर यही है ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज.’ फिल्म यह भी बताती है कि गुरु, गुरु होता है और चेला, चेला. फिल्म इश्क, धोखे और कत्ल की कहानी है. कुषाण ने फिल्म को बेहतरीन ढंग से बुना है. यह लगातार तीसरा हफ्ता है जब बॉक्स ऑफिस पर देसी फिल्म ने दस्तक दी है. इससे पहले 'बरेली की बर्फी' और 'टॉयलेटः एक प्रेम कथा' रिलीज हो चुकी हैं. 

Video: नवाजुद्दीन सिद्दीकी से उनकी एक्टिंग और असल जिंदगी की बातें



कितनी दमदार कहानी
कहानी बाबू बिहारी (नवाज) की है. जिसके लिए किसी को भी मौत के घाट उतारना चुटकी का काम है. वह जीजी (दिव्या दत्ता) के लिए काम करता है. लेकिन मनमौजी है और किसी की सुनता नहीं है. एक दुबे जी भी हैं जो वॉयरिज्म का शिकार हैं, और वे अपनी पत्नी को किसी और के साथ देखकर ही सुख पाते हैं. एक कॉन्ट्रेक्ट के दौरान बाबू की मुलाकात फुलवा (बिदिता) से होती है और दोनों को इश्क हो जाता है. फिर बाबू को अपना चेला मानने वाला बांके बिहारी (जतिन) उसकी जिंदगी में आता है. एक के बाद एक हादसा और सस्पेंस जो सामने आता है, सीट से उठने का मन नहीं करता है. ढेर सारे धोखेबाज और अकेला बाबू. फिल्म का अंत सनसनीखेज है. फिल्म में गालियों की भरमार है. सेक्स सीन हैं. लेकिन ‘ए’ सर्टिफिकेशन है, इसलिए ज्यादा चिंता की बात नहीं है. फिल्म के पहले हाफ में सीरियस कहानी हल्के-फुल्के अंदाज में चलती है. लेकिन दूसरा हाफ एकदम इंटेंस हो जाता है, और एक के बाद एक रहस्य खुलते हैं. लंबे समय बाद ऐसी फिल्म आई है जिसके दोनों पार्ट मजा देते हैं. 

एक्टिंग के रिंग में
नवाज ने सिद्ध कर दिया है कि वे अपने दम पर दर्शकों को बांधने की कूव्वत रखते हैं. उनकी डायलॉग डिलीवरी कमाल है. जिस नेचुरल ढंग से वे बोलते हैं, उससे लगता है कि वाकई स्टार्स की दुनिया में एक्टर के अपने मायने होते हैं. जब वे कहते हैं, ‘काला आजकल डिमांड में है’ मजा आ जाता है. फिल्म में नवाज के चेले बने जतिन सरप्राइज पैकेज हैं. वे ऐसे कैरेक्टर में हैं जिसको सिर्फ अपने से मतलब है. उन्होंने अच्छी एक्टिंग की है. बिदिता ने भी अच्छा साथ दिया है. बहुत ही कम फिल्मों में ऐसा होता है कि हीरोइन को जूते गांठते हुए दिखाया जाए. बिदिता ने बखूबी इस काम को कर दिखाया है. फिल्म में मजेदार फैक्टर तारा शंकर चौहान पुलिस अधिकारी है. उनके घर में बच्चों का ढेर, उनकी रिंग टोन और लोगों के नंबर सेव करने का तरीका बहुत ही अनोखा है. दिव्या दत्ता ने भी बेहतरीन और देसी नेता का अच्छा किरदार निभाया है. 

बातें और भी हैं
फिल्म में गाने ठूंसे हुए नहीं लगते हैं. जब भी आते हैं मजा आता है. कहानी के फ्लो को तोड़ते नहीं हैं. फिल्म की जान इसका देसीपन है. जिस तरह से कैरेक्टर गालियां देते हैं, मजाक करते हैं और स्वाभाविक ढंग से चीजों को पेश करते हैं, वह उत्तर भारत की जिंदगी को बखूबी बयान कर देती है. बाबू का कैरेक्टर बहुत मजबूत ढंग का है. फिल्म की एक बात है जो क्लिंट ईस्टवुड की फिल्म “ए परफेक्ट वर्ल्ड” से मिलती है, जो बाबू और बच्चे से जुड़ी है. हम इससे ज्यादा आपको नहीं बता सकते. फिल्म का बजट लगभग 5 करोड़ रु. है. लंबे समय बाद एक अच्छी कम्प्लीट फिल्म आई है, जो मजबूत-भारतीय सिनेमा की नजर से देखनी जरूरी है.

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