नई दिल्ली:
फिल्म 'लाली की शादी में लड्डू दीवाना' की कहानी लाली और लड्डू के इश्क़ की है. लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब कुछ वजह से लाली, लड्डू से नहीं बल्कि वीर से शादी करने का फैसला ले लेती है. लड्डू की भूमिका में विवान शाह हैं जबकि लाली की भूमिका में अक्षरा हासन और वीर के किरदार में गुरमीत चौधरी नजर आ रहे हैं. इसे त्रिकोणीय प्रेम कहानी भी कह सकते हैं साथ ही इस फिल्म में रिश्तों की अहमियत को बड़े ही अलग और अच्छे ढंग से दिखया गया है. फिल्म में प्यार है, थोड़े इमोशन हैं और काफी हंसी मजाक भी है.
बार-बार कहानी में फ्लेश बैक में जाना बुरा नहीं लगता क्योंकि इसकी पटकथा अच्छे से लिखी गई है जो कहानी को बांध कर रखती है. फिल्म का संगीत काफी अच्छा है और गानों को सुन्दर लोकेशन पर फिल्माया गया है. विवान शाह ने अच्छे अभिनय का जौहर दिखाया है जो उन्हें शाहरुख खान की फिल्म 'हैप्पी न्यू ईयर' में दिखाने का बिलकुल भी मौका नहीं मिला था. कमल हासन की छोटी बेटी अक्षरा हासन इस फिल्म में अपने किरदार में काफी मासूम लगी हैं. गुरमीत चौधरी, संजय मिश्रा, सौरभ शुक्ला, रवि किशन और दर्शन जरीवाला का अभिनय अच्छा है. मनीष हरिशंकर का अच्छा निर्देशन है.
फिल्म के दूसरे भाग में फिल्म थोड़ी सी धीमी या यूं कहें कि खींची हुई लगती है. क्लाइमेक्स से पहले डायलोगबाज़ी और क्लाइमेक्स में ड्रामा थोड़ा ज्यादा हो गया है. मांग में सिन्दूर भरने के सीन ने तो टीवी धारावाहिक की याद दिला दी जहां हर एंगल से मांग तक हाथ पहुंचाया जा रहा है मगर हाथ मांग तक पहुंच ही नहीं रहा. कई बार फिल्म में इस तरह की ड्रामेबाजी थोड़ी अटपटी लगती है. गाने अच्छे हैं मगर मुझे लगता है कि एक-दो गाने ने फिल्म की गति में रूकावट ला दी है.
ये एक पारिवारिक फिल्म है जिसे पुरे परिवार के साथ देख सकते हैं. इस फिल्म में मनोरंजन है और ये फिल्म बोर नहीं करती इसलिए इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार.
बार-बार कहानी में फ्लेश बैक में जाना बुरा नहीं लगता क्योंकि इसकी पटकथा अच्छे से लिखी गई है जो कहानी को बांध कर रखती है. फिल्म का संगीत काफी अच्छा है और गानों को सुन्दर लोकेशन पर फिल्माया गया है. विवान शाह ने अच्छे अभिनय का जौहर दिखाया है जो उन्हें शाहरुख खान की फिल्म 'हैप्पी न्यू ईयर' में दिखाने का बिलकुल भी मौका नहीं मिला था. कमल हासन की छोटी बेटी अक्षरा हासन इस फिल्म में अपने किरदार में काफी मासूम लगी हैं. गुरमीत चौधरी, संजय मिश्रा, सौरभ शुक्ला, रवि किशन और दर्शन जरीवाला का अभिनय अच्छा है. मनीष हरिशंकर का अच्छा निर्देशन है.
फिल्म के दूसरे भाग में फिल्म थोड़ी सी धीमी या यूं कहें कि खींची हुई लगती है. क्लाइमेक्स से पहले डायलोगबाज़ी और क्लाइमेक्स में ड्रामा थोड़ा ज्यादा हो गया है. मांग में सिन्दूर भरने के सीन ने तो टीवी धारावाहिक की याद दिला दी जहां हर एंगल से मांग तक हाथ पहुंचाया जा रहा है मगर हाथ मांग तक पहुंच ही नहीं रहा. कई बार फिल्म में इस तरह की ड्रामेबाजी थोड़ी अटपटी लगती है. गाने अच्छे हैं मगर मुझे लगता है कि एक-दो गाने ने फिल्म की गति में रूकावट ला दी है.
ये एक पारिवारिक फिल्म है जिसे पुरे परिवार के साथ देख सकते हैं. इस फिल्म में मनोरंजन है और ये फिल्म बोर नहीं करती इसलिए इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार.
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