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This Article is From Jul 29, 2011

रिव्यू : 'खाप' की स्क्रिप्ट है कमजोर

फिल्म 'खाप' हरियाणा की खाप पंचायत पर है जो ये मानती है एक ही गोत्र या खाप के लड़के-लड़कियां भाई-बहन के समान होते हैं।
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मुंबई: फिल्म 'खाप' हरियाणा की खाप पंचायत पर है। खाप पंचायत यानी 40 गांवों की पंचायत को मिलाकर बनी एक महापंचायत जो ये मानती है एक ही गोत्र या खाप के लड़के-लड़कियां भाई-बहन के समान होते हैं इसीलिए वो आपस में शादी नहीं कर सकते। रियल लाइफ में भी ऐसी शादी करने वाले कई जोड़ों को या तो मार दिया गया या फिर उन्हें अलग करके राखी बांध दी गई। बहरहाल, फिल्म मॉर्डन दिल्ली की लड़की रिया युविका चौधरी पर है जो एक कॉलेज टूर पर ऐसे गांव पहुंच जाती है जहां उसके सालों से बिछड़े हुए दादाजी ओम पुरी रहते हैं। रिया के पिता मोहनीश बहल ह्यूमन राइट्स कमीशन में काम करते हैं और उन्होंने अपनी बेटी को दादाजी के बारे में कभी कुछ नहीं बताया क्योंकि दादा खाप पंचायत के प्रेसिडेंट हैं और एक ही गौत्र में शादी करने वालों पर जुल्म ढा रहे हैं। पोती का रोमांस, दादा की ज्यादतियां और इंसानियत और फर्ज के बीच उलझे बेटे की कश्मकश को दिखाने की कोशिश की गई है इस फिल्म में लेकिन अफसोस कि कहानी को बहुत ही इम्मेच्योर ट्रीटमेंट दिया गया है। 'खाप' जैसी फिल्म बड़े गंभीर मुद्दे पर बनाई जाती है लेकिन इसे बनाने के लिए जिस गहरी और ठोस स्क्रिप्ट की जरूरत थी वो यहां नहीं दिखती। हालांकि ओम पुरी, मनोज पाहवा, मोहनीश बहल और गोविंद नामदेव ने अच्छी एक्टिंग की है। बाप-बेटे के बीच कुछ अच्छे इमोशनल सीन्स भी हैं। खाप वो मुद्दा है जो नई और पुरानी पीढ़ी दोनों को खींचता लेकिन डायरेक्टर अजय सिन्हा ने ये मौका गंवा दिया। शहरी युवाओं को सस्ते रोमांस और मसाला सांग्स परोसने के चक्कर में फिल्म की सीरियसनेस खत्म हो गई। खाप के लिए मेरी रेटिंग है 2 स्टार।

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खाप, रिव्यू, विजय विशिष्ठ
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