इरादा फिल्‍म रिव्‍यू: 'रिवर्स बोरिंग' जैसे अछूते मुद्दे को छूती अरशद वारसी और नसीरुद्दीन शाह की 'इरादा'

इरादा फिल्‍म रिव्‍यू: 'रिवर्स बोरिंग' जैसे अछूते मुद्दे को छूती अरशद वारसी और नसीरुद्दीन शाह की 'इरादा'

फिल्‍म 'इरादा' का एक सीन.

खास बातें

  • रिवर्स बोरिंग जैसे मुद्दे को छूकर बनी बॉलीवुड की पहली फिल्‍म
  • इरादा में अरशद वारसी और नसीरुद्दीन शाह के अभिनय ने डाली जान
  • इस फिल्‍म को हमारी तरफ से मिलते हैं 3 स्‍टार्स
नई दिल्‍ली:

इस हफ्ते बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हो रही फिल्‍मों में एक है 'इरादा'. अपर्णा सिंह द्वारा निर्देशित इस फिल्म में अहम भूमिका में नसीरउद्दीन शाह, अरशद वारसी, दिव्या दत्ता, सागरिका घाटगे, शरद केलकर और दिवाकर कुमार हैं.  'इरादा' के निर्माता फाल्गुनी पटेल और प्रिन्स सोनी हैं. इस फिल्‍म के निर्माता और निर्देशक दोनों ही 'इरादा' से अपने फिल्‍मी सफर की शुरुआत कर रहे हैं. ये फिल्म एक ईको-थ्रिलर है यानी वातावरण को मद्दे नजर रखते हुए कहानी को थ्रिलर का जामा पहनाया गया है.

'इरादा' की कहानी भठिंडा में घटती है जहां रिटायर्ड आर्मी अफसर परबजीत सिंह (नसीरउद्दीन शाह) अपनी बेटी रिया (रोमाना मोल्ला) के साथ रहता है और वो उसे सीडीएस की परीक्षा के लिए तैयार कर रहा है. लेकिन एक दिन उसे पता चलता है की रिया को कैंसर है जिसकी वजह इस प्रदेश का पानी, जो रिवर्स बोरिंग की वजह से यहां के पीने के पानी को दूषित कर रहा है. उन्‍हें पता चलता है कि रिया ही नही बल्की इस प्रदेश में ये बीमारी बुरी तरह से फैल चुकी है और फिल्म में इसके खिलाफ कई लोग खड़े होते हैं. लेकिन कौन हैं ये लोग और यह कैसे इस मुश्किल से निपटते हैं और इससे जुड़े कोर्पोरेट जगत और राजनीति का सामना कैसे करते हैं, यही देखने के लिए आपको ये फिल्म देखनी चाहिए.

ये फिल्‍म मनोरंजन के साथ-साथ आपको रिवर्स बोरिंग जैसे मुद्दों और उसके परिणाम से भी अवगत कराती है. साथ ही मैं इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक की तारीफ भी करना चाहूंगा जो फिल्म जगत के मायाजाल में नहीं फंसे और उन्होंने एक मुद्दे पर आधारित फिल्म बनाई. अच्‍छी बात यह है कि उन्‍होंने इसे पुरी ईमानदारी से अंजाम दिया है. अब बात करते हैं इस फिल्‍म की खामियों और खूबियों की.

पहले इस फिल्‍म की खामियों की बात करें तो, मध्यांतर से पहले फिल्म की लिखाइ मुझे कमजोर लगी फिर चाहे वो स्क्रिप्ट हो या स्क्रिनप्ले. खासतौर पर दिवाकर और सागरिका घाटगे वाला ट्रैक. इनके किरदार और दृश्य पैर जमाने से पहले ही उखड़ जाते हैं. दर्शक इन किरदारों से जुड़ ही नही पाते और न ही उनसे साहनभुति कर पाते हैं और इसी बीच दिवाकर का किरदार खत्म भी हो जाता है. ऐसे में दर्शक किरदार से जुड़ नहीं पाते. इसके अलावा फर्स्‍ट हाफ में कई सीन्स हैं जो चरम पर पहुंचने से पहले ही कट जाते है जिसकी वजह से वो पूरा दृश्य प्रभावहीन हो जाता है. कुछ जगह ऐसा लगता है कि लेखक और निर्देशक बिना भाव के अपनी बात कहने की जल्दी में हैं. इस सब के अलावा जहां-जहां फिल्म में स्पेशल इफेक्ट का इस्तेमाल हुआ है वहां साफ पता चलता है की यहां वीएफएक्स का इस्तेमाल हुआ है. मुझे यह भी लगता है कि 'रिवर्स बोरिंग' और बाकी तकनीकी शब्दों को आसान करने की जरुरत थी, ताकी जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते उन्हें रिवर्स बोरिंग की पूरी प्रक्रिया बेहतर तरीके से समझ आ जाए. ये थी इस फिल्‍म कमी खामियां और अब बात खूबियों की.

इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है इसका विषय जो फिल्म जगत के लिए तो नया है ही साथ ही ये दर्शकों को एक नए खतरे से सावधान करता है. ये फिल्म और इसका विषय रिवर्स बोरिंग जैसे खतरे की ओर सिस्टम-सरकार दोनों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करती है और यह भी बताती हैं कि अगर इस तरफ समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य भयावह हो सकता है. फिल्म की दूसरी खूबी हैं अरशद वारसी जो एनआईए ऑफिसर अर्जुन मिश्रा के किरदार में हैं. अरशद अपने अभिनय के दम पर बड़ी खूबसूरती से इस संजीदा विषय में भी हल्का कॉमेडी का तड़का लगा रहे हैं और इस फिल्‍म को बोझिल होने से बचा रहे हैं. लेकिन कॉमेडी के हल्‍के पुट के बाद भी वह कहानी या मुद्दे से कहीं नहीं भटके हैं. नसीर एक बार फिर अपने बहतरीन अभिनय से फिल्म में जान डालते हैं, उनकी और अरशद की जोड़ी 'इश्किया' और 'डेढ़ इश्कियां' की तरह मज़ाहिया तो नहीं है पर इन दोनों के सीन्स बेहद प्रभावशाली हैं.

वहीं दिव्या दत्ता और शरद केलकर का भी उम्दा अभिनय है. इन दोनों ने फिल्म के निगेटिव किरदारों को खूबसरती के साथ पर्दे पर उतारा है. मध्यातंर के पहले के आधे हिस्से के बाद फिल्म की लिखाई और निर्देशन दोनों में धार नजर आती है और फिल्म असरदार हो जाती है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी फिल्म के मर्म और विषय को और सहारा देती है. साथ ही मैं यहां एक और दृश्य का जिक्र करना चाहूंगा जिसमें कैंसर के मरीजों को रेल में ले जाते दर्शाया गया है. ये सीन आपका दिल दहला देता है. इसका फिल्मांकन काबिल-ए तारिफ है. तो जाएं और ये फिल्म जरुर देखे, इसके विषय के लिए और इसके संदेश के लिए. मेरी तरफ से इसे तीन स्टार्स.


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