80 के दशक का लोकप्रिय टीवी धारावाहिक 'महाभारत' जिसे देखने के लिए रविवार को जल्दी उठकर, नहा-धोकर टीवी के सामने बैठना लगभग हर घर का नियम बन गया था। कार्यक्रम शुरू होते ही महेंद्र कपूर की आवाज़ में 'महाभारत कथा' वाला टाइटल गीत और इसके बाद एक अंधेरी सी स्क्रीन पर आती थी 'समय' की आवाज़। पहली लाइन होती थी 'मैं समय हूं' जो इतनी लोकप्रिय हो गई थी कि इस वाक्य के शुरू होने से पहले शायद टीवी देख रहे बच्चे ही यह लाइन बोल देते थे। महाभारत के इस संस्करण के तमाम किरदारों ने खासी लोकप्रियता हासिल की और जहां तक सूत्रधार 'समय' की बात है तो कार्यक्रम के इस 'अदृश्य' किरदार को आवाज़ देने वाले शख्स भी इस सफलता का अंदाज़ा नहीं लगा पाए था।
समय को अपनी आवाज़ देने वाले कलाकार हरीश भिमानी भारत के दिग्गज वीओ (voice over) कलाकारों में से एक हैं। हाल ही में मराठी डॉक्यू-फीचर 'माला लाज वाटत नाही' जिसका हिंदी में अर्थ है 'मुझे शर्म नहीं आती' में सर्वश्रेष्ठ वोइस ओवर के लिए हरीश को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। एनडीटीवी से बातचीत में हरीश ने बताया कि किस तरह अवॉर्ड लेने के बाद एक पत्रकार दोस्त ने मज़ाक में उनसे पूछ डाला कि 'राष्ट्रपति से पुरस्कार लेते वक्त तुमने यह तो नहीं कहा ना कि मुझे शर्म नहीं आती...।'
तीन दिग्गजों के सामने हरीश
जहां तक महाभारत की बात है तो हरीश बताते हैं कि किस तरह बीआर चोपड़ा, राही मासूम रज़ा और पंडित नरेंद्र शर्मा के सामने पहली बार उन्होंने 'समय' के लिए अपनी आवाज़ दी थी, बगैर यह जाने की आखिर यह हो क्या रहा है। उस शाम को याद करते हुए हरीश ने कहा कि उनके पास महाभारत के कास्टिंग डायरेक्टर गुफी पेंटल (जिन्होंने शकुनी का रोल निभाया था) का फोन आया और उन्होंने बिना इधर उधर की बात किए सीधे हरीश को रात 10 बजे बी आर स्टूडियो पहुंचने के लिए कहा। हरीश ने कहा 'गूफी जी मैं सात बजे के बाद रिकॉर्डिंग नहीं करता। मेरी आवाज़ थक जाती है।' इस पर पेंटल ने कहा 'तू नखरे ना कर, बस सीधे आजा।'
पेंटल के कहने पर हरीश ठीक दस बजे स्टूडियो पहुंच गए जहां बी आर चोपड़ा कुर्ता और लुंगी में बैठे थे। उनके साथ हिंदी साहित्य के दो जाने माने नाम राही मासूम रज़ा और पंडित नरेंद्र शर्मा भी मौजूद थे। हरीश को बगैर ज्यादा कुछ जानकारी दिए 'समय' की स्क्रिप्ट दी गई और वह माइक के पीछे पहुंच गए। पहली बार में उनका अंदाज़ पसंद नहीं किया गया और रज़ा ने कहा 'बेटा यह तो डॉक्यूमेंट्री जैसा कुछ लग रहा है। ज़रा इत्मिनान से पढ़ो।' दो तीन बार फिर स्क्रिप्ट पढ़वाए जाने के बाद हरीश को जाने के लिए बोला दिया गया जिस पर वह थोड़ा निराश हो गए। हालांकि हरीश कहते हैं कि उन्हें यह बताया ही नहीं गया था कि आखिर महाभारत में 'समय' क्या है।
'आखिर यह समय है क्या...'
कुछ दिनों बाद पेंटल का फिर फोन आया और उनसे एक बार फिर स्क्रिप्ट पढ़वाई गई। इस तरह उन्हें बार बार स्टूडियो बुलाया जाने लगा लेकिन बात बनती नहीं लग रही थी। समय को लेकर भिमानी का अंदाज़ चोपड़ा और रज़ा को जम नहीं रहा था। हारकर भिमानी ने उनसे पूछा कि आखिर यह समय क्या है। रज़ा ने कहा 'बेटा यह महाभारत के समय की आवाज़ है।' इस पर हरीश ने परेशान होकर कहा 'यह समय की आवाज़ कैसी होती है और स्क्रीन पर क्या दिखाई देगा।' जवाब मिला - स्क्रीन पर कुछ नहीं होगा।
अपनी बात पूरी करते हुए हरीश बताते हैं 'इस पर काफी बहस और चर्चा के बाद मुझसे कहा गया कि हमें आवाज़ तो आपकी चाहिए लेकिन अंदाज़ आपका नहीं चाहिए। काफी सोचकर मैं माइक के पास गया और मैंने सोचा कि मैं कैसे नहीं बोलूंगा। बोलते वक्त अपने अंदाज़ में मैं महाभारत की भव्यता को तो ध्यान में रखूं लेकिन बोलूं कुछ इस तरह जैसे आम इंसान नहीं बोलता, कुछ ऐसा जो न आकाशवाणी है, न ईश्वर की आवाज़ है, बस...समय की आवाज़ है।' और इस सोच के साथ भिमानी ने रिकॉर्ड की 'समय' की वह आवाज़ जिसने टेलीविज़न और फिल्म की दुनिया में इतिहास रच दिया।
समय के लिए दिलीप कुमार
बताया जाता है कि सूत्रधार के लिए पहले दिलीप कुमार के नाम पर भी विचार किया गया था जो चोपड़ा कैंप के काफी करीब थे। लेकिन फिर तय किया गया कि इस काम के लिए किसी पेशेवर वीओ कलाकार को ही लिया जाए और कई सफल आर्टिस्ट की आवाज़ सुनकर रज़ा, चोपड़ा और शर्मा ने हरीश को चुना। हरीश बताते हैं कि रिकॉर्डिंग तो उन्होंने कर दी लेकिन उन्हें पता भी नहीं था कि कब महाभारत का पहला एपिसोड टेलिकास्ट हुआ।
विज्ञापन और टीवी की व्यस्ततम आवाज़ों में से एक थी हरीश की आवाज़ जिन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि 'मैं समय हूं' उनकी पहचान बनने जा रहा है। करीब 12-15 एपिसोड के बाद हरीश को पता चला कि महाभारत काफी लोकप्रिय हो गया है और उसमें समय की आवाज़ काफी पसंद की जा रही है। फिर धारावाहिक की सफलता से जुड़ी एक पार्टी में बीआर चोपड़ा ने हरीश को बताया कि किस तरह वह हमेशा से ही समय के लिए उनकी पहली पसंद थे। समय की लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा लीजिए कि म्यूज़िक कंपनी टी सीरिज़ ने 'समय' के राइट्स खरीद लिए थे।
समय को अपनी आवाज़ देने वाले कलाकार हरीश भिमानी भारत के दिग्गज वीओ (voice over) कलाकारों में से एक हैं। हाल ही में मराठी डॉक्यू-फीचर 'माला लाज वाटत नाही' जिसका हिंदी में अर्थ है 'मुझे शर्म नहीं आती' में सर्वश्रेष्ठ वोइस ओवर के लिए हरीश को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। एनडीटीवी से बातचीत में हरीश ने बताया कि किस तरह अवॉर्ड लेने के बाद एक पत्रकार दोस्त ने मज़ाक में उनसे पूछ डाला कि 'राष्ट्रपति से पुरस्कार लेते वक्त तुमने यह तो नहीं कहा ना कि मुझे शर्म नहीं आती...।'
राष्ट्रपति से पुरस्कार लेते हरीश भिमानी
तीन दिग्गजों के सामने हरीश
जहां तक महाभारत की बात है तो हरीश बताते हैं कि किस तरह बीआर चोपड़ा, राही मासूम रज़ा और पंडित नरेंद्र शर्मा के सामने पहली बार उन्होंने 'समय' के लिए अपनी आवाज़ दी थी, बगैर यह जाने की आखिर यह हो क्या रहा है। उस शाम को याद करते हुए हरीश ने कहा कि उनके पास महाभारत के कास्टिंग डायरेक्टर गुफी पेंटल (जिन्होंने शकुनी का रोल निभाया था) का फोन आया और उन्होंने बिना इधर उधर की बात किए सीधे हरीश को रात 10 बजे बी आर स्टूडियो पहुंचने के लिए कहा। हरीश ने कहा 'गूफी जी मैं सात बजे के बाद रिकॉर्डिंग नहीं करता। मेरी आवाज़ थक जाती है।' इस पर पेंटल ने कहा 'तू नखरे ना कर, बस सीधे आजा।'
पेंटल के कहने पर हरीश ठीक दस बजे स्टूडियो पहुंच गए जहां बी आर चोपड़ा कुर्ता और लुंगी में बैठे थे। उनके साथ हिंदी साहित्य के दो जाने माने नाम राही मासूम रज़ा और पंडित नरेंद्र शर्मा भी मौजूद थे। हरीश को बगैर ज्यादा कुछ जानकारी दिए 'समय' की स्क्रिप्ट दी गई और वह माइक के पीछे पहुंच गए। पहली बार में उनका अंदाज़ पसंद नहीं किया गया और रज़ा ने कहा 'बेटा यह तो डॉक्यूमेंट्री जैसा कुछ लग रहा है। ज़रा इत्मिनान से पढ़ो।' दो तीन बार फिर स्क्रिप्ट पढ़वाए जाने के बाद हरीश को जाने के लिए बोला दिया गया जिस पर वह थोड़ा निराश हो गए। हालांकि हरीश कहते हैं कि उन्हें यह बताया ही नहीं गया था कि आखिर महाभारत में 'समय' क्या है।
'आखिर यह समय है क्या...'
कुछ दिनों बाद पेंटल का फिर फोन आया और उनसे एक बार फिर स्क्रिप्ट पढ़वाई गई। इस तरह उन्हें बार बार स्टूडियो बुलाया जाने लगा लेकिन बात बनती नहीं लग रही थी। समय को लेकर भिमानी का अंदाज़ चोपड़ा और रज़ा को जम नहीं रहा था। हारकर भिमानी ने उनसे पूछा कि आखिर यह समय क्या है। रज़ा ने कहा 'बेटा यह महाभारत के समय की आवाज़ है।' इस पर हरीश ने परेशान होकर कहा 'यह समय की आवाज़ कैसी होती है और स्क्रीन पर क्या दिखाई देगा।' जवाब मिला - स्क्रीन पर कुछ नहीं होगा।
अपनी बात पूरी करते हुए हरीश बताते हैं 'इस पर काफी बहस और चर्चा के बाद मुझसे कहा गया कि हमें आवाज़ तो आपकी चाहिए लेकिन अंदाज़ आपका नहीं चाहिए। काफी सोचकर मैं माइक के पास गया और मैंने सोचा कि मैं कैसे नहीं बोलूंगा। बोलते वक्त अपने अंदाज़ में मैं महाभारत की भव्यता को तो ध्यान में रखूं लेकिन बोलूं कुछ इस तरह जैसे आम इंसान नहीं बोलता, कुछ ऐसा जो न आकाशवाणी है, न ईश्वर की आवाज़ है, बस...समय की आवाज़ है।' और इस सोच के साथ भिमानी ने रिकॉर्ड की 'समय' की वह आवाज़ जिसने टेलीविज़न और फिल्म की दुनिया में इतिहास रच दिया।
समय के लिए दिलीप कुमार
बताया जाता है कि सूत्रधार के लिए पहले दिलीप कुमार के नाम पर भी विचार किया गया था जो चोपड़ा कैंप के काफी करीब थे। लेकिन फिर तय किया गया कि इस काम के लिए किसी पेशेवर वीओ कलाकार को ही लिया जाए और कई सफल आर्टिस्ट की आवाज़ सुनकर रज़ा, चोपड़ा और शर्मा ने हरीश को चुना। हरीश बताते हैं कि रिकॉर्डिंग तो उन्होंने कर दी लेकिन उन्हें पता भी नहीं था कि कब महाभारत का पहला एपिसोड टेलिकास्ट हुआ।
विज्ञापन और टीवी की व्यस्ततम आवाज़ों में से एक थी हरीश की आवाज़ जिन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि 'मैं समय हूं' उनकी पहचान बनने जा रहा है। करीब 12-15 एपिसोड के बाद हरीश को पता चला कि महाभारत काफी लोकप्रिय हो गया है और उसमें समय की आवाज़ काफी पसंद की जा रही है। फिर धारावाहिक की सफलता से जुड़ी एक पार्टी में बीआर चोपड़ा ने हरीश को बताया कि किस तरह वह हमेशा से ही समय के लिए उनकी पहली पसंद थे। समय की लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा लीजिए कि म्यूज़िक कंपनी टी सीरिज़ ने 'समय' के राइट्स खरीद लिए थे।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं