वानी जयराम के कम्युनिटी पेज से ली गई तस्वीर
नई दिल्ली:
दिलकश आवाज की मलिका वाणी जयराम मशहूर प्लेबैक सिंगरों में शुमार हैं। वह सभी भाषाओं के गीत गायन में पारंगत हैं। सन् 1970 के दशक में अपना करियर शुरू करने वाली वाणी चार दशकों से मनोरंजन-जगत को अपनी मखमली आवाज से नवाज रही हैं। नई पीढ़ी भले ही उन्हें कम जानती है, मगर उनका दामन उपलब्धियों से भरा है।
तमिलनाडु के वेल्लोर में 30 नवंबर, 1945 को जन्मीं वाणी जयराम ने भारतीय सिनेमा में अपनी आवाज का ऐसा जादू चलाया, जो आज भी सभी के दिलों में गूंज रहा है। सन् 1970 के दशक के गाने आज भी किसी प्रेरणास्रोत से कम नहीं हैं। उन्होंने कई हिंदी फिल्मों के गीतों को अपनी मधुर आवाज दी है। फिल्म 'गुड्डी' में जया भादुड़ी (बच्चन) पर फिल्माया गया गीत 'बोले रे पपीहरा' ने उन्हें रातोंरात शोहरत दिलाई। यह गीत सुनकर कोई भी भ्रम में पड़ सकता है और एक झटके से कह सकता है, 'यह लता मंगेशकर की आवाज है।'
वाणी जयराम के कई निजी अलबम भी हैं। इसके अलावा उन्होंने देश और विदेशों के कई संगीत समारोहों की शोभा बढ़ाई है। वाणी संगीतकारों के परिवार में पली-बढ़ी हैं। छह बहनों में वह सबसे छोटी हैं, उनके तीन भाई हैं। घर की सबसे छोटी बेटी वाणी ने अपना पहला गाना आठ साल की उम्र में मद्रास ऑल इंडिया रेडियो से गाया।
वाणी जयराम ने कुड्डालोर श्रीनिवास आयंगर, टी.आर. बालासुब्रमण्यम और आर.एस मणि के अंतर्गत कर्नाटक संगीत का अध्ययन किया। उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत उस्ताद अब्दुल रहमान खान से सीखा। उन्होंने स्वर को अनमोल गीतों में ढालने की कला सीखी। उनकी शादी जयराम के साथ हुई और इसके बाद वह मुंबई में बस गईं।
सन् 1971 में हिंदी फिल्म में गाने का उनका सपना तब साकार हुआ, जब संगीतकार वसंत देसाई ने उन्हें फिल्म 'गुड्डी' में तीन गानों के लिए बुलाया। दरअसल, फिल्म की कहानी के हिसाब से एक ऐसी गायिका की जरूरत थी, जिसे लोगों ने पहले किसी फिल्म में न सुना हो, ताकि गुड्डी के किरदार को पूरा-पूरा न्याय मिल सके। उन्होंने गीत 'बोले रे पपीहरा' गाकर गुड्डी के साथ पूरा न्याय किया।
'बोले रे पपीहरा, कित प्यासा कित मन तरसे..' ऐसा गीत है जो आज भी सभी के कानों में मधुर रस घोलता है। वाणी जयराम की मधुर तान ने सभी को अपनी दिलकश आवाज का दीवाना बना दिया। इस सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत के लिए वाणी जयराम को तानसेन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इस गीत ने उन्हें और भी कई पुरस्कार दिलाए।
वाणी जयराम दक्षिण की एक बेहद प्रतिभाशाली गायिका रही हैं। तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम और मराठी में तो उन्होंने गाए ही हैं, हिंदी में भी उनके गीत काफी लोकप्रिय रहे हैं। अब उन्हें फिल्मों में गाने का मौका नहीं मिल रहा, लेकिन अपनी गजलों और भजनों के अलबम से वह आज भी अपनी सक्रियता का ऐहसास करा रही हैं। रूह को झंकृत कर देने वाली वाणी की वाणी कुदरत की देन है।
वाणी जयराम का कहना है कि जब वह पांच साल की थीं, तभी से शास्त्रीय रागों को अलग-अलग पहचान लेती थीं। आठ साल की आयु में उन्होंने पहली बार रेडियो पर गीत गाया था। कर्नाटक और हिंदुस्तानी गायन शैली, दोनों को उन्होंने केवल सीखा ही नहीं, बल्कि समान रूप से महारथ भी हासिल की। वाणी जयराम ने फिल्म 'गुड्डी' के बाद 1972 में फिल्म 'पाकीजा' के लिए गया। उन्होंने लगभग सभी सितारों के साथ काम किया है।
उपलब्धियां :
प्लेबैक सिंगर वाणी जयराम ने अपने चार दशक के करियर में काफी नाम कमाया। उन्हें तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिले। उन्हें गुजरात (1975), तमिलनाडु (1980) और ओड़िशा (1984) से सर्वश्रेष्ठ महिला प्लेबैक सिंगर के रूप में कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पी. सुशीला ट्रस्ट ने वाणी जयराम को हैदराबाद में एक भव्य समारोह में एक प्रशस्ति पत्र और एक लाख रुपये से सम्मानित किया।
उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ महिला प्लेबैक सिंगर के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा, उन्होंने तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी अपने नाम किए। उन्होंने चार बार राज्य पुरस्कारों सहित कई पुरस्कारों पर अपना नाम अंकित किया।
वाणी जयराम भारतीय मनोरंजन-जगत का एक ऐसा नाम है, जिन्होंने संगीत की दुनिया को बहुत कुछ दिया है। उनके मधुर गीत आज भी दर्शकों का बखूबी मनोरंजन करते हैं, संगीत की दुनिया की आज वह जीती-जागती जगमगाता सितारा हैं।
तमिलनाडु के वेल्लोर में 30 नवंबर, 1945 को जन्मीं वाणी जयराम ने भारतीय सिनेमा में अपनी आवाज का ऐसा जादू चलाया, जो आज भी सभी के दिलों में गूंज रहा है। सन् 1970 के दशक के गाने आज भी किसी प्रेरणास्रोत से कम नहीं हैं। उन्होंने कई हिंदी फिल्मों के गीतों को अपनी मधुर आवाज दी है। फिल्म 'गुड्डी' में जया भादुड़ी (बच्चन) पर फिल्माया गया गीत 'बोले रे पपीहरा' ने उन्हें रातोंरात शोहरत दिलाई। यह गीत सुनकर कोई भी भ्रम में पड़ सकता है और एक झटके से कह सकता है, 'यह लता मंगेशकर की आवाज है।'
वाणी जयराम के कई निजी अलबम भी हैं। इसके अलावा उन्होंने देश और विदेशों के कई संगीत समारोहों की शोभा बढ़ाई है। वाणी संगीतकारों के परिवार में पली-बढ़ी हैं। छह बहनों में वह सबसे छोटी हैं, उनके तीन भाई हैं। घर की सबसे छोटी बेटी वाणी ने अपना पहला गाना आठ साल की उम्र में मद्रास ऑल इंडिया रेडियो से गाया।
वाणी जयराम ने कुड्डालोर श्रीनिवास आयंगर, टी.आर. बालासुब्रमण्यम और आर.एस मणि के अंतर्गत कर्नाटक संगीत का अध्ययन किया। उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत उस्ताद अब्दुल रहमान खान से सीखा। उन्होंने स्वर को अनमोल गीतों में ढालने की कला सीखी। उनकी शादी जयराम के साथ हुई और इसके बाद वह मुंबई में बस गईं।
सन् 1971 में हिंदी फिल्म में गाने का उनका सपना तब साकार हुआ, जब संगीतकार वसंत देसाई ने उन्हें फिल्म 'गुड्डी' में तीन गानों के लिए बुलाया। दरअसल, फिल्म की कहानी के हिसाब से एक ऐसी गायिका की जरूरत थी, जिसे लोगों ने पहले किसी फिल्म में न सुना हो, ताकि गुड्डी के किरदार को पूरा-पूरा न्याय मिल सके। उन्होंने गीत 'बोले रे पपीहरा' गाकर गुड्डी के साथ पूरा न्याय किया।
'बोले रे पपीहरा, कित प्यासा कित मन तरसे..' ऐसा गीत है जो आज भी सभी के कानों में मधुर रस घोलता है। वाणी जयराम की मधुर तान ने सभी को अपनी दिलकश आवाज का दीवाना बना दिया। इस सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत के लिए वाणी जयराम को तानसेन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इस गीत ने उन्हें और भी कई पुरस्कार दिलाए।
वाणी जयराम दक्षिण की एक बेहद प्रतिभाशाली गायिका रही हैं। तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम और मराठी में तो उन्होंने गाए ही हैं, हिंदी में भी उनके गीत काफी लोकप्रिय रहे हैं। अब उन्हें फिल्मों में गाने का मौका नहीं मिल रहा, लेकिन अपनी गजलों और भजनों के अलबम से वह आज भी अपनी सक्रियता का ऐहसास करा रही हैं। रूह को झंकृत कर देने वाली वाणी की वाणी कुदरत की देन है।
वाणी जयराम का कहना है कि जब वह पांच साल की थीं, तभी से शास्त्रीय रागों को अलग-अलग पहचान लेती थीं। आठ साल की आयु में उन्होंने पहली बार रेडियो पर गीत गाया था। कर्नाटक और हिंदुस्तानी गायन शैली, दोनों को उन्होंने केवल सीखा ही नहीं, बल्कि समान रूप से महारथ भी हासिल की। वाणी जयराम ने फिल्म 'गुड्डी' के बाद 1972 में फिल्म 'पाकीजा' के लिए गया। उन्होंने लगभग सभी सितारों के साथ काम किया है।
उपलब्धियां :
प्लेबैक सिंगर वाणी जयराम ने अपने चार दशक के करियर में काफी नाम कमाया। उन्हें तीन बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिले। उन्हें गुजरात (1975), तमिलनाडु (1980) और ओड़िशा (1984) से सर्वश्रेष्ठ महिला प्लेबैक सिंगर के रूप में कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पी. सुशीला ट्रस्ट ने वाणी जयराम को हैदराबाद में एक भव्य समारोह में एक प्रशस्ति पत्र और एक लाख रुपये से सम्मानित किया।
उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ महिला प्लेबैक सिंगर के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा, उन्होंने तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी अपने नाम किए। उन्होंने चार बार राज्य पुरस्कारों सहित कई पुरस्कारों पर अपना नाम अंकित किया।
वाणी जयराम भारतीय मनोरंजन-जगत का एक ऐसा नाम है, जिन्होंने संगीत की दुनिया को बहुत कुछ दिया है। उनके मधुर गीत आज भी दर्शकों का बखूबी मनोरंजन करते हैं, संगीत की दुनिया की आज वह जीती-जागती जगमगाता सितारा हैं।
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