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This Article is From Jul 29, 2013

जीवनी आधारित फिल्मों और रीमेक के पक्ष में नहीं हैं वहीदा रहमान

जीवनी आधारित फिल्मों और रीमेक के पक्ष में नहीं हैं वहीदा रहमान
मुंबई: आज जबकि बॉलीवुड फिल्मकार रीमेक और किसी के जीवन पर फिल्में बनाने के चलन को भुना रहे हैं, ऐसे में प्रसिद्ध अभिनेत्री वहीदा रहमान का कहना है कि वह ऐसी फिल्मों के पक्ष में नहीं हैं।

अभिनेता-फिल्मकार गुरुदत्त और गायक-अभिनेता किशोर कुमार के जीवन पर बनने वाली फिल्मों की खबरों के बीच वहीदा का मानना है कि किसी के जीवन पर फिल्म बनाना ठीक नहीं है क्योंकि इससे एक कलाकार के निजी जीवन की बहुत सी जानकारियां सामने आ जाती हैं।

वहीदा ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘गुरुदत्त और किशोर कुमार के जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव आए। उनके जीवन में काफी दुख था। मुझे लगता है कि यह फिल्म त्रासदी साबित हो सकती है। यह ऐसा होगा कि मानो हम उनकी निजी जानकारियां उपलब्ध करवा रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि यह एक अच्छा विचार है।’’

बॉलीवुड में एक अन्य चलन है पुरानी चर्चित फिल्मों को आज के अंदाज में बनाने का। ऐसी फिल्मों में कहानी की मूल भावना वैसी ही रहती है लेकिन वहीदा इसके भी पक्ष में नहीं हैं।

वहीदा ने कहा, ‘‘मैं रीमेक फिल्मों में यकीन नहीं रखती। मुझे लगता है कि मूल फिल्में कुछ अलग हैं और कोई भी मूल फिल्म जैसी फिल्म नहीं बना सकता। अगर वे ऐसा करते भी हैं तो फिर दोनों में तुलनाएं होती रहेंगी जो कि अच्छा विचार नहीं है।’’

आज के दौर में अलग-अलग तरह की फिल्में बनने के कारण प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन, ऋषी कपूर और कई अन्य लोगों का मानना है कि फिल्म उद्योग में होने के लिए यह सबसे अच्छा समय है। वहीदा इस बात पर अपनी सहमति जताती हैं।

वहीदा ने कहा, ‘‘मुझे निश्चित तौर पर यह लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री में होने के लिए यह सबसे अच्छा समय है। पहले फिल्में प्रेम कहानी, पारिवारिक नाटक के तय प्रारूप पर बनाई जाती थीं। लेकिन आज अलग-अलग तरह की फिल्में बनाई जा रही हैं और दर्शकों द्वारा इन्हें स्वीकार किया जा रहा है। काश मैं आज फिल्म उद्योग में होती। काश, मैं आज के दौर में पैदा हुई होती।’’

वहीदा दक्षिण अफ्रीका भारतीय फिल्म व टेलीविजन पुरस्कार (साफ्टा) की वैश्विक दूत हैं। उन्हें लगता है कि बहुत से पुरस्कार समारोह होने की वजह से पुरस्कारों का गौरव कम होता जा रहा है।

वहीदा ने कहा, ‘‘पुरस्कार अपना आकर्षण खो चुके हैं। आज किसी भी चीज के लिए पुरस्कार बांटे जाते हैं। हमारे समय में विजेता के नाम की घोषणा सुनने से लोग घबराहट में नाखून चबाने लग जाते थे। हम हमेशा यह जानने के लिए उत्सुक रहते थे कि हम विजेता बनेंगे या नहीं। पुरस्कार मिलने का वह अनुभव अब पूरी तरह खो गया है।’’

साफ्टा से जुड़ाव के कारण वहीदा प्रदर्शित हुई फिल्मों और उनमें दी गई प्रस्तुतियों के प्रति सजग रहती हैं। साफ्टा समरोह डरबन में आगामी 6 सितंबर को आयोजित होगा। यहां दक्षिण अफ्रीका और भारत में सिनेमा व टेलीविजन परिदृश्य के हुनर को सराहा जाएगा।

इस समारोह का उद्देश्य पर्यटन, व्यावसायिक संबंधों और दोनों देशों को फिल्मी लोकेशन के रूप में प्रोत्साहित करना है।

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