फिल्म वजीर का एक दृश्य।
मुंबई:
इस फिल्मी फ्राइडे रिलीज हुई है अमिताभ बच्चन और फरहान अख़्तर की 'वज़ीर'। वज़ीर का निर्देशन किया है बिजॉए नांबियार ने और इसके निर्माता हैं विधु विनोद चोपड़ा। फिल्म की स्क्रिप्ट में योगदान है खुद विधु और अभिजात का और डायलॉग लिखे हैं अभिजीत देशपांडे ने। फिल्म में मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं अमिताभ बच्चन, फरहान अख़्तर, अदिति राव हैदरी और मानव कॉल ने। स्पेशल अपीयरेंस में हैं जॉन अब्राहम और नील नितिन मुकेश।
शतरंज से दिमागी गुत्थियों का ताल्लुक
फिल्म में फरहान एक एटीएस अफसर बने हैं। उनकी पत्नी के किरदार में हैं अदिति राव हैदरी। फरहान के किरदार का नाम दानिश है जो एक मुठभेड़ में अपनी बेटी को खो बैठते हैं। कहानी आगे बढ़ती है और उनकी मुलाकात होती है पंडित जी से यानी अमिताभ बच्चन से जो शतरंज के बहुत अच्छे खिलाड़ी हैं। फिल्म में वह दानिश को शतरंज खेलना सिखाते हैं और शतंरज की हर चाल उनकी दिमाग की गुत्थियां सुलझाने में मदद करती हैं। इससे ज्यादा कहानी के बारे में बताना गलत होगा क्योंकि वज़ीर एक थ्रिलर फिल्म है जो कहानी और स्क्रीनप्ले के साथ उत्सुकता से आगे बढ़ती है।
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ये भी पढ़ें : अमिताभ बच्चन - खुद को तलाशता एक 'वजीर'
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थ्रिल में भावुक कहानी बाधक
वैसे फिल्म के थ्रिल में दानिश की भावुक कहानी बाधा डालती है। हर इमोशनल सीन पर छोटे या बड़े गाने भी रोमांच कम करते हैं। और दर्शकों का तो नहीं पता पर अमिताभ बच्चन के किरदार की एंट्री मुझे वज़ीर के क्लाइमैक्स का संकेत दे गई और फिर मेरे दिमाग में चल रही कहानी की तरह ही फिल्म मोड़ लेती गई। शायद इसलिए इस थ्रिलर का मजा जरा कम हो गया। फिल्म के किरदार काल्पनिक हैं यह पता चलने पर भी फिल्म का मजा खराब होता है। दर्शकों को क्या किस हद तक दिखाना है यह किसी थ्रिलर फिल्म के लिए बहुत जरूरी है जो स्क्रीनप्ले और निर्देशक पर निर्भर होता है।
दर्शकों पर बेअसर संगीत
फिल्म का संगीत दर्शकों पर बेअसर दिखा। कोई भी गाना ना ज़हन में टिका न ही ज़ुबान पर। पर इन सभी बातों का मतलब यह नहीं कि यह एक खराब फिल्म है। फिल्म एक घंटा और 40 मिनट की है और बोर बिलकुल नहीं करेगी। फिल्म की रफ्तार ठीक है। फिल्म के भावुक सीन आपके दिल को छुएंगे या नहीं यह आपके जायके पर निर्भर करता है।
अमिताभ के साथ फरहान का मजबूत अभिनय
फरहान का अभिनय अच्छा है। अपने किरदार के सुर से वे भटके नहीं। एक जबरदस्त खिलाड़ी की तरह वे अमिताभ बच्चन जैसे एक्टर के साथ मजबूती से परफ़ॉर्म करते दिखे। अदिति के पास ज्यादा करने के लिए कुछ नहीं था। जितना लंबा रोल है उसके हिसाब से उनका काम ठीक है। अमिताभ बच्चन की आंखें और डायलॉग डिलिवरी एक मंजे हुए शरतंज खिलाड़ी की तरह दिखते हैं। डायलॉग के लिए लेखकों की तारीफ जरूरी है। मानव कॉल का अभिनय अच्छा है। वहीं नील फिल्म में ज्यादा नहीं दिखे, जितने दिखे अच्छे लगे। उन्हें निगेटिव रोल्स और करने चाहिए। तो कुल मिलकार फिल्म एक बार जरूर देखी जा सकती है। मेरी ओर से फिल्म को 2.5 स्टार्स।
शतरंज से दिमागी गुत्थियों का ताल्लुक
फिल्म में फरहान एक एटीएस अफसर बने हैं। उनकी पत्नी के किरदार में हैं अदिति राव हैदरी। फरहान के किरदार का नाम दानिश है जो एक मुठभेड़ में अपनी बेटी को खो बैठते हैं। कहानी आगे बढ़ती है और उनकी मुलाकात होती है पंडित जी से यानी अमिताभ बच्चन से जो शतरंज के बहुत अच्छे खिलाड़ी हैं। फिल्म में वह दानिश को शतरंज खेलना सिखाते हैं और शतंरज की हर चाल उनकी दिमाग की गुत्थियां सुलझाने में मदद करती हैं। इससे ज्यादा कहानी के बारे में बताना गलत होगा क्योंकि वज़ीर एक थ्रिलर फिल्म है जो कहानी और स्क्रीनप्ले के साथ उत्सुकता से आगे बढ़ती है।
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थ्रिल में भावुक कहानी बाधक
वैसे फिल्म के थ्रिल में दानिश की भावुक कहानी बाधा डालती है। हर इमोशनल सीन पर छोटे या बड़े गाने भी रोमांच कम करते हैं। और दर्शकों का तो नहीं पता पर अमिताभ बच्चन के किरदार की एंट्री मुझे वज़ीर के क्लाइमैक्स का संकेत दे गई और फिर मेरे दिमाग में चल रही कहानी की तरह ही फिल्म मोड़ लेती गई। शायद इसलिए इस थ्रिलर का मजा जरा कम हो गया। फिल्म के किरदार काल्पनिक हैं यह पता चलने पर भी फिल्म का मजा खराब होता है। दर्शकों को क्या किस हद तक दिखाना है यह किसी थ्रिलर फिल्म के लिए बहुत जरूरी है जो स्क्रीनप्ले और निर्देशक पर निर्भर होता है।
दर्शकों पर बेअसर संगीत
फिल्म का संगीत दर्शकों पर बेअसर दिखा। कोई भी गाना ना ज़हन में टिका न ही ज़ुबान पर। पर इन सभी बातों का मतलब यह नहीं कि यह एक खराब फिल्म है। फिल्म एक घंटा और 40 मिनट की है और बोर बिलकुल नहीं करेगी। फिल्म की रफ्तार ठीक है। फिल्म के भावुक सीन आपके दिल को छुएंगे या नहीं यह आपके जायके पर निर्भर करता है।
अमिताभ के साथ फरहान का मजबूत अभिनय
फरहान का अभिनय अच्छा है। अपने किरदार के सुर से वे भटके नहीं। एक जबरदस्त खिलाड़ी की तरह वे अमिताभ बच्चन जैसे एक्टर के साथ मजबूती से परफ़ॉर्म करते दिखे। अदिति के पास ज्यादा करने के लिए कुछ नहीं था। जितना लंबा रोल है उसके हिसाब से उनका काम ठीक है। अमिताभ बच्चन की आंखें और डायलॉग डिलिवरी एक मंजे हुए शरतंज खिलाड़ी की तरह दिखते हैं। डायलॉग के लिए लेखकों की तारीफ जरूरी है। मानव कॉल का अभिनय अच्छा है। वहीं नील फिल्म में ज्यादा नहीं दिखे, जितने दिखे अच्छे लगे। उन्हें निगेटिव रोल्स और करने चाहिए। तो कुल मिलकार फिल्म एक बार जरूर देखी जा सकती है। मेरी ओर से फिल्म को 2.5 स्टार्स।
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