मुंबई:
विशाल भारद्वाज के निर्देशन में बनी फिल्म 'मटरू की बिजली का मन्डोला' कहानी है मन्डोला की, यानि पंकज कपूर की, जिनके नाम पर बसा है मन्डोला गांव... मन्डोला की बेटी है बिजली, यानि अनुष्का शर्मा, और फिल्म में मटरू का किरदार निभाया है इमरान खान ने, जो मन्डोला का ड्राइवर है...
पंकज कपूर को शराब पीने की आदत है और पीने के बाद उनका व्यक्तित्व एकदम बदल जाता है... मन्डोला का सपना है, गांव की ज़मीन पर बड़ी-बड़ी फैक्टरियां लगाना, जिसके लिए वह पॉलिटिशियन चौधराइन, यानि शबाना आज़मी के साथ मिलकर ज़मीन का सौदा करने की कोशिश करते हैं... मन्डोला को यह लालच है कि बदले में उनकी बेटी बिजली की शादी चौधराइन के बेटे, यानि आर्यन बब्बर, से हो जाए, और उधर चौधराइन को लालच है मन्डोला की जायदाद का... बस, इसी ताने-बाने पर बुनी हुई है 'मटरू की बिजली का मन्डोला' की कहानी...
सबसे पहले सलाम है पंकज कपूर को, जिनके बेहतरीन अभिनय ने इस फिल्म को बचाया... दरअसल, फिल्म की कहानी तो अच्छी है, लेकिन स्क्रिप्ट ठीक तरह डेवलप नहीं हो पाई... मुद्दा ज़बरदस्त उठाया गया है, लेकिन उस पर कॉमेडी की चाशनी लपेटने के चक्कर में फिल्म का स्वाद किरकिरा कर दिया गया है... वास्तविक लोकेशन्स, हरियाणवी भाषा, कुछ लोकगीतों का इस्तेमाल और कुछ वास्तविक किरदार जहां फिल्म को वास्तविक और बेहतर बनाते हैं, वहीं कुछ सीन्स ऐसे हैं, जो फिल्म वास्तविकता से कोसों परे ले जाते हैं...
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि फिल्म में वास्तविकता या कॉमेडी नहीं होनी चाहिए थी, लेकिन इन दोनों चीज़ों के बीच संतुलन बहुत ज़रूरी होता है, जो डायरेक्टर विशाल भारद्वाज नहीं बना पाए... कॉमेडी रखने का लालच, और पंकज कपूर जैसे अभिनेता के काम को काटना बेशक, बेहद मुश्किल होता है, लेकिन फिल्म की भलाई के लिए कई बार निर्देशक को दिल पक्का कर लेना चाहिए...
फिल्म का संगीत और गाने मुझे काफी पसंद आए... इसके अलावा कई बार फिल्म में रंगमंच की भी झलक दिखी, जो मुझे अच्छी लगी, परन्तु इन सब खासियतों के बीच फिल्म की कहानी कहीं खो गई... एक बात और, अगर फिल्म की कहानी को आसान सीधे तरीके से कहने के स्थान पर प्रतीकात्मक तरीके से कहा जाए, तो दर्शकों को समझने में मुश्किल होती है, और इस फिल्म में शायद दर्शकों को यही मुश्किल झेलनी पड़ेगी... जैसे 'गुलाबी भैंस' किसका प्रतीक है... जैसे शबाना आज़मी की 'नेता और जनता' के बारे में स्पीच... ये कुछ ऐसी चीज़ें हैं फिल्म की, जो शायद आम दर्शक के सिर के ऊपर से निकल जाएंगी...
इसके अलावा हरियाणवी भाषा के कुछ शब्द भी पकड़ में आने से पहले ही निकल जाते हैं... पंकज कपूर के परफॉरमेन्स के बारे में मैं पहले ही कह चुका हूं, लेकिन काम अनुष्का शर्मा का भी अच्छा है, और कमज़ोर पड़े हैं इमरान खान... अंत में यही कहूंगा कि फिल्म की कहानी को अच्छी तरह फैलाकर कुछ ज़रूरी एलिमेन्ट्स भी सही तरीके से इस्तेमाल किए गए होते, तो यह बहुत अच्छी फिल्म बन सकती थी... लेकिन अब भी यह आपका मनोरंजन तो ज़रूर करेगी... मेरी तरफ से 'मटरू की बिजली का मन्डोला' को मिलते हैं - 2.5 स्टार...
पंकज कपूर को शराब पीने की आदत है और पीने के बाद उनका व्यक्तित्व एकदम बदल जाता है... मन्डोला का सपना है, गांव की ज़मीन पर बड़ी-बड़ी फैक्टरियां लगाना, जिसके लिए वह पॉलिटिशियन चौधराइन, यानि शबाना आज़मी के साथ मिलकर ज़मीन का सौदा करने की कोशिश करते हैं... मन्डोला को यह लालच है कि बदले में उनकी बेटी बिजली की शादी चौधराइन के बेटे, यानि आर्यन बब्बर, से हो जाए, और उधर चौधराइन को लालच है मन्डोला की जायदाद का... बस, इसी ताने-बाने पर बुनी हुई है 'मटरू की बिजली का मन्डोला' की कहानी...
सबसे पहले सलाम है पंकज कपूर को, जिनके बेहतरीन अभिनय ने इस फिल्म को बचाया... दरअसल, फिल्म की कहानी तो अच्छी है, लेकिन स्क्रिप्ट ठीक तरह डेवलप नहीं हो पाई... मुद्दा ज़बरदस्त उठाया गया है, लेकिन उस पर कॉमेडी की चाशनी लपेटने के चक्कर में फिल्म का स्वाद किरकिरा कर दिया गया है... वास्तविक लोकेशन्स, हरियाणवी भाषा, कुछ लोकगीतों का इस्तेमाल और कुछ वास्तविक किरदार जहां फिल्म को वास्तविक और बेहतर बनाते हैं, वहीं कुछ सीन्स ऐसे हैं, जो फिल्म वास्तविकता से कोसों परे ले जाते हैं...
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि फिल्म में वास्तविकता या कॉमेडी नहीं होनी चाहिए थी, लेकिन इन दोनों चीज़ों के बीच संतुलन बहुत ज़रूरी होता है, जो डायरेक्टर विशाल भारद्वाज नहीं बना पाए... कॉमेडी रखने का लालच, और पंकज कपूर जैसे अभिनेता के काम को काटना बेशक, बेहद मुश्किल होता है, लेकिन फिल्म की भलाई के लिए कई बार निर्देशक को दिल पक्का कर लेना चाहिए...
फिल्म का संगीत और गाने मुझे काफी पसंद आए... इसके अलावा कई बार फिल्म में रंगमंच की भी झलक दिखी, जो मुझे अच्छी लगी, परन्तु इन सब खासियतों के बीच फिल्म की कहानी कहीं खो गई... एक बात और, अगर फिल्म की कहानी को आसान सीधे तरीके से कहने के स्थान पर प्रतीकात्मक तरीके से कहा जाए, तो दर्शकों को समझने में मुश्किल होती है, और इस फिल्म में शायद दर्शकों को यही मुश्किल झेलनी पड़ेगी... जैसे 'गुलाबी भैंस' किसका प्रतीक है... जैसे शबाना आज़मी की 'नेता और जनता' के बारे में स्पीच... ये कुछ ऐसी चीज़ें हैं फिल्म की, जो शायद आम दर्शक के सिर के ऊपर से निकल जाएंगी...
इसके अलावा हरियाणवी भाषा के कुछ शब्द भी पकड़ में आने से पहले ही निकल जाते हैं... पंकज कपूर के परफॉरमेन्स के बारे में मैं पहले ही कह चुका हूं, लेकिन काम अनुष्का शर्मा का भी अच्छा है, और कमज़ोर पड़े हैं इमरान खान... अंत में यही कहूंगा कि फिल्म की कहानी को अच्छी तरह फैलाकर कुछ ज़रूरी एलिमेन्ट्स भी सही तरीके से इस्तेमाल किए गए होते, तो यह बहुत अच्छी फिल्म बन सकती थी... लेकिन अब भी यह आपका मनोरंजन तो ज़रूर करेगी... मेरी तरफ से 'मटरू की बिजली का मन्डोला' को मिलते हैं - 2.5 स्टार...
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
फिल्म समीक्षा, मटरू की बिजली का मन्डोला, फिल्म रिव्यू, पंकज कपूर, विशाल भारद्वाज, शबाना आज़मी, अनुष्का शर्मा, इमरान खान, Film Review, Matru Ki Bijli Ka Mandola, Pankaj Kapoor, Vishal Bhardwaj, Imran Khan, Anushka Sharma