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लगता है, जब-जब डायरेक्टर रामगोपाल वर्मा ने एक्शन डायरेक्टर को पानी पीने का ब्रेक दिया होगा, फिल्म एक्शन से कॉमेडी बनती चली गई...
कॉन्सेप्ट अच्छा है, लेकिन फिल्म में 70 से 80 प्रतिशत सिर्फ खूनखराबा है... छोटे-छोटे बेसुरे गीतों पर फिल्माई गई भयंकर मारधाड़ के बीच कहानी तो हम ढूंढते ही रह गए... और फिर आया, अमिताभ बच्चन की वर्ष 1982 में रिलीज़ हुई फिल्म 'नमकहलाल' के हिट गीत 'थोड़ी सी जो पी ली है...' का रीमेक, जिसमें संजय दत्त एक नाइट क्लब में नाच रहे हैं... अमिताभ के इस बेहतरीन गाने की दुर्गति उन्हीं की एक और फिल्म में देखना बर्दाश्त नहीं हुआ... हां, नथालिया कौर ने देखने में ज़रूर अच्छा आइटम नंबर किया, लेकिन उसके बोल सुनकर लिखने वालों की कलम पर तरस आ गया...
लगता है, जब-जब डायरेक्टर रामगोपाल वर्मा ने एक्शन डायरेक्टर को पानी पीने का ब्रेक दिया होगा, फिल्म एक्शन से कॉमेडी बनती चली गई... बेशक, अनजाने में... कैमरा घूमने लगा - पिस्तौल, कॉफी मग, जूते, चश्मे, जीन्स, चाय की केतली और कैरम बोर्ड के स्ट्राइकर के साथ...
गैंगस्टर से नेता बने सरजी राव, यानी अमिताभ बच्चन हाथ पर घंटी बांधते हैं, क्योंकि जब-जब घंटी बजती है, उन्हें देश का दुश्मन याद आ जाता है। वह शीला मिक्स और शीला रीमिक्स जैसे ब्रांड नेम देकर दो गुटका किंग भाइयों के बीच का झगड़ा सुलझा देते हैं... विजय राज और उनकी गैंग में शामिल लेडी गैंगस्टर बनी मधुशालिनी ने तो कॉमेडी का बवाल कर दिया है, लेकिन यहां भी, अनजाने में...
भरे बाज़ार में एन्काउंटर समेत कुछ एक्शन सीन्स ज़रूर इम्पैक्टफुल है, लेकिन टोटैलिटी में 'डिपार्टमेंट' बेहद बोरिंग और कन्फ्यूज़्ड फिल्म है... 'रामगोपाल वर्मा की आग' देखते वक्त मन में एक जिज्ञासा तो थी कि वह 'शोले' का कितना बुरा हाल कर सकते हैं, लेकिन 'डिपार्टमेंट' देखते वक्त तो यह उम्मीद भी साथ नहीं थी... इस फिल्म के लिए हमारी रेटिंग है 1 स्टार...
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