सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर का कहना है फिल्म सेंसरशिप के दिशानिर्देश में बदलाव की जरूरत है। हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि ऑनलाइन सेंसरशिप व्यवस्था के जरिए निर्माताओं और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के बीच फिल्म को प्रमाणित करने से संबंधित आपसी संपर्क में कमी आएगी।
राठौर ने पहलाज निहलानी और फिल्म की विषय-वस्तु को लेकर उनके आदेश के खिलाफ की गई शिकायत के बाद फिल्म की लंबाई पर लगने वाले सेंसर के मुद्दे पर बात की। सीबीएफसी फिल्म में किस प्रकार के ऑडियो और वीडियो हिंसा की मंजूरी देती है?
इस सवाल पर राठौर ने कहा, "यह फैसला पूरी तरह सेंसर बोर्ड करता है। हम मानते हैं कि हर फिल्म का दृश्य संदर्भ आधारित होना चाहिए। हर शब्द, हर दृश्य फिल्म के संदर्भ से जुड़ा होना चाहिए और न्यायोचित होना चाहिए।"
मंत्री ने कहा कि वह मानते हैं कि सीबीएफसी का मुख्य काम फिल्म को प्रमाणित करना है और यह सबकुछ किसी फिल्म निर्माता के साथ बात कर तय नहीं कर लेना चाहिए। फिल्म निर्माण को लेकर सरकार की नीतियां कितनी संकीर्ण और उदार हैं? उन्होंने इस पर कहा, "सरकार नए वक्त के अनुसार सोचती है। अगर आप प्रधानमंत्री की बात सुनें, तो आप देखेंगे कि वह मौजूदा समय के अनुसार काम कर रहे और उनकी इच्छा देश को आगे ले जाने की है।"
सीबीएफसी के सदस्यों अशोक पंडित और चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने इसके अध्यक्ष पहलाज निहलानी के कामकाज के तरीके पर सवाल उठाया है, आप इस पर क्या कहेंगे? इस पर राठौर ने कहा, "सरकारी संस्था में एक व्यक्ति का विचार मायने नहीं रखता। सभी फैसले साथ लिए जाने चाहिए। एक व्यक्ति द्वारा उठाए गया मुद्दा सीबीएफसी की प्रमाणन प्रक्रिया को नहीं दर्शाता। उनका मकसद कुछ और हो सकता है।"
क्या आपने उन लोगों से बात की है? राठौर ने कहा, "मैंने बोर्ड के सदस्यों से बात की है और उन्हें स्पष्ट रूप से कहा है कि पेशेवर मुद्दे पर मतभेद का स्वागत है, लेकिन उन्हें सीबीएफसी के अंदर ही मुद्दे को सुलझाना चाहिए, न कि सार्वजनिक स्थानों पर।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं