कंगना रनोट
नई दिल्ली:
एनडीटीवी यूथ फॉर चेंज कॉनक्लेव में कंगना रनोट ने बताया कि उनका हाथ अंग्रेजी में कुछ तंग था. लेकिन उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं था. वे अंग्रेजी बोलती रहती थीं और उन्हें लगता कि वे एकदम सही बोल रही हैं. लेकिन लोग उन्हें इंग्लिश बोलने से मना करते थे. वे नहीं सुनतीं और जो उन्हें ठीक लगता वे बोलती रहतीं.
कंगना रनोट ने कहा, “लोग मुझ से परेशान थे. मैं अंग्रेजी में बात करती थी. आज सब लोग इंग्लिश आने न आने पर खुलकर बात कर रहे हैं. लेकिन दस साल पहले जब मैं आई थी, उस समय ऐसा नहीं था. मेरा नजरिया भी बहुत अलग था. मुझे लगता ही नहीं था कि मुझे इंग्लिश नहीं आती थी. लोग मेरी इंग्लिश सुनकर मुझसे कहते, तुम चुप करो, मत बोलो. फिर मुझे लगा कि ऐसी कौन-सी चीज है जो मैं नहीं सीख सकती. मैंने एक ट्यूटर को बुलाया और उसे अपनी अंग्रेजी सुनाई, फिर कहा मैं ऐसे बोलती हूं. उसने कहा तुम गलत बोलती हो. मैंने उससे कहा तुम ठीक करो इसे. इनसान के अंदर कद्र होनी चाहिए, इंग्लिश या चाइनीज नहीं है जो आपको इनसान बनाती है, बल्कि यह इनसानियत है.”
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उनका यकीन है कि अगर आप कुछ करने की ठान लेते हैं तो फिर आपको कोई चीज नहीं रोक सकती. वे फिल्म इंडस्ट्री को भी पूर्वाग्रहों से भरी मानती हैं.
कंगना रनोट ने कहा, “लोग मुझ से परेशान थे. मैं अंग्रेजी में बात करती थी. आज सब लोग इंग्लिश आने न आने पर खुलकर बात कर रहे हैं. लेकिन दस साल पहले जब मैं आई थी, उस समय ऐसा नहीं था. मेरा नजरिया भी बहुत अलग था. मुझे लगता ही नहीं था कि मुझे इंग्लिश नहीं आती थी. लोग मेरी इंग्लिश सुनकर मुझसे कहते, तुम चुप करो, मत बोलो. फिर मुझे लगा कि ऐसी कौन-सी चीज है जो मैं नहीं सीख सकती. मैंने एक ट्यूटर को बुलाया और उसे अपनी अंग्रेजी सुनाई, फिर कहा मैं ऐसे बोलती हूं. उसने कहा तुम गलत बोलती हो. मैंने उससे कहा तुम ठीक करो इसे. इनसान के अंदर कद्र होनी चाहिए, इंग्लिश या चाइनीज नहीं है जो आपको इनसान बनाती है, बल्कि यह इनसानियत है.”
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उनका यकीन है कि अगर आप कुछ करने की ठान लेते हैं तो फिर आपको कोई चीज नहीं रोक सकती. वे फिल्म इंडस्ट्री को भी पूर्वाग्रहों से भरी मानती हैं.
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