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This Article is From Aug 31, 2011

रिव्यू : बेहतरीन फिल्म है 'बोल'

मुंबई: पाकिस्तानी फिल्म 'बोल' एक हकीम के परिवार पर है जहां लड़के की चाहत में हकीम ढेरों लड़कियां पैदा करता है। चौदहवीं औलाद सैफुद्दीन लड़का और लड़की के बीच का है। जहां हकीम के घर में अनपढ़ लड़कियों का मेला लग जाता है वहीं डॉक्टरों की बढ़ती तादाद के चलते हकीम का धंधा भी ठप हो जाता है। हकीम की गरीबी और गुस्से की मार बेटियों और सैफुद्दीन पर पढ़ती है लेकिन एक हादसा परिवार को सबसे बुरे दिनों में ला खड़ा करता है। 'बोल' पाकिस्तानी डायरेक्टर शोएब मंसूर ने बनाई है जो 'खुदा के लिए' जैसी फिल्म भी बना चुके हैं। फिल्म थोड़ी लंबी जरूर है लेकिन इसमें कमाल का फैमिली ड्रामा है। कहानी में जबर्दस्त मोड़ हैं। हकीम अल्लाह के नाम पर गुनाह करता चला जाता है लेकिन उसी अल्लाह का हवाला देकर उसकी साहसी बेटी जैनब हकीम का मुंह सिल देती है यहीं बाप बेटी के बीच बेहतरीन डायलॉग्स की झड़ी लग जाती है।  'बोल' का संदेश ये है कि अगर आप औलाद की सही परवरिश नहीं कर सकते तो उसे जन्म देना भी उतना बड़ा गुनाह है जितना किसी की हत्या करना क्योंकि बुरे हाल में बच्चे को पालने का मतलब उसे जीते जी मौत देने के समान है। फिल्म और भी कई मुद्दे उठाती है जैसे लड़कियों की अशिक्षा, उन्हें घर में गुलाम बनाकर रखना, घरेलू हिंसा और धार्मिक कट्टरवाद और बढ़ती आबादी जिससे भारत भी जूझ रहा है। हुमैमा मलिक, मंजर सेहबई, आतिफ असलम, माहिरा ख़ान की बेहतरीन एक्टिंग। 'बोल' एक बेहतरीन फिल्म है और इसके लिए मेरी रेटिंग है 4 स्टार।

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