भारत की गेंदबाजी एक बार फिर 300 से अधिक के टारगेट का बचाव नहीं कर सकी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
पर्थ की कहानी ब्रिस्बेन के वनडे में भी दोहराई गई। 300 के ऊपर के स्कोर को धोनी के धुरंधर लगातार दूसरे मैच में भी 'डिफेंड' नहीं कर पाए और ऑस्ट्रेलिया ने पांच वनडे मैचों की सीरीज में 2-0 की बढ़त बना ली। जानते हैं इस करारी हार के मुख्य कारणों के बारे में-
- विकेट लेने वाले बॉलर ही नहीं, तो कैसे जीतेंगे: लगातार दूसरे मैच में गेंदबाजी विभाग ने टीम इंडिया को शर्मसार किया। इससे आलोचकों की यह धारणा मजबूत हो रही है कि टीम इंडिया केवल अपने मैदान पर ही 'शेर' है। लगातार दूसरे मैच में बेहद महंगे रहे 140 किमी प्रति घंटा या इससे अधिक की स्पीड से गेंदें फेंकने वाले उमेश यादव की टीम में मौजूदगी पर गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। अनुभवी ईशांत और युवा बरिंदर सरां भी मैच में नहीं चल सके। स्पिन गेंदबाज भले ही अपनी घुमावदार पिचों पर सफलता दिलाते रहे होंगे, लेकिन एशियाई उपमहाद्वीप के बाहर वे भी 'असहाय' दिखते हैं। ऐसी रीढ़हीन गेंदबाजी के रहते आप भले ही 300 से अधिक रन बना लें, हार मिलना लगभग तय है।
- प्रबंधन की रणनीति में नयापन नहीं: टीम प्रबंधन और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की रणनीति में कुछ नयापन नहीं दिखा। पर्थ मैच में उमेश यादव की तुलना में बेहतर गेंदबाजी करने वाले भुवनेश्वर को बाहर बैठाने का फैसला समझ से परे लगा। पहले मैच में गेंदबाजों की नाकामी के चलते मनीष पांडे के स्थान पर हरफनमौला ऋषि धवन को आजमाना कप्तान धोनी को कम से कम एक विकल्प तो दे सकता था, लेकिन यह नहीं किया गया। टीम इंडिया की बल्लेबाजी के दौरान भी बैटिंग ऑर्डर को लेकर प्रयोग नहीं किए गए। 46वें ओवर में धोनी के आउट होने के बाद नएनवेले मनीष पांडे को भेजा गया जबकि पिंच हिंटर के नाते रवींद्र जडेजा को भेजना संभवत: बेहतर फैसला होता। इसकी वजह यह है कि स्लॉग ओवर्स में जडेजा ज्यादा तेजी से रन बनाने में सक्षम हैं और बाएं हाथ के बल्लेबाज होने के नाते वे राइट हैंडर अजिंक्य रहाणे के साथ गेंदबाजों के लिए परेशानी का कारण बन सकते थे।
- आखिरी के 10 ओवर्स में बने महज 75 रन: 40 ओवर्स की समाप्ति के बाद टीम इंडिया का स्कोर दो विकेट पर 233 रन था। इस समय आठ विकेट हाथ में थे और बल्लेबाजी में हाथ 'खोलकर' टीम स्कोर को 325 के पार पहुंचा सकती थी, लेकिन बड़ा लक्ष्य रखने में हमारे बल्लेबाज पिछड़ गए। रोहित शर्मा और कोहली की जोड़ी ने एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बड़े स्कोर तक पहुंचने का जो 'प्लेटफॉर्म' तैयार किया था, उसे बाद के बल्लेबाज ने बेकार कर दिया। स्लॉग ओवर्स में हमने लगातार विकेट गंवाए इससे 325 के ऊपर का लक्ष्य निर्धारित करने की योजना पूरी नहीं हो सकी। आखिरी के पांच ओवर्स में तो टीम इंडिया ने केवल 38 रन बनाए और इस दौरान पांच बल्लेबाज आउट हुए।
- कैच छोड़ना महंगा साबित हुआ : कोई भी गेंदबाजी तभी कामयाब साबित होती है, जब उसे क्षेत्ररक्षकों की ओर से भरपूर समर्थन मिले। युवा खिलाडि़यों से भरी टीम इंडिया की फील्डिंग के स्तर में हाल के वर्षों में काफी सुधार भी देखने को मिला है, लेकिन ब्रिस्बेन में सबकुछ गड़बड़ रहा। गेंदबाजी जब स्तर के अनुरूप नहीं हो और उस पर आप कैच भी ड्रॉप कर दें तो जीतने की उम्मीद नहीं की जा सकती। टीम इंडिया का क्षेत्ररक्षण आज बेहद खराब रहा और ईशांत शर्मा, मनीष शर्मा और अजिंक्य रहाणे ने कैच छोड़े। इन कैच को अगर लिया जाता तो स्थिति कुछ और हो सकती थी। इससे पहले पर्थ वनडे में भी फील्डिंग का यही हाल रहा था और हमने रनआउट के आसान मौके भी खो दिए थे।