प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
भारत ने अन्य देशों के साथ की गई दर्जनों निवेश संधियों पर उनसे बाहर निकलने संबंधी शर्तें लगा दी हैं, ताकि विदेशी मुकदमेबाजी से बेहतर तरीके से निपटा जा सके। इसके लिए वह नए सिरे से बातचीत करना चाह रहा है।
जानिए इससे जुड़ी 10 अहम जानकारियां
- इन समझौतों में उन नियमों का खाका होगा, जिनके तहत भारत और विदेशी निवेशकों के बीच विवादों का निपटारा किया जाएगा। दिल्ली यानी भारत सरकार की ओर से लाए गए इन बदलावों से विदेशी निवेशकों के लिए सरकार के उन निर्णयों को कानूनी रूप से चुनौती देना मुश्किलभरा हो सकता है, जो भारत में उनके बिजनेस पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
- कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इस कदम का गलत असर भी पड़ सकता है और इससे निवेशक भयभीत हो सकते हैं, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश से भारत में नए बिजनेस लाने की मुहिम को झटका लग सकता है, जो उनकी मुख्य प्राथमिकता है।
- मई में भारत के वाणिज्य और वित्त मंत्रालय को भेजे एक पत्र में यूरोप के व्यापार कमिश्नर सीसिलिया माल्मस्ट्रॉम ने कहा था, 'कुछ निवेशक निवेश के इस माहौल को नुकसानदायक मान सकते हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'इस तरह के कदम भारत में निवेश को बढ़ावा देने के प्रयासों पर विपरीत प्रभाव डालेंगे।'
- हाल ही में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बीजिंग में एसोसिएटेड प्रेस से कहा था, 'हमारे पास इस पर दुबारा बातचीत करने का अधिकार है और ये सब हमारे विदेशी भागीदारों के साथ हमारी बातचीत का विषय होंगे।'
- नई आदर्श संधि शर्तों के तहत, विदेशी निवेशकों को किसी विवाद के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपील करने से पहले उसे सभी भारतीय न्यायिक संस्थानों के समझ निपटाना होगा। भारत के नए प्रारूप में सर्वाधिक पसंदीदा देश (एक मानक प्रावधान, जिसे इसलिए बनाया गया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निवेशकों के सामने सर्वोत्तम उपलब्ध शर्तें रखी जा रही हैं) वाली शर्त भी नहीं है।
- 2012 से कम से कम 60 देशों ने निवेश संबंधी समझौतों में सुधार करना शुरू कर दिया है, जिनमें भारत जैसी विकासशील सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और इंडोनेशिया भी शामिल हैं।
- निवेश संबंधी संधियों में पुनः बातचीत करके उनमें सुधार का विचार दरअसल पूर्वप्रभावी कर-निर्धारण (पिछली तारीख से कर-निर्धारण) या लाइसेंस रद्दकरण जैसे मामलों पर एक के बाद एक हुए कानूनी विवादों के बाद आया है।
- ब्रिटेन की कंपनी वोडोफोन का एक केस अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में सुनवाई के लिए लंबित है, जो 2.5 बिलियन डॉलर (250 करोड़ रुपए) से अधिक के बिल से जुड़ा हुआ है, जिसमें भारतीय कर प्राधिकारियों का कहना है कि 2012 में पास किए गए कानून के आधार पर इस कंपनी पर 2007 में खरीदी गई संपत्ति के संबंध में इतनी देनदारी बनती है।
- पिछले महीने, स्कॉटलैंड की तेल-गैस उत्खनन की कंपनी केयर्न एनर्जी पर लागू किए गए पूर्वप्रभावी कर-निर्धारण (पिछली तारीख से कर-निर्धारण) पर हेग में मध्यस्थता पैनल ने सुनवाई शुरू की है।
- यदि निवेशक विदेश में निवेश करके लाभ कमाने की इच्छा रखते हैं, तो अभी भी नई शर्तों से उन पर संभवतः प्रभाव नहीं पड़ेगा। नई दिल्ली में मौजूद विकासशील देशों के शोध और सूचना केंद्र के प्रमुख सचिन चतुर्वेदी ने कहा, 'एक बार नियम और विनियम सही ढंग से तय हो जाने पर निवेशकों के लिए इसका आंकलन करना अधिक आसान रहेगा।'