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अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मोस की तैनाती को लेकर चीन ने भारत को चेतावनी दी है. भारत ने उसकी चेतावनी को दरकिनार कर दिया है. भारतीय सेना ने स्पष्ट किया है कि उसके फैसले बीजिंग से तय नहीं होंगे. चीनी चिंता की पृष्ठभूमि में ब्रह्मोस से जुड़ी 10 खास बातों पर पेश है एक नजर...
ब्रह्मोस नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मसक्वा नदी पर रखा गया है. इसकी मारक क्षमता 290 किमी तक है. पूरी फ्लाइट के दौरान इसकी उच्च सुपरसोनिक स्पीड बरकरार रहती है.
यह 200 से 300 किग्रा तक के परंपरागत युद्धक सामग्री ले जाने में समर्थ है. इसे पनडुब्बी, पोत, एयरक्राफ्ट (अभी प्रयोग के स्तर पर) और जमीन से लांच किया जा सकता है.
यह ऑपरेशन के दौरान दुनिया की सबसे तेज पोत रोधी क्रूज मिसाइल है. इसकी स्पीड 2.8-3.0 मैक है. यह 'दागो और भूल जाओ' सिद्धांत पर आधारित है.
ब्रह्मोस लघु रेंज रेमजेट सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है. ये टू-स्टेज मिसाइल प्रणाली पर आधारित है. इसमें पहले चरण यानी ठोस प्रणोदक बूस्टर इंजन के माध्यम से सुपरसोनिक स्पीड प्राप्त होती है और फिर यह अलग हो जाती है.
दूसरे चरण यानी तरल रेमजेट इसे क्रूज फेज में तकरीबन तीन मैक की गति प्रदान करता है. स्टील्थ टेक्नोलॉजी, गाइडेंस सिस्टम और एडवांस टेक्नोलॉजी इसको विशिष्ट गति प्रदान करते हैं.
इसे भारत और रूस के संयुक्त उद्यम ब्रह्मोस एयरोस्पेस द्वारा निर्मित किया गया है. 12 फरवरी, 1998 को अंतर-सरकारी समझौते के तहत इस कंपनी की भारत में स्थापना की गई.
250 मिलियन डॉलर की पूंजी से शुरू की गई इस कंपनी में भारत की हिस्सेदारी 50.5 प्रतिशत और रूस की 49.5 प्रतिशत है. इसका भार तीन हजार किग्रा है. लंबाई 8.4 मी और व्यास 0.6 मी है.
हवाई हमलों को धार देने के लिए 7.0 मैक की स्पीड से सुपरसोनिक ब्रह्मोस-2 वर्जन फिलहाल प्रायोगिक स्तर है. अगले साल इसका टेस्ट किया जाना प्रस्तावित है.
वास्तव में भारत मध्यम रेंज क्रूज मिसाइल प्रणाली के तहत ब्रह्मोस का निर्माण करने का इच्छुक था लेकिन रूस ने अंतरराष्ट्रीय एमटीसीआर पाबंदियों के कारण लघु रेंज विकसित करने पर जोर दिया.
यह रूस की पी-800 ओनिक्स और वहां की इसी तरह की क्रूज मिसाइल तकनीक पर आधारित है.