नई दिल्ली:
चैत्र नवरात्र की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि स्कंदमाता की आराधना करने से भक्तों को संतान और धन की प्राप्ति होती है. माता की पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है. देवी के इस स्वरूप में सेवको और विद्वानों का पैदा करने की शक्ति है.
स्कंद शिव और पार्वती के दूसरे बेटे कार्तिकेय का एक नाम है. स्कंद की मां होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पड़ा. मां के इस रूप की चार भुजाएं हैं और इन्होंने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाला भुजा से कार्तिकेय को पकड़ा है और इसी तरफ वाली निचली भुजा में कमल का फूल है. बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा और नीचे वाली भुजा में श्वेत कमल का फूल है.
मां इतनी सरस है कि मां के चरणों में शरण लेने वाला कितना बड़ा पापी क्यों न हो लेकिन मां सबको अपने ममता के आंचल से ढ़क लेती है और उसके सारे पाप और दोघ को दूर करती है. मां स्कंद माता की पूजा इस मंत्र से प्रारम्भ करनी चाहिए.
सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया.
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
शास्त्रों मे बताया गया है कि स्कंदमाता की उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं. भक्त को मोक्ष मिलता है. सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है. अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है.
स्कंद शिव और पार्वती के दूसरे बेटे कार्तिकेय का एक नाम है. स्कंद की मां होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पड़ा. मां के इस रूप की चार भुजाएं हैं और इन्होंने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाला भुजा से कार्तिकेय को पकड़ा है और इसी तरफ वाली निचली भुजा में कमल का फूल है. बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा और नीचे वाली भुजा में श्वेत कमल का फूल है.
मां इतनी सरस है कि मां के चरणों में शरण लेने वाला कितना बड़ा पापी क्यों न हो लेकिन मां सबको अपने ममता के आंचल से ढ़क लेती है और उसके सारे पाप और दोघ को दूर करती है. मां स्कंद माता की पूजा इस मंत्र से प्रारम्भ करनी चाहिए.
सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया.
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
शास्त्रों मे बताया गया है कि स्कंदमाता की उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं. भक्त को मोक्ष मिलता है. सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है. अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है.
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