विज्ञापन
This Article is From Jan 10, 2017

जानिए कैसे मनाते हैं पोंगल पर्व, क्या-क्या होता है इस दिन और क्या है इसका इतिहास

जानिए कैसे मनाते हैं पोंगल पर्व, क्या-क्या होता है इस दिन और क्या है इसका इतिहास
मट्टू पोंगल के दिन जीविकोपार्जन में सहायक पशुओं के प्रति आभार जताया जाता है (फाइल फोटो).
पोंगल दक्षिण भारत, विशेष कर तमिलनाडु, का पर्व है, जो मकर संक्रांति के मौके पर मनाया जाता है. यह पर्व तब मनाया जाता है, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं और उत्तरायण होते हैं. इसलिए यह उत्तरायण पर्व भी कहलाता है.

क्यों मनाया जाता है पोंगल
भारत के अधिकांश पर्व की तरह पोंगल भी एक कृषि-त्यौहार है. खेती-बारी का सीधा सम्बन्ध ऋतुओं से है और ऋतुओं का सीधा सम्बन्ध सूर्य से है. इसलिए इस दिन विधिवत सूर्य पूजा की जाती है. वास्तव में इस पर्व के अवसर पर किसान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और जीविकोपार्जन में उनकी सहायता करने लिए अपना आभार व्यक्त करते हैं.

लोहड़ी 2017 स्पेशल: जानिए क्या है पंजाब के लोक नायक दुल्ला भट्टी की कहानी

इस त्यौहार को पोंगल इसलिए कहते हैं, क्योंकि इस दिन भगवान सूर्यदेव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है, तमिलनाडु में उसे पोंगल कहते हैं. तमिल भाषा में पोंगल का है: अच्छी तरह से उबालना और सूर्य देवता को भोग लगाना.

सदियों से चली आ रही परंपरा और रिवाजों के अनुसार इस दिन तमिलनाडु के लोग दूध से भरे एक बरतन को ईख, हल्दी और अदरक के पत्तों को धागे से सिलकर बांधते हैं और उसे प्रज्वलित अग्नि में गर्म करते हैं और उसमें चावल डालकर खीर बनाते हैं. फिर उसे सूर्यदेव को समर्पित किया जाता है.

पोंगल को छुट्टियों की केंद्रीय सूची में शामिल करने की मांग, तमिलनाडु के CM ने किया अनुरोध

तमिलनाडु में पोंगल का विशेष महत्व है. इस दिन से तमिल कैलेण्डर के महीने की पहली तारीख को आरम्भ होता है. इस प्रकार पोंगल एक तरह से नववर्ष के आरम्भ का भी प्रतीक है.

चार दिनों का उत्सव है पोंगल
तमिल समुदाय में पोंगल चार दिनों तक मनाया है, पहले दिन घरों की साफ-सफाई की जाती है और सफाई से निकले पुराने सामानों से ‘भोगी’ जलाई जाती है. दूसरे दिन लोग अपने-अपने घरों में मीठे पकवान चकरई पोंगल बनाते हैं, जो सूर्य देवता को समर्पित किया जाता है. इस अवसर पर चावल के आटे से सूर्य की आकृति भी बनाई जाती है.

तीसरे दिन मट्टू पोंगल मनाया जाता है. जिसमें जीविकोपार्जन में सहायक पशुओं के प्रति आभार जताया जाता है और गाय-बैलों को नहलाकर संवारा जाता है. महिलाएं पक्षियों को रंगे चावल खिलाकर अपने भाई के कुशल-क्षेम और कल्याण की कामना करती हैं. इस पर्व का समापन चौथे दिन कन्नुम पोंगल के साथ होता है, जब लोग अपने नाते-रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने उनके घर जाते हैं और एक-दूसरे को शुभकामना सन्देश देते हैं.

मकर संक्रांति पर श्रद्धालुओं के पुण्य-स्नान के लिए क्षिप्रा में छोड़ा जाएगा नर्मदा नदी का जल

पोंगल की ऐतिहासिकता
पोंगल पर्व का प्राचीनतम विवरण 200 वर्ष ईसा पूर्व से 300 वर्ष ईसापूर्व में लिखित संगम साहित्य के ग्रंथों में प्राप्त होता है. तब इसे द्रविण शस्य उत्सव कहा जाता था.

संगम ग्रन्थों में थाई उन और थाई निरदल नामक पर्व की चर्चा है, जिसे पोंगल का प्राचीन स्वरूप बताया जाता है. दक्षिण भारत के प्राचीन शासकों, जैसे पल्लव, पांडय, चोल काल में इस दिन विशेष आयोजन, जैसे सामूहिक भोज, भूमि दान, बैलों की दौड़ (जल्लिकट्टू) आदि किये जाने के विवरण मिलते हैं.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
क्यों मनाते हैं पोंगल, पोंगल त्यौहार, मकर संक्रांति और पोंगल, Why Pongal Is Celebrated, Pongal Festival, Makar Sankranti And Pongal
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com