
Vaman Jayanti 2025 Puja Vidhi: हिंदू धर्म में भाद्रपद शुक्लपक्ष की द्वादशी का बहुत महत्व माना गया है क्योंकि इसी दिन भगवान श्री विष्णु के पांचवे अवतार वामन देवता की जयंती मनाई जाती है. मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल द्वादशी के श्रवण नक्षत्र में अभिजित मुहूर्त में भगवान वामन का प्राकट्य हुआ था. श्री हरि के तमाम तरह के अवतारों में भगवान वामन की पूजा का क्या धार्मिक महत्व है और उनकी पूजा आज के दिन किस विधि से करनी चाहिए? आइए इसे विस्तार से जानते हैं.
भगवान वामन की पूजा कैसे करते हैं?
हिंदू मान्यता के अनुसार वामन जयंती के दिन भगवान वामन का आशीर्वाद पाने के लिए व्यक्ति को प्रात:काल स्नान-ध्यान करके तन-मन से पवित्र हो जाना चाहिए. इसके बाद भगवान वामन का व्रत और पूजन विधि-विधान से करने का संकल्प लेना चाहिए. वामन जयंती के दिन भगवान वामन की पूजा हमेशा अभिजित मुहूर्त में करना चाहिए क्योंकि उनका प्राकट्य इसी समय हुआ था. पंचांग के अनुसार आज अभिजित मुहूर्त प्रात:काल 11:55 से लेकर दोपहर 12:45 बजे तक रहेगा. ऐसे में इसी शुभ मुहूर्त में भगवान वामन का अपने सामर्थ्य के अनुसार पंचोपचार या फिर षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए.
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वामन जयंती के दिन शाम के समय दोबारा वामन देवता की पूजा का विधान है. ऐसे में शाम के समय एक बार फिर स्नान करके भगवान वामन की पूजा और उनकी अनंत कथा का पाठ करना चाहिए. व्रत रखने वाले साधक को वामन जयंती के दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार किसी मंदिर के पुजारी या ब्राह्मण को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए.
वामन जयंती से जुड़ी कथा
हिंदू मान्यता के अनुसार एक बार दैत्यराज बल ने पृथ्वीलोक और स्वर्गलोक पर अपना अधिकार जमा लिया. जिसके बाद इंद्र भगवान के साथ सभी देवतागण भगवान श्री विष्णु की शरण में गये और अपनी पीड़ा को दूर करने के लिए प्रार्थना की. तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर तुम्हें तुम्हारा स्वर्गलोक वापस दिलाऊंगा. मान्यता है कि इसके बाद शुभ ग्रह-नक्षत्रों भाद्रपद मास की द्वादशी तिथि परभगवान वामन का प्राकट्य हुआ. इसके बाद जब राजा बलि यज्ञ कर रहे थे तो उस समय भगवान विष्णु वामन के रूप में उनके पास पहुंचे और उनसे तीन पग भूमि दान के रूप में मांगी.
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तब राजा बलि ने उनसे कीमती चीजों को मांगने को कहा लेकिन वामन भगवान ने सिर्फ तीन पग ही मांगी. इसके बाद जब राजा बलि ने उन्हें तीन पग भूमि देने पर सहमति जता दी तो श्री हरि के वामन अवतार ने एक पग में भूलोक और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया. इसके बाद जब तीसरे पग के लिए कुछ नहीं बचा तो राजा बलि ने अपना सिर उसे रखने के लिए दे दिया. मान्यता है कि भगवान विष्णु ने राजा बलि की दानवीरता और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें पाताल लोक आधिकार दे दिया और उन्हें साल में एक बार पृथ्वी पर आने का अधिकार दिया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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