देहरादून:
उत्तराखंड सरकार ने कहा कि हरिद्वार में स्थित मठ, मंदिरों, धर्मशालाओं और आश्रमों के उस हिस्से का जल मूल्य तथा सीवरेज शुल्क खत्म करने के बारे में विचार किया जायेगा जिसका इस्तेमाल वे बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को निशुल्क ठहराने के लिये करते हैं।
राज्य विधानसभा में शून्यकाल के दौरान भाजपा विधायक मदन कौशिक द्वारा कार्य स्थगन प्रस्ताव के जरिये उठाये गये इस मुददे का जवाब देते हुए पेयजल मंत्री मंत्रीप्रसाद नैथानी ने कहा कि हरिद्वार में स्थित मठ, मंदिरों, धर्मशालाओं और आश्रमों के उस हिस्से का जल मूल्य और सीवरेज मूल्य समाप्त करने पर राज्य सरकार विचार करेगी जहां बाहर से आने वाले श्रद्घालुओं के रहने और खाने-पीने की व्यवस्था वे निशुल्क करते हैं।
...लेकिन पहले होगा आश्रमों, मठों और मंदिरों का पंजीकरण
हालांकि, नैथानी ने कहा कि इस संबंध में किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले आश्रमों, मठों और मंदिरों का पंजीकरण तथा परीक्षण करवाया जायेगा। इससे पहले, कौशिक ने कहा कि कुंभ और अर्धकुंभ को छोडकर हरिद्वार में साल भर में कम से कम 40 ऐसे मेले या पर्व होते हैं जब बाहर से 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालु गंगा में स्नान करने आते हैं और उन सबके रहने और खाने की व्यवस्था करना सरकार के बस में नहीं होता।
उन्होंने कहा कि ऐसे में ये मठ, मंदिर और आश्रम जैसी धार्मिक और सामाजिक संस्थायें ही श्रद्धालुओं को ठहराती हैं जहां उनसे रहने और खाने का खर्चा भी नहीं लिया जाता। पिछले कुछ सालों से इन संस्थाओं को भी जल मूल्य और सीवरेज शुल्क के दायरे में ले आया गया है जबकि उनका ज्यादातर हिस्सा साल में केवल 40 दिन ही प्रयुक्त होता है और उसका इस्तेमाल भी वे श्रद्धालुओं को निशुल्क ठहराने के लिये करते हैं।
श्रद्धालुओं को निशुल्क जल आपूर्ति
कौशिक ने कहा कि आश्रम या मठ के केवल उस हिस्से पर जल-मूल्य और सीवरेज शुल्क लिया जाना चाहिये जो वह खुद प्रयोग कर रहे हैं या उसे किराये पर दे रहे हैं और श्रद्धालुओं को निशुल्क दिये जाने वाले हिस्से को इससे मुक्त कर दिया जाना चाहिये।
मंत्री नैथानी ने कहा कि इन संस्थाओं पर जल कर और सीवरेज कर पहले से ही माफ है और अगर जल मूल्य और सीवरेज शुल्क भी घरेलू दर से लिया जा रहा है और अगर उसमें भी छूट दी गयी तो स्वायत्तशासी उत्तराखंड जल संस्थान की वित्तीय स्थिति और बिगड़ जायेगी।
हालांकि, कौशिक द्वारा जोर दिये जाने पर मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार इस पर विचार करेगी लेकिन इससे पहले आश्रमों और मठों का पंजीकरण करवा कर उनका परीक्षण करवाया जायेगा।
राज्य विधानसभा में शून्यकाल के दौरान भाजपा विधायक मदन कौशिक द्वारा कार्य स्थगन प्रस्ताव के जरिये उठाये गये इस मुददे का जवाब देते हुए पेयजल मंत्री मंत्रीप्रसाद नैथानी ने कहा कि हरिद्वार में स्थित मठ, मंदिरों, धर्मशालाओं और आश्रमों के उस हिस्से का जल मूल्य और सीवरेज मूल्य समाप्त करने पर राज्य सरकार विचार करेगी जहां बाहर से आने वाले श्रद्घालुओं के रहने और खाने-पीने की व्यवस्था वे निशुल्क करते हैं।
...लेकिन पहले होगा आश्रमों, मठों और मंदिरों का पंजीकरण
हालांकि, नैथानी ने कहा कि इस संबंध में किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले आश्रमों, मठों और मंदिरों का पंजीकरण तथा परीक्षण करवाया जायेगा। इससे पहले, कौशिक ने कहा कि कुंभ और अर्धकुंभ को छोडकर हरिद्वार में साल भर में कम से कम 40 ऐसे मेले या पर्व होते हैं जब बाहर से 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालु गंगा में स्नान करने आते हैं और उन सबके रहने और खाने की व्यवस्था करना सरकार के बस में नहीं होता।
उन्होंने कहा कि ऐसे में ये मठ, मंदिर और आश्रम जैसी धार्मिक और सामाजिक संस्थायें ही श्रद्धालुओं को ठहराती हैं जहां उनसे रहने और खाने का खर्चा भी नहीं लिया जाता। पिछले कुछ सालों से इन संस्थाओं को भी जल मूल्य और सीवरेज शुल्क के दायरे में ले आया गया है जबकि उनका ज्यादातर हिस्सा साल में केवल 40 दिन ही प्रयुक्त होता है और उसका इस्तेमाल भी वे श्रद्धालुओं को निशुल्क ठहराने के लिये करते हैं।
श्रद्धालुओं को निशुल्क जल आपूर्ति
कौशिक ने कहा कि आश्रम या मठ के केवल उस हिस्से पर जल-मूल्य और सीवरेज शुल्क लिया जाना चाहिये जो वह खुद प्रयोग कर रहे हैं या उसे किराये पर दे रहे हैं और श्रद्धालुओं को निशुल्क दिये जाने वाले हिस्से को इससे मुक्त कर दिया जाना चाहिये।
मंत्री नैथानी ने कहा कि इन संस्थाओं पर जल कर और सीवरेज कर पहले से ही माफ है और अगर जल मूल्य और सीवरेज शुल्क भी घरेलू दर से लिया जा रहा है और अगर उसमें भी छूट दी गयी तो स्वायत्तशासी उत्तराखंड जल संस्थान की वित्तीय स्थिति और बिगड़ जायेगी।
हालांकि, कौशिक द्वारा जोर दिये जाने पर मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार इस पर विचार करेगी लेकिन इससे पहले आश्रमों और मठों का पंजीकरण करवा कर उनका परीक्षण करवाया जायेगा।
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