आज गुजरात में जहां देवी अम्बाजी का मंदिर है, कहते हैं वहां देवी सती के हृदय का एक टुकड़ा गिरा था. इस मंदिर की गणना देश के 51 शक्तिपीठों में की जाती है. श्रद्धालुओं की इस मंदिर के प्रति और देवी अम्बा के प्रति अगाध आस्था है. लेकिन इस बेहद प्राचीन मंदिर के गर्भगृह में देवी की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है. इस मंदिर में देवी के विग्रह के स्थान पर एक श्री यंत्र स्थापित है. इस श्री यंत्र को कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि मां अम्बा यहां साक्षात विराजमान है.
इसके समीप ही पवित्र अखण्ड ज्योति जलती है, जिसके बारे में कहते हैं कि यह कभी नहीं बुझी. गुजरात का यह प्रसिद्ध मंदिर गुजरात-राजस्थान सीमा पर अरासुर पर्वत के समीप आबू रोड पर कडियाद्रा के पास स्थित है. कहते हैं, वर्तमान यह मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है, जिसका जीर्णोद्धार 1975 में हुआ था. श्वेत संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बेहद भव्य है. मंदिर का शिखर एक सौ तीन फुट ऊंचा है. शिखर पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं.
इस मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर गब्बर पहाड़ी देवी मां का प्राचीन मंदिर है. लोग बताते हैं, यहां एक पत्थर पर देवी अम्बा मां के पदचिह्न बने हैं. पदचिह्नों के साथ-साथ रथचिह्न भी बने हैं. इस मंदिर के विषय में एक प्रचलित मान्यता यह है कि यहां पर भगवान् श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था. लोग यह भी मानते हैं कि भगवान राम भी शक्ति-उपासना के लिए यहां आए थे.
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इसके समीप ही पवित्र अखण्ड ज्योति जलती है, जिसके बारे में कहते हैं कि यह कभी नहीं बुझी. गुजरात का यह प्रसिद्ध मंदिर गुजरात-राजस्थान सीमा पर अरासुर पर्वत के समीप आबू रोड पर कडियाद्रा के पास स्थित है. कहते हैं, वर्तमान यह मंदिर लगभग बारह सौ साल पुराना है, जिसका जीर्णोद्धार 1975 में हुआ था. श्वेत संगमरमर से निर्मित यह मंदिर बेहद भव्य है. मंदिर का शिखर एक सौ तीन फुट ऊंचा है. शिखर पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं.
इस मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर गब्बर पहाड़ी देवी मां का प्राचीन मंदिर है. लोग बताते हैं, यहां एक पत्थर पर देवी अम्बा मां के पदचिह्न बने हैं. पदचिह्नों के साथ-साथ रथचिह्न भी बने हैं. इस मंदिर के विषय में एक प्रचलित मान्यता यह है कि यहां पर भगवान् श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था. लोग यह भी मानते हैं कि भगवान राम भी शक्ति-उपासना के लिए यहां आए थे.
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