प्रतीकात्मक चित्र
देश का दिल कहे जाने वाले राज्य मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के रन्नौद में एक जैन मंदिर में खुदाई के दौरान मुगलकालीन खजाना मिला है। यह मंदिर 800 साल पुराना है, जिसकी 14 इंच मोटी एक दीवार को तोड़ते वक्त यह खजाना प्राप्त हुआ।
ऐसे पहुंचा पुलिस तक मामला...
दीवार को तोड़ते वक्त मजदूरों को मिट्टी के कलश में बंद सोने-चांदी के सिक्के मिले, जिसका वजन तीन किलो से ज्यादा बताया जा रहा है। इसे मजदूरों ने आपस में बांट लिया, लेकिन बंटवारे को लेकर उनमें लड़ाई हो गई, जिस कारण से मामला पुलिस तक पहुंच गया।
कब का है ये खजाना...
ये खजाना कब का है और इस मंदिर में कहां से आया इस बारे में काफी कुछ कयास लगाया जा रहा है। लेकिन सोने और चांदी के सिक्कों को देखकर साफ़ पता लगता है कि ये सल्तनत या मुग़ल काल के हैं, क्योंकि इन सिक्कों पर लिखी इबारत फारसी और उर्दू में हैं।
आईने अकबरी में है रन्नौद का जिक्र...
शिवपुरी जिला मुख्यालय से लगभग 60 किमी दूर कोलारस में बसा रन्नौद मध्यकाल का एक महत्वपूर्ण नगर था। इसका जिक्र मुग़लकाल के सबसे प्रामाणिक दस्तावेज 'आईने अकबरी' में भी है, जो इसे संपन्न नगर बताता है।
दक्षिण भारत के लिए पड़ाव था रन्नौद...
इतिहासकारों का कहना है कि कभी दक्षिण भारत की यात्रा का रास्ता रन्नौद से होकर जाता था। मोहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह सूरी, बाबर, औरंगजेब जैसे अनेक मुगल बादशाहों की सेनाएं दक्षिण की विजय यात्राओं के दौरान यहां पड़ाव डाला करती थी।
रन्नौद का जैन इतिहास...
इतिहास कहता है कि जब मुगल शासकों ने रन्नौद की जागीर पिंडारियों को सौंपी थी, तब यहां के जागीरदार जैन धर्म के अनुयायी थे। यह जागीर 200 साल तक जैनियों के नियंत्रण में रही। उनके वंशज अब भी रन्नौद में हैं। रन्नौद के प्राचीन मंदिर, देवालय, मठ, मस्जिदें और दरगाह, इसकी महत्ता और प्राचीनता की कहानी आज भी खुद बयान करती हैं।
ऐसे पहुंचा पुलिस तक मामला...
दीवार को तोड़ते वक्त मजदूरों को मिट्टी के कलश में बंद सोने-चांदी के सिक्के मिले, जिसका वजन तीन किलो से ज्यादा बताया जा रहा है। इसे मजदूरों ने आपस में बांट लिया, लेकिन बंटवारे को लेकर उनमें लड़ाई हो गई, जिस कारण से मामला पुलिस तक पहुंच गया।
कब का है ये खजाना...
ये खजाना कब का है और इस मंदिर में कहां से आया इस बारे में काफी कुछ कयास लगाया जा रहा है। लेकिन सोने और चांदी के सिक्कों को देखकर साफ़ पता लगता है कि ये सल्तनत या मुग़ल काल के हैं, क्योंकि इन सिक्कों पर लिखी इबारत फारसी और उर्दू में हैं।
आईने अकबरी में है रन्नौद का जिक्र...
शिवपुरी जिला मुख्यालय से लगभग 60 किमी दूर कोलारस में बसा रन्नौद मध्यकाल का एक महत्वपूर्ण नगर था। इसका जिक्र मुग़लकाल के सबसे प्रामाणिक दस्तावेज 'आईने अकबरी' में भी है, जो इसे संपन्न नगर बताता है।
दक्षिण भारत के लिए पड़ाव था रन्नौद...
इतिहासकारों का कहना है कि कभी दक्षिण भारत की यात्रा का रास्ता रन्नौद से होकर जाता था। मोहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह सूरी, बाबर, औरंगजेब जैसे अनेक मुगल बादशाहों की सेनाएं दक्षिण की विजय यात्राओं के दौरान यहां पड़ाव डाला करती थी।
रन्नौद का जैन इतिहास...
इतिहास कहता है कि जब मुगल शासकों ने रन्नौद की जागीर पिंडारियों को सौंपी थी, तब यहां के जागीरदार जैन धर्म के अनुयायी थे। यह जागीर 200 साल तक जैनियों के नियंत्रण में रही। उनके वंशज अब भी रन्नौद में हैं। रन्नौद के प्राचीन मंदिर, देवालय, मठ, मस्जिदें और दरगाह, इसकी महत्ता और प्राचीनता की कहानी आज भी खुद बयान करती हैं।
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