Ramzan 2020: कोरोनावायरस (Coronavirus)के चलते इस बार देश के मुसलमान अलग तरह के रजमान (Ramzan) के गवाह बनने जा रहे हैं. दरअसल, कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए मस्जिदें बंद हैं, इफ्तार पार्टी आयोजित करने पर रोक है. साथ ही सामाजिक मेल-जोल से दूरी के नियम के चलते सहरी के दौरान सड़कों पर रौनक भी नहीं दिखेगी.
भारत में 24 अप्रैल से रजमान का महीना शुरू होने की संभावना है. इस पवित्र महीने में मुसलमान सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोजा (उपवास) रखते हैं.
रमजान के शुरुआती कुछ दिनों पर कोरोनावायरस महामारी का साया मंडरा रहा है. देशभर में कम से कम तीन मई तक लॉकडाउन लागू है. इस दौरान हर साल की तरह रमजान की रौनक दिखाई नहीं देगी. लोग न तो सामूहिक रूप से नमाज अदा कर पाएंगे और न ही इफ्तार पार्टी आयोजित कर सकेंगे.
केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने वक्फ बोर्डों को रमजान के दौरान लॉकडाउन और भौतिक दूरी के नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है.
दिल्ली की जामा मस्जिद के निकट खान-पान की दुकान चलाने वाले मोहम्मद नवेद कहते हैं, ''हमारे पूर्वजों ने भी अपनी जिंदगी में ऐसा रमजान नहीं देखा होगा. यह शायद अपनी तरह का पहला रजमान का महीना होगा.''
उन्होंने कहा, ''हम इस दौरान खाने-पीने के सामान और तोहफों का आदान-प्रदान किया करते थे, अमीर और गरीब मिलकर रोजा खोलते थे. इस साल वह सबकुछ नहीं होगा.''
आम दिनों में जामा मस्जिद के बाहर गलियां जगमग रहती थी, कहीं से हलीम की तो कहीं से बिरयानी की, कहीं से कबाबों की खुशबू आ रही होती थी. हजारों लोग इस इलाके की दुकानों में खाने और रौनक देखने आते थे, लेकिन इस बार सबकुछ अलग है.
वहीं, अलीगढ़ में समीना आलम कहती हैं यह शादी के बाद उनका पहला रमजान होगा, लेकिन इस बार यह महीना रूखा-सूखा ही गुजरेगा.
उन्होंने कहा, ''इस बार मैंने त्योहार और कपड़ों पर खर्च होने वाला पैसा दान करने का फैसला लिया है. मैंने वह पैसा अलग कर लिया है, जिसे मैं प्रवासी कामगारों को दान करूंगी.''
लेखिका रकशंदा जलील ने सभी मुसलमानों से जहां तक संभव हो सके, पैसा और जरूरी सामान जरूरतमंद लोगों को दान करने की अपील की है.
उन्होंने कहा, ''''मेरे परिवार में, रमजान हमेशा आत्मनिरीक्षण का समय होता है. हम रोजे रखेंगे, इबादत करेंगे, कुरान पढ़ेंगे और दुआएं मांगेगे. हम आम तौर पर तरावीह (रमजान के दौरान रात में पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज) पढ़ने नहीं जाते. हमारे लिये इस बार भी कोई खास अंतर नहीं होगा.''
वहीं, मुंबई के कोलाबा में दारुल उलूम हनफिया के मौलाना कारी नियाज अहमद कादरी ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसा कभी नहीं देखा.
उन्होंने कहा, ''मैंने 60 से 70 साल के बीच की उम्र के अपने बड़ों से पूछा कि इस बार उनके लिये रमजान कैसे होंगे... तो उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसा रजमान का महीना कभी नहीं देखा जब मस्जिदें बंद हो और लोगों को घरों में नमाज अदा करने के लिये कहा गया हो.''
औरंगाबाद के मशहूर न्यूरोसर्जन अब्दुल माजिद कहते हैं कि लॉकडाउन ने मुसलमानों को तपस्या और पवित्रता के सच्चे सिद्धांतों पर आधारित ''आदर्श रमजान'' गुजारने का मौका दिया है.
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