राम नवमी (Ram Navami) देश भर में धूमधाम के साथ मनाई जाती है. न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व के जिस भी कोने में हिन्दू रह रहे हैं वह इस त्योहार को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं. मान्यता है कि राम नवमी के दिन ही सृष्टि के रचयिता श्री हरि विष्णु के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम (Lord Rama) ने जन्म लिया था. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार श्री राम ने लंकापति रावण (Ravana) का संहार कर धर्म की स्थापना की थी. राम नवमी के दिन लोग मंदिरों में विशेष-पूजा अर्चना करते हैं. इस दिन लोग व्रत भी रखते हैं और अपने आराध्य रामलला (Ram Lala) को झूला भी झुलाते हैं. हालांकि इस बार कोरोनावायरस (Coronavirus) के चलते देश भर में लॉकडाउने (Lockdown) है और मंदिर व धार्मिक स्थानों में सन्नाटा है. इसके बावजूद लोग अपने-अपने घरों में विधिवत राम नवमी का त्योहार मना रहे हैं और भगवान राम की पूजा कर रहे हैं.
राम नवमी कब है?
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार राम नवमी हर साल चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह पर्व हर साल मार्च या अप्रैल महीने में आता है. इस बार राम नवमी (Ram Navami) 2 अप्रैल को है.
राम नवमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
राम नवमी की तिथि: 2 अप्रैल 2020
नवमी तिथि प्रारंभ: 2 अप्रैल 2020 को सुबह 3 बजकर 40 मिनट से
नवमी तिथि समाप्त: 3 अप्रैल 2020 को सुबह 2 बजकर 43 मिनट तक
राम नवमी मध्याह्न मुहूर्त: 2 अप्रैल 2020 को सुबह 11 बजकर 10 मिनट से दोपहर 1 बजकर 40 मिनट तक
अवधि: 2 घंटे 30 मिनट
राम नवमी मध्याह्न काल: दोपहर 12 बजकर 25 मिनट
राम नवमी का महत्व
हिन्दू धर्म में राम नवमी का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने अयोध्या के राजा दशरथ की पहली पत्नी कौशल्या की कोख से भगवान राम के रूप में मनुष्य जन्म लिया था. हिन्दू मान्यताओं में भगवान राम को सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है. कहा जाता है कि श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने जिस राम चरित मानस की रचना की थी, उसका आरंभ भी उन्होंने इसी दिन से किया था.
कैसे मनाई जाती है राम नवमी
राम नवमी के दिन नपर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की विशेष पूजा-अर्चना का विधान है. भक्त अपने आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम राम के लिए दिन भर उपवास रखते हैं. घरों में रामलाल के जन्मोत्सव के मौके पर उन्हें पालने में झुलाया जाता है और विशेष रूप से खीर का भोग लगाने की परंपरा है. इसी दिन चैत्र नवरात्रि का नौवां यानी कि अंतिम दिन होता है जिसका समापन कन्या पूजन के साथ किया जाता है. इस दिन हजारों की संख्या में भक्त भगवान राम की जन्म स्थली अयोध्या पहुंचर सरयू नदी में स्नान करते हैं. मान्यता है कि इस दिन सरयू नदी में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्तों को भगवान राम की असीम कृपा प्राप्त होती है. कहा जाता है कि राम नवमी के दिन भगवान राम की विधि-विधान से पूजा करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है.
राम नवमी की पूजन विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब भगवान राम का नाम लेते हुए व्रत का संकल्प लें.
- अब घर के मंदिर में राम दरबार की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना कर उसमें गंगाजल छिड़कें.
- अब तस्वीर या मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाकर रखें.
- अब रामलला की मूर्ति को पालने में बैठाएं.
- अब रामलला को स्नान कराकर वस्त्र और पाला पहनाएं.
- इसके बाद रामलला को मौसमी फल, मेवे और मिठाई समर्पित करें. खीर का भोग लगाना अति उत्तम माना जाता है.
- अब रामलला को झूला झुलाएं.
- इसके बाद धूप-बत्ती से उनकी आरती उतारें.
- आरती के बाद रामायण और राम रक्षास्त्रोत का पाठ करें.
- अब नौ कन्याओं को घर में बुलाकर उनको भोजन कराएं. साथ ही यथाशक्ति उपहार और भेंट देकर विदा करें.
- इसके बाद घर के सभी सदस्यों में प्रसाद बांटकर व्रत का पारण करें.
श्री राम जन्मकथा
भगवान श्री राम के जन्म की कथा का वर्णन वाल्मिकी रामायण और रामचरितमानस दोनों में ही मिलता है. जहां महर्षि वाल्मिकी श्री राम को मानव मात्र के रूप में वर्णित करते हैं, वहीं, महाकवि तुलसीदास उन्हें ईश्वर बताते हुए उनकी व्याख्या करते हैं. कथा के मुताबिक अयोध्या नरेश दशरथ की तीन पत्नियां थी, किसी तरह का कोई दुख नहीं था लेकिन एक चिंता थी कि तीनों रानियों में से किसी से भी पुत्र प्राप्ति न होने से राज्य के उत्तराधिकारी का संकट छा रहा था. तब महाराज दशरथ की गुरुमाता महर्षि वशिष्ठ की पत्नी ने इस पर चिंता जताते हुए अपनी शंका जाहिर की कि "आपके शिष्य पुत्र विहीन हैं ऐसे में राज-पाट को उनके बाद कौन संभालेगा?" तब महर्षि बोले कि "जब दशरथ के मन में यह विषय है ही नहीं तो फिर बात कैसे आगे बढ़ सकती है." तब गुरुमाता एक दिन अपने पुत्र को गोद में लेकर दशरथ के महल में जा पंहुची. गुरु मां की गोद में बालक को देखकर दशरथ लाड़ लड़ाने लगे. तब गुरु मां ने कहा कि "आप तो महर्षि के शिष्य हैं, लेकिन आपका तो कोई पुत्र नहीं है. ऐसे में इसका शिष्य कौन बनेगा." गुरु मां के वचन सुनकर दशरथ को ग्लानि हुई और वे महर्षि वशिष्ठ से पुत्र प्राप्ति के उपाय हेतु उनके चरणों में गिर पड़े.
इस पर महर्षि ने कहा कि "आपको पुत्र प्राप्ति तो हो सकती है लेकिन उसके लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाना पड़ेगा." तब दशरथ बोले- "गुरुदेव तो देर किस बात की है जब चाहे आप शुरू कर सकते हैं." तब महर्षि बोले- "राजन! यह इतना सरल नहीं है. जो भी पुत्रेष्ठि यज्ञ करेगा उसे अपनी पूरे जीवन की साधना की इस यज्ञ में आहुति देनी पड़ेगी." दशरथ चिंतित हुए बोले- "हे ऋषि श्रेष्ठ! ऐसा करने के लिए कौन तैयार हो सकता है?" फिर उन्होंने दशरथ की पुत्री शांता की याद दिलाई जिसे उन्होंने रोमपाद नामक राजा को गोद दे दिया था और उन्होंने शांता का विवाह ऋंग ऋषि से किया था. महर्षि बोले यदि शांता चाहे तो ऋंग ऋषि से यह यज्ञ करवाया जा सकता है. तब शांता ने अपने पति ऋषि ऋंग को इसके लिये तैयार किया बदले में इतना धन उन्हें दान में दिया गया जो उनकी अपनी संतान के भरण-पोषण के लिए जीवन पर्यंत पर्याप्त रहे.
यज्ञ करवाया गया और हवन कुंड से प्राप्त खीर तीनों रानियों कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी को दी गई. प्रसाद ग्रहण करने से तीनों रानियों ने गर्भधारण किया और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल, शनि, बृहस्पति तथा शुक्र जब अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे तब कर्क लग्न का उदय होते ही माता कौशल्या के गर्भ से भगवान श्री विष्णु श्री राम रूप में अवतरित हुए. इनके पश्चात शुभ नक्षत्रों में ही कैकेयी से भरत व सुमित्रा से लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने जन्म लिया.
समस्त राज्य में आनंद उल्लास छा गया. महाराज दशरथ ने राजद्वार पर आशीर्वाद देने पंहुचे समस्त भाट, चारण, ब्राह्मणो व गरीबों को दान दक्षिणा देकर विदा किया. महर्षि वशिष्ठ ने चारों पुत्रों का नामकरण किया.
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