श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति (SJTMC) ने 23 जून को प्रस्तावित, भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध वार्षिक यात्रा के लिए रथों का निर्माण शुरू करने पर सोमवार को सहमति जताई. पुरी के गजपति महाराज दिव्य सिंह देव की अध्यक्षता में SJTMC की बैठक में यह फैसला लिया गया. कोरोनावायरस (Coronavirus) के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की वजह से रथों का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया था.
बैठक के बाद देव ने पत्रकारों को बताया, "प्रबंध समिति ने सर्वसम्मति से रथों के निर्माण को शुरू करने पर सहमति जताई क्योंकि यह धार्मिक समारोह नहीं है बल्कि निर्माण कार्य से जुड़ी गतिविधि है."
हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि मामले पर अंतिम फैसला राज्य सरकार लेगी.
उन्होंने कहा कि पुरी में अब तक कोविड-19 का एक भी मामला सामने नहीं आया है.
देव ने बताया कि पुरी शहर ग्रीन ज़ोन में आता है इसलिए निर्माण कार्यों पर कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए.
रथ यात्रा क्या है?
रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, भगवान बालभद्र और देवी सुभद्रा अपने घर यानी कि जगन्नाथ मंदिर से रथ में बैठकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं. गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है.
रथ यात्रा में क्या होता है?
भगवान जगन्नाथ के रथ के सामने सोने के हत्थे वाले झाड़ू को लगाकर रथ यात्रा को आरंभ किया जाता है. उसके बाद पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप के बीच तीन विशाल रथों को सैंकड़ों लोग खींचते हैं. इस क्रम में सबसे पहले बालभद्र का रथ प्रस्थान करता है. उसके बाद बहन सुभद्रा का रथ चलता है. फिर आखिर में भगवान जगन्नाथ का रथ खींचा जाता है.
मान्यता है कि रथ खींचने वाले लोगों के सभी दुख दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है. नगर भ्रमण करते हुए शाम को ये तीनों रथ गुंडिचा मंदिर पहुंच जाते हैं. अगले दिन भगवान रथ से उतर कर मंदिर में प्रवेश करते हैं और सात दिन वहीं रहते हैं.
गौरतलब है कि भारत में जिस तरह होली, दीपावली, रक्षाबंधन, बैसाखी, ईद और क्रिसमस का महत्व है उसी तरह पुरी की रथ यात्रा भी बेहद महत्वपूर्ण है. इस पर्व को अटूट, श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है. पुरी के अलावा भी देश के अलग-अलग शहरों में भी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है.
इनपुट: भाषा
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