वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नरसिंह जयंती देशभर में धूमधाम के साथ मनाई जाती है
नई दिल्ली:
हर साल की तरह इस बार भी वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को दुनियाभर में नरसिंह चतुर्दशी का महोत्सव मनाया जा रहा है. हलांकि इस महापर्व के बारे में बहुत कम लोगों को ही जानकारी है लेकिन, इस तिथि को शास्त्रों में बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है.
शास्त्रों में वर्णन आता है कि इसी तिथि को भगवन नरसिंह का प्राकट्य हुआ था. श्रीमद भागवतम के सातवें स्कन्द में भी भगवन नरसिंह के अवतरण का वर्णन आता है. हिरण्यकशिपु नामक अत्यंत क्रूर राक्षस ने ब्रह्मा जी की 36 हज़ार वर्षों तक तपस्या करके उन्हें वरदान देने पर बाध्य कर दिया था. उसकी कठोर तपस्या से खुश ब्रह्मा जी ने हिरण्यकशिपु को अमरत्व के बिलकुल नज़दीक वरदान भी दिया. उसने ब्रह्मा जी से न जल, न थल, न दिन, न रात में, न किसी अस्त्र से, न शस्त्र से, न घर के बहार न अंदर, न ज़मीन पर न आकाश में, न ही ब्रह्मा के द्वारा बनाये गए किसी भी जीव के द्वारा न मरने का वरदान ले लिया था. ऐसा वरदान मांग कर वो आश्वस्त हो गया कि वह अब अमर हो गया है. लेकिन वह भूल गया कि कोई कितना भी होशियार हो, भगवन की होशियारी उससे कई गुना होती है.
हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवन विष्णु का परम भक्त था. वह सदैव भगवन का गुणगान, उनकी चर्चा व उनका प्रचार करता था. न केवल दुसरों को, बल्कि वह निर्भय होकर अपने माता-पिता को भी भगवन की भक्ति के लिए प्रेरित करता था. हिरण्यकशिपु जो अपने धन, ऐश्वर्य और शक्ति से इतना अंधा हो चुका था कि अपने छोटे से पुत्र की बातें भी काफी कड़वी लगती थीं.
यही वजह थी की उसने अपने ही पुत्र को मारने का मन बना लिया था. शास्त्रों के अनुसार भगवन अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए खम्बे से नरसिंह अवतार, जो कि आधे नर तथा आधे सिंह थे, उस रूप में प्रकट हुए थे और हिरण्यकशिपु का वध किया. भगववान को ये अद्भुत रूप धारण करने के पीछे भी कई कारण हैं. रोष को प्रकट करने के लिए शेर जाना जाता है.
वैसे ही हिरण्यकशिपु के प्रह्लाद की तरफ प्रतारणा को देख के भगवन अत्यधिक रोष में थे. इसे प्रकट करने के लिए उन्होंने सिंह का रूप धारण किया. वध के बाद जब सभी देवी-देवता भयभीत थे, तब प्रह्लाद ने आगे बढ़ के उनको शांत किया और भगवन ने अपने सिंह मुख से प्रह्लाद को चाट कर के अपना स्नेह दिखाया.
नरसिंह चतुर्दशी भगवन की भक्त वात्सल्य धर्म के प्रति कटिबद्धता एवं उनकी भगवद्ता को प्रदर्शित करता है. दिल्ली के पंजाबी बाग स्थित इस्कॉन मंदिर के अध्यक्ष रुक्मणि कृष्णा दास ने बताया की इस महोत्सव में भक्तजन शाम तक उपवास रख कर, शाम के समय में नरसिंह भगवन का अभिषेक कर के नरसिंह लीला की चर्चा कर के प्रसाद ग्रहण करके भगवन के प्रेम का आस्वादन कर सकता है.
भगवान नरसिंह को विघ्न विनाशक भी कहा जाता है, जो हमारे भक्तिमय जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को समाप्त करते हैं, इसलिए भक्त उन से अपने हृदय में विद्यमान हिरण्यकशिपु जैसे असुर को समाप्त करने की प्रार्थना करते हैं. हालांकि भगवान का यह रूप भयानक प्रतीत होता है लेकिन भक्तों के लिए ये अत्यंत सुंदर और प्रेम प्रदर्शित करने वाला है.
शास्त्रों में वर्णन आता है कि इसी तिथि को भगवन नरसिंह का प्राकट्य हुआ था. श्रीमद भागवतम के सातवें स्कन्द में भी भगवन नरसिंह के अवतरण का वर्णन आता है. हिरण्यकशिपु नामक अत्यंत क्रूर राक्षस ने ब्रह्मा जी की 36 हज़ार वर्षों तक तपस्या करके उन्हें वरदान देने पर बाध्य कर दिया था. उसकी कठोर तपस्या से खुश ब्रह्मा जी ने हिरण्यकशिपु को अमरत्व के बिलकुल नज़दीक वरदान भी दिया. उसने ब्रह्मा जी से न जल, न थल, न दिन, न रात में, न किसी अस्त्र से, न शस्त्र से, न घर के बहार न अंदर, न ज़मीन पर न आकाश में, न ही ब्रह्मा के द्वारा बनाये गए किसी भी जीव के द्वारा न मरने का वरदान ले लिया था. ऐसा वरदान मांग कर वो आश्वस्त हो गया कि वह अब अमर हो गया है. लेकिन वह भूल गया कि कोई कितना भी होशियार हो, भगवन की होशियारी उससे कई गुना होती है.
हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवन विष्णु का परम भक्त था. वह सदैव भगवन का गुणगान, उनकी चर्चा व उनका प्रचार करता था. न केवल दुसरों को, बल्कि वह निर्भय होकर अपने माता-पिता को भी भगवन की भक्ति के लिए प्रेरित करता था. हिरण्यकशिपु जो अपने धन, ऐश्वर्य और शक्ति से इतना अंधा हो चुका था कि अपने छोटे से पुत्र की बातें भी काफी कड़वी लगती थीं.
यही वजह थी की उसने अपने ही पुत्र को मारने का मन बना लिया था. शास्त्रों के अनुसार भगवन अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए खम्बे से नरसिंह अवतार, जो कि आधे नर तथा आधे सिंह थे, उस रूप में प्रकट हुए थे और हिरण्यकशिपु का वध किया. भगववान को ये अद्भुत रूप धारण करने के पीछे भी कई कारण हैं. रोष को प्रकट करने के लिए शेर जाना जाता है.
वैसे ही हिरण्यकशिपु के प्रह्लाद की तरफ प्रतारणा को देख के भगवन अत्यधिक रोष में थे. इसे प्रकट करने के लिए उन्होंने सिंह का रूप धारण किया. वध के बाद जब सभी देवी-देवता भयभीत थे, तब प्रह्लाद ने आगे बढ़ के उनको शांत किया और भगवन ने अपने सिंह मुख से प्रह्लाद को चाट कर के अपना स्नेह दिखाया.
नरसिंह चतुर्दशी भगवन की भक्त वात्सल्य धर्म के प्रति कटिबद्धता एवं उनकी भगवद्ता को प्रदर्शित करता है. दिल्ली के पंजाबी बाग स्थित इस्कॉन मंदिर के अध्यक्ष रुक्मणि कृष्णा दास ने बताया की इस महोत्सव में भक्तजन शाम तक उपवास रख कर, शाम के समय में नरसिंह भगवन का अभिषेक कर के नरसिंह लीला की चर्चा कर के प्रसाद ग्रहण करके भगवन के प्रेम का आस्वादन कर सकता है.
भगवान नरसिंह को विघ्न विनाशक भी कहा जाता है, जो हमारे भक्तिमय जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को समाप्त करते हैं, इसलिए भक्त उन से अपने हृदय में विद्यमान हिरण्यकशिपु जैसे असुर को समाप्त करने की प्रार्थना करते हैं. हालांकि भगवान का यह रूप भयानक प्रतीत होता है लेकिन भक्तों के लिए ये अत्यंत सुंदर और प्रेम प्रदर्शित करने वाला है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं