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'नारली' पूर्णिमा क्या है, कब मनाया जाता है और इस दिन मछुआरे क्यों चढ़ाते हैं समुद्र को नारियल, जानिए ज्योतिषाचार्य अलकानंदा शर्मा से

आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य और माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी कॉलेज के वास्तु और ज्योतिष संस्थान की एचओडी  डॉ.अलकनंदा शर्मा से इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है.

'नारली' पूर्णिमा क्या है, कब मनाया जाता है और इस दिन मछुआरे क्यों चढ़ाते हैं समुद्र को नारियल, जानिए ज्योतिषाचार्य अलकानंदा शर्मा से
डॉ. अलकनंदा आगे कहती हैं कि यह पर्व नारली पूर्णिमा पर्यावरण-संवेदी, सामुदायिक और धार्मिक त्यौहार है.

Narli Purnima kab hai : नारली पूर्णिमा एक विशेष हिंदू पर्व है जिसे मुख्य रूप से मछुआरा समुदाय (विशेषकर महाराष्ट्र, कोंकण, गोवा और दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में) श्रद्धा और भक्ति से मनाता है. इसका धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों महत्व है."नारली पूर्णिमा" का शाब्दिक अर्थ है "नारियल चढ़ाने वाली पूर्णिमा." यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. आपको बता दें कि मछुआरे समुद्र को 'समुद्र देवता' मानते हैं,  क्योंकि समुद्र उन्हें आजीविका देते हैं और जीवन निर्वाह का माध्यम हैं. इसलिए इस दिन उनकी सच्चे मन से पूजा-अर्चना करते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य और माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी कॉलेज के वास्तु और ज्योतिष संस्थान की एचओडी  डॉ.अलकनंदा शर्मा से इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है.

क्या है नारली पूर्णिमा का महत्व

डॉ. अलकनंदा शर्मा बताती हैं कि श्रावण मास में मूसलधार बारिश और समुद्र की उथल-पुथल के बाद मछुआरे जल यात्रा के लिए अच्छा समय मानते हैं. ऐसे में इस दिन मछुआरे समुद्र से शांत रहने और सुरक्षा प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं. मछुआरे नारियल को पवित्र फल मानते हैं. ऐसे में इसे समुद्र में प्रवाहित करने का अर्थ होता है - "हे समुद्र देवता! हमारे जीवन, मछली पकड़ने के कार्य और नाव की यात्रा को शुभ व सुरक्षित बनाए रखिए.

मानसून की समाप्ति का है प्रतीक

यह त्यौहार इस बात का भी प्रतीक है कि अब मानसून समाप्ति की ओर है और मछुआरे फिर से समुद्र में जाकर मछलियां पकड़ सकते हैं. डॉ. अलकनंदा आगे कहती हैं कि नारली पूर्णिमा पर्व पर्यावरण-संवेदी, सामुदायिक और धार्मिक त्यौहार है, जिसमें प्रकृति, विशेषकर समुद्र के प्रति आभार प्रकट किया जाता है. यह परंपरा और आजीविका के संतुलन का सुंदर उदाहरण है.

नारली पूर्णिमा पूजा विधि

समुद्र के पास कैसे करें पूजा

(विशेषकर मछुआरा समुदाय के लिए )

  • श्रावण मास की पूर्णिमा को प्रातःकाल या दिन में शुभ मुहूर्त में किया जाता है. तटीय क्षेत्रों में यह पूजा समुद्र तट पर की जाती है. इस दिन अगर आप मछुआरे हैं तो नाव की सजावट भी करें और नए वस्त्र पहनें.
  • पूजा स्थल को साफ करें और भूमि पर जल का छिड़काव करके शुद्ध करिए. इस दिन दीपक और अगर बत्ती जलाकर समुद्र देवता की उपस्थिति का आह्वान करिए. 
  • इस दिन नारियल को हल्दी-कुमकुम से पूजिए, फिर उस पर पुष्प अर्पित करें. इसके बाद लाल वस्त्र या मौली बांधनी है.
  • "हे सागर देव! आप ही हमारे जीवन, आजीविका और समृद्धि के आधार हैं. आपकी कृपा से हमारी नौकाएं सुरक्षित चलें, समुद्र शांत रहे और हमें उत्तम फल प्राप्त हो.
  • फिर इसे समुद्र किनारे जाकर नारियल को समुद्र में प्रवाहित करते हैं.

घर पर कैसे करें नारली की पूजा

  • अगर घर पर पूजा हो रही है, तो नारियल को कलश पर स्थापित करें और जल में बाद में विसर्जित करें.
  • फिर समुद्र देवता की आरती करिए- "जय सागर देव महाबलवंत, आप सदा करो हमारी रक्षा संत."
  • पूजा के बाद मिठाई व प्रसाद बांटिए. इसके बाद अपने नौकाओं व जालों पर हल्दी-कुमकुम लगाएं. इस दिन से मछुआरे समुद्र में मछली पकड़ने का कार्य फिर से शुरू कर सकते हैं.
  • इस पूजा में श्रद्धा, आभार और समर्पण का भाव महत्वपूर्ण होता है.
  • इस साल नारली पूर्णिमा 9 अगस्त को मनाई जाएगी. इस दिन ही रक्षाबंधन का पर्व भी हर साल मनाया जाता है.


 

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