Muharram 2017: जानिए क्या है मुहर्रम का महत्व
मुहर्रम को इस्लामी साल पहला महीना होता है. इसे हिजरी भी कहा जाता है. यह एक मुस्लिम त्यौहार है. हिजरी सन की शुरूआत इसी महीने से होती है. इतना ही नहीं इस्लाम के चार पवित्र महीनों में इस महीने को भी शामिल किया जाता है.
दरअसल इराक में यजीद नामक जालिम बादशाह था जो इंसानियत का दुश्मन था. हजरत इमाम हुसैन ने जालिम बादशाह यजीद के विरुद्ध जंग का एलान कर दिया था. मोहम्मद-ए-मस्तफा के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला नामक स्थान में परिवार व दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. जिस महीने में हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था.
जिस दिन हुसैन को शहीद किया गया वह मुहर्रम के ही महीना था और उस दिन 10 तारीख थी. जिसके बाद इस्लाम धर्म के लोगों ने इस्लामी कैलेंडर का नया साल मनाना छोड़ दिया. बाद में मुहर्रम का महीना गम और दुख के महीने में बदल गया.
मुहर्रम माह के दौरान शिया समुदाय के लोग 10 मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनते हैं. वहीं अगर बात करें मुस्लिम समाज के सुन्नी समुदाय के लोगों की तो वह 10 मुहर्रम के दिन तक रोज़ा रखते हैं. इस दौरान इमाम हुसैन के साथ जो लोग कर्बला में शहीद हुए थे उन्हें याद किया जाता है और इनकी आत्मा की शांति की दुआ की जाती है.
आपको बता दें की मुहर्रम को कोई त्यौहार नहीं है बल्कि मातम मनाने का दिन है.
जिस स्थान पर हुसैन को शहीद किया गया था वह इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा है. मुहर्रम महीने के 10वें दिन को आशुरा कहा जाता है. मुहर्रम के दौरान जुलूस भी निकाले जाते हैं.
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दरअसल इराक में यजीद नामक जालिम बादशाह था जो इंसानियत का दुश्मन था. हजरत इमाम हुसैन ने जालिम बादशाह यजीद के विरुद्ध जंग का एलान कर दिया था. मोहम्मद-ए-मस्तफा के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला नामक स्थान में परिवार व दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. जिस महीने में हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था.
जिस दिन हुसैन को शहीद किया गया वह मुहर्रम के ही महीना था और उस दिन 10 तारीख थी. जिसके बाद इस्लाम धर्म के लोगों ने इस्लामी कैलेंडर का नया साल मनाना छोड़ दिया. बाद में मुहर्रम का महीना गम और दुख के महीने में बदल गया.
मुहर्रम माह के दौरान शिया समुदाय के लोग 10 मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनते हैं. वहीं अगर बात करें मुस्लिम समाज के सुन्नी समुदाय के लोगों की तो वह 10 मुहर्रम के दिन तक रोज़ा रखते हैं. इस दौरान इमाम हुसैन के साथ जो लोग कर्बला में शहीद हुए थे उन्हें याद किया जाता है और इनकी आत्मा की शांति की दुआ की जाती है.
आपको बता दें की मुहर्रम को कोई त्यौहार नहीं है बल्कि मातम मनाने का दिन है.
जिस स्थान पर हुसैन को शहीद किया गया था वह इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा है. मुहर्रम महीने के 10वें दिन को आशुरा कहा जाता है. मुहर्रम के दौरान जुलूस भी निकाले जाते हैं.
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