विगत शनिवार 21 मई को अंतिम शाही स्नान के साथ उज्जैन का सिंहस्थ कुंभ मेला संपन्न हो गया, लेकिन यह सिर्फ कुंभ मेले का औपचारिक समापन था। अब यहां से जुड़ी बातें, घटनाएं-परिघटनाएं, कथा-कहानियां बरसों तक यादों के कुंभ मेला के रूप मन को गुदगुदाती रहेंगी।
बरबस खींच जाता था लोगों का ध्यान...
ऐसी ही अनेक यादों में पर्यटकों और श्रद्धालुओं को पेड़ बनी एक शानदार कुटिया याद आती रहेगी, जो सिंहस्थ कुंभ के सबसे मुख्य और व्यस्त राम घाट पर बनी थी और बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेने में कामयाब थी।
इस विहंगम कुटिया को बाबा आनंद गिरि ने तैयार किया था, जो झारखंड के रोहणी से आए थे। हालांकि बाबा सत्तर साल के थे, लेकिन उनका उत्साह किसी युवा से अधिक था, कम नहीं।
कोई सच्चे धर्म का पालन नहीं करना चाहता...
बाबा आनंद गिरि बताते हैं कि पहले वर्षों उन्होंने सालों तक केदारनाथ धाम के पास त्रिजोगीनाथ नामक जगह पर रहकर का ध्यान और तप किया था।
उनका मानना है कि आज धर्म के नाम पर लोग बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन बात सच्चे धर्म की जाए तो कोई सही रूप में धर्म का पालन करना नहीं चाहता।
…तो ये थी पेड़ पर कुटिया बनाने की वजह
बाबा आनंद गिरि पेड़ पर कुटिया बनाने की वजह यह बताते हैं कि वे सिंहस्थ में राम घाट पर ही साधना करना चाहते थे और इसके लिए उन्हें कुटिया की आवश्यकता थी, लेकिन प्रशासन ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी।
हालांकि उन्हें मेला क्षेत्र में जगह मिली थी लेकिन वे वहां नहीं गए और ढाई महीने के अथक मेहनत से यहीं कुटिया बना डाली। वे बताते हैं कि लकडिय़ों को पेड़ पर जमाने में वक्त लगा। लकडियां बार-बार खिसक जाती थी।
तूफान में भी अडिग रही कुटिया...
बाबा आनंद गिरि बताते हैं कि इस साल तेज बारिश, आंधी और तूफ़ान ने सिंहस्थ कुंभ का खेल बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तीन-तीन आंधियों ने यहां काफी कुछ तहस-नहस कर दिया। जानमाल का भी काफी नुकसान हुआ।
लेकिन पेड़ पर बनी उनकी कुटिया उन भीषण आंधी और बारिश में भी भगवान के प्रति उनकी आस्था की तरह अडिग रही। उस प्राकृतिक आपदा का कुटिया पर कोई असर नहीं हुआ, कुटिया जैसी की तैसी ही रही। इस चमत्कार पर वे कहते हैं कि हम सबका जीवन भगवान का दिया है, आगे भी सब उन्हीं के हाथ में है।
बरबस खींच जाता था लोगों का ध्यान...
ऐसी ही अनेक यादों में पर्यटकों और श्रद्धालुओं को पेड़ बनी एक शानदार कुटिया याद आती रहेगी, जो सिंहस्थ कुंभ के सबसे मुख्य और व्यस्त राम घाट पर बनी थी और बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेने में कामयाब थी।
इस विहंगम कुटिया को बाबा आनंद गिरि ने तैयार किया था, जो झारखंड के रोहणी से आए थे। हालांकि बाबा सत्तर साल के थे, लेकिन उनका उत्साह किसी युवा से अधिक था, कम नहीं।
कोई सच्चे धर्म का पालन नहीं करना चाहता...
बाबा आनंद गिरि बताते हैं कि पहले वर्षों उन्होंने सालों तक केदारनाथ धाम के पास त्रिजोगीनाथ नामक जगह पर रहकर का ध्यान और तप किया था।
उनका मानना है कि आज धर्म के नाम पर लोग बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन बात सच्चे धर्म की जाए तो कोई सही रूप में धर्म का पालन करना नहीं चाहता।
…तो ये थी पेड़ पर कुटिया बनाने की वजह
बाबा आनंद गिरि पेड़ पर कुटिया बनाने की वजह यह बताते हैं कि वे सिंहस्थ में राम घाट पर ही साधना करना चाहते थे और इसके लिए उन्हें कुटिया की आवश्यकता थी, लेकिन प्रशासन ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी।
हालांकि उन्हें मेला क्षेत्र में जगह मिली थी लेकिन वे वहां नहीं गए और ढाई महीने के अथक मेहनत से यहीं कुटिया बना डाली। वे बताते हैं कि लकडिय़ों को पेड़ पर जमाने में वक्त लगा। लकडियां बार-बार खिसक जाती थी।
तूफान में भी अडिग रही कुटिया...
बाबा आनंद गिरि बताते हैं कि इस साल तेज बारिश, आंधी और तूफ़ान ने सिंहस्थ कुंभ का खेल बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तीन-तीन आंधियों ने यहां काफी कुछ तहस-नहस कर दिया। जानमाल का भी काफी नुकसान हुआ।
लेकिन पेड़ पर बनी उनकी कुटिया उन भीषण आंधी और बारिश में भी भगवान के प्रति उनकी आस्था की तरह अडिग रही। उस प्राकृतिक आपदा का कुटिया पर कोई असर नहीं हुआ, कुटिया जैसी की तैसी ही रही। इस चमत्कार पर वे कहते हैं कि हम सबका जीवन भगवान का दिया है, आगे भी सब उन्हीं के हाथ में है।
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