सम्पूर्ण मानव समाज को अन्धकार से प्रकाश की ओर लाने वाले महापुरुष भगवान श्री महावीर स्वामी का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि को बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज श्री सिद्धार्थ और माता त्रिशिला रानी देवी के यहां हुआ था. इसलिए हिन्दू और जैन पंचांग के अनुसार, जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी के जन्म-दिवस के अवसर पर चैत्र महीने की शुक्ल-त्रयोदशी के दिन महावीर जयंती मनाई जाती है.
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भगवान महावीर का जन्म बिहार के वैशाली स्थित के गांव कुंडग्राम में एक राजपरिवार में हुआ था. बचपन में भगवान महावीर स्वामी का नाम वर्द्धमान था. उनके परिवार में ऐश्वर्य, धन-संपदा की कोई कमी नहीं थी, जिसका वे मनचाहा उपभोग भी कर सकते थे किंतु युवावस्था में क़दम रखते ही उन्होंने संसार की माया-मोह, सुख-ऐश्वर्य और राज्य को छोड़कर सन्यासी हो गए.
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जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, वर्द्धमान ने कठोर तप द्वारा अपनी समस्त इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर जिन अर्थात विजेता कहलाए. इन्द्रियों को जीतने के कारण वे जितेन्द्रिय कहे जाते हैं.यह कठिन तप पराक्रम के समान माना गया, इसलिए वे ‘महावीर’ कहलाए. उन्हें ‘वीर’, ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ भी कहा जाता है.
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उन्होंने ‘अहिंसा परमोधर्म’ के सिद्धांत और लोक कल्याण का मार्ग अपना कर विश्व को शांति का सन्देश दिया. आधुनिक काल में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने सम्पूर्ण विश्व को अहिंसा के जिस महान आदर्श को अपनाने के लिए आह्वान किया था, उसके महत्व पर सर्वप्रथम और सबसे अधिक जोर महावीर स्वामी ने ही दिया है. इस आदर्श के अनुसार, हमें किसी भी रूप, मनसा-वाचा-कर्मणा, में हिंसा नहीं करनी चाहिए.
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जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, वर्द्धमान ने कठोर तप द्वारा अपनी समस्त इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर जिन अर्थात विजेता कहलाए. इन्द्रियों को जीतने के कारण वे जितेन्द्रिय कहे जाते हैं.यह कठिन तप पराक्रम के समान माना गया, इसलिए वे ‘महावीर’ कहलाए. उन्हें ‘वीर’, ‘अतिवीर’ और ‘सन्मति’ भी कहा जाता है.
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