
Maha Kumbh 2025: महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है. महाकुंभ में देश के कोने-कोने से नागा साधु (Naga Sadhu) आते हैं. ये नागा साधु कुंभ में विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं लेकिन कुंभ के बाद नजर नहीं आते. इन्हें इनके निर्वस्त्र अवतार से पहचाना जाता है. शरीर पर लगी भस्म और लंबी जटाएं इन्हें भीड़ से अलग बनाती हैं. हालांकि, कुंभ की समाप्ति के बाद लाखों की संख्या में यहां आने वाले नागा साधु कहीं गायब हो जाते हैं और दिखाई नहीं देते. ऐसे में यहां जानिए इन नागा साधुओं की रहस्मयी दुनिया के बारे में और यह भी कि कुंभ खत्म होने के बाद किस तरह का जीवन जीते हैं ये नागा साधु.
कुंभ के बाद कहां चले जाते हैं नागा साधु
कुंभ में ज्यादातर नागा साधु दो विशेष अखाड़ों से आते हैं. एक अखाड़ा है वाराणसी का महापरिनिर्वाण अखाड़ा और दूसरा है पंच दशनाम जूना अखाड़ा. इन दोनों अखाड़ों के नागा साधु कुंभ का हिस्सा बनते हैं. हाथों में त्रिशूल, शरीर पर भस्म, रुद्राक्ष, की माला और कभी-कभी जानवरों की खाल को शरीर पर लपेटे ये साधु कुंभ आते हैं. कुंभ का पहला शाही स्नान नागा साधु करते हैं और उसके बाद ही अन्य श्रद्धालुओं को कुंभ स्नान की अनुमति होती है. नागा साधु अन्य दिनों में दिगम्बर स्वरूप यानी निर्वस्त्र नहीं रहते हैं. समाज में दिगम्बर स्वरूप स्वीकार्य नहीं है इसीलिए यह साधु कुंभ (Kumbh) के बाद गमछा पहनकर आश्रमों में निवास करते हैं. दिग्मबर का अर्थ है धरती और अम्बर. नागा साधुओं का मानना है कि धरती उनका बिछौना और अम्बर उनका ओढ़ना है. इसीलिए वे कुंभ की अमृत वर्षा के लिए नागा स्वरूप में आते हैं.
करते हैं तपस्याजब कुंभ की समाप्ति हो जोती है तो इसके बाद नागा साधु अपने-अपने अखाड़ों में लौट जाते हैं. इन अखाड़ों में नागा साधु ध्यान और साधना करते हैं, साथ ही धार्मिक शिक्षा भी देते हैं. इनकी तपस्वी जीवनशैली होती है. बहुत से नागा साधु हिमालयों, जंगलों और अन्य एकांत स्थानों में तपस्या करने चले जाते हैं. वहीं, बहुत से नागा साधु शरीर पर भभूत लपेटे हिमालय तपस्या करने जाते हैं. यहां वे कठोर तप करते हैं, फल व फूल खाकर जीवन निर्वाह करते हैं.
तीर्थ स्थानों में रहते हैंनागा साधु कुंभ के बाद तीर्थ स्थलों पर भी रहते हैं. प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में इनका बसेरा होता है. ये दीक्षा मांगकर अपना जीवन जीते हैं. इसके अलावा, नागा साधु धार्मिक यात्राएं करते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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