विज्ञापन
This Article is From Apr 23, 2018

स्‍वर्ण मंदिर के लंगर जैसा कुछ नहीं, सभी के लिए खुले हैं इसकी रसोई के दरवाजे

अमृतसर के स्‍वर्ण मंदिर में दिन हो या रात यहां हर समय श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है, जो स्वेच्छा से लंगर में सेवा करने को तत्पर रहते हैं.

स्‍वर्ण मंदिर के लंगर जैसा कुछ नहीं, सभी के लिए खुले हैं इसकी रसोई के दरवाजे
स्‍वर्ण मंद‍िर के लंगर में लोग जमीन पर बैठकर इस तरह लंगर करते हैं
नई द‍िल्‍ली: जाति, वर्ग, लिंग और धर्म के दायरे से ऊपर उठकर समता की मिसाल देखनी हो तो अमृतसर के हरमंदिर साहिब का लंगर वाकई दुनिया में एक अनूठा उदाहरण होगा. दुनिया में सबसे बड़ी कम्‍युनिटी किचन यानी कि सामुदायिक रसोई के तौर पर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) स्थित गुरु रामदासजी लंगर भवन कई मायने में बेमिसाल है. 

अमृतसर जाएं तो जरूर करें ये 8 काम

आमतौर पर यहां एक लाख लोगों का भोजन तैयार होता है और सभी धर्मो, जातियों, क्षेत्रों, देशों सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक वर्ग के लोग यहां भोजन करते हैं, जिनमें बच्चों से लेकर बूढ़े शामिल होते हैं. 

लंगर के वरिष्ठ प्रभारी वजीर सिंह के मुताबिक, 'यहां पूरे साल अहर्निश यानी दिन-रात चौबीसों घंटे लंगर जारी रहता है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. लंगर की शुरुआत सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव ने की थी. नानक देव ही सिख धर्म के प्रथम गुरु थे. उनके बाद के गुरुओं ने लंगर की पंरपरा को आगे बढ़ाया.' नानक देव का जन्म 1469 ईसवी में ननकाना (पाकिस्तान) में हुआ था. 

दिन हो या रात यहां हर समय श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है, जो स्वेच्छा से लंगर में सेवा करने को तत्पर रहते हैं. यहां सेवा कार्य को गुरू का आशीर्वाद समझा जाता है. लंगर में हाथ बंटाने को सैकड़ों स्वयंसेवी तैयार रहते हैं. 

लंगर में तैयार भोजन रोजाना तीन बार अमृतसर में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) द्वारा संचालित दो अस्पतालों में भेजा जाता है. खासतौर से उस वॉर्ड में भोजन जरूर भेजा जाता है, जहां मानसिक रोगों के मरीजों और नशीली दवाओं के आदी लोग अस्पताल में भर्ती होते हैं. एसपीजीसी के पास सभी सिख गुरुद्वारों के संचालन का दायित्व है.

15 हजार किलो सोने से बना है ये मंदिर, रोज़ाना दर्शन करते हैं लाखों भक्त

वजीर सिंह ने कहा, 'हमारे पास करीब 500 स्वयंसेवी कार्यकर्ता हैं. लोग यहां अत्यंत श्रद्धा के साथ रोज संगत में शामिल होते हैं. पूरे पंजाब से ट्रकों और ट्रैक्टर ट्रॉलियों में लोग यहां पहुंचते हैं. इसके अलावा विभिन्न प्रांतों और देशों के लोग भी यहां लंगर में सेवा प्रदान करने के लिए आते हैं. स्थानीय निवासी सालों से इस सेवा कार्य में हिस्सा ले रहे हैं. महिलाएं और पुरुष सभी अपनी सरकारी व निजी नौकरियों से समय निकालकर यहां अपनी सेवा देने आते हैं, उनमें सभी धर्मो व जातियों के लोग शामिल होते हैं. हम स्नेह से सबका स्वागत करते हैं.'

लंगर की पूरी सामग्री शाकाहारियों के लिए होती है. लंगर के भोजन में दाल, चावल, चपाती, अचार और एक सब्जी शामिल होती है. इसके साथ मीठे के तौर पर खीर होती है. सुबह में चाय लंगर होता है, जिसमें चाय के साथ मठरी होती है. 

श्रद्धालु लंगर भवन में लगे गलीचे पर कतार में बैठकर भोजन करते हैं. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए एसजीपीसी के स्वयंसेवी एक बार में सिर्फ 100 लोगों को प्रवेश की अनुमति देते हैं. पूरी सावधानी से रोजाना पूरी व्यवस्था का संचालन किया जाता है.

पीएम नरेंद्र मोदी और अफगान राष्‍ट्रपति गनी ने स्वर्ण मंदिर में मत्था टेका

लंगर के प्रभारी गुरप्रीत सिंह ने बताया, 'पूरी कवायद बहुत बड़ी है, लेकिन परमात्मा की कृपा से यह कार्य अनवरत चलता रहता है. हम 100 कुंटल चावल और प्रति कुंटल चावल पर 30-30 किलोग्राम से अधिक दाल और सब्जियों का उपयोग रोज करते हैं. रसोई तैयार करने में 100 से अधिक एलपीजी सिलिंडर की खपत रोज होती है. इसके अलावा सैकड़ों किलोग्राम जलावन का भी इस्तेमाल किया जाता है. यही नहीं, 250 किलोग्राम देसी घी की भी खपत है. हमारे पास स्टील की तीन लाख से अधिक थालियां हैं. हम रोजाना 10 लाख लोगों को यहां भोजन परोस सकते हैं.'

एसजीपीसी के पदाधिकारियों ने बताया कि अमृतसर और आस-पास के 30 हजार से 35 हजार लोग रोज गुरुद्वारा पहुंचते हैं और तीन वक्त लंगर में शामिल होते हैं. इनमें ज्यादातर दूसरे प्रदेशों के अप्रवासी और गरीब लोग हैं, जो खुद भोजन का जुगाड़ नहीं कर पाते हैं. 

एसजीपीसी के सूचना कार्यालय के पदाधिकारी अमृत पाल सिंह ने कहा, 'बिना किसी भेदभाव के हमारे दरवाजे सबके लिए खुले हैं. हम समानता की अवधारणा का अनुपालन करते हैं.'

चपाती बनाने वाली आठ मशीनें हैं, जिनसे हजारों चपाती बनाई जाती है. इसके अलावा महिला और पुरुष स्वयंसेवी हाथ से भी चपाती बनाते हैं. स्टील की लाखों थालियां, ग्लास और चम्मच हैं, जिनका उपयोग यहां श्रद्धालु करते हैं और इनकी सफाई भी श्रद्धालु खुद स्वेच्छा से करते हैं. साथ ही, स्वयंसेवी कार्यकर्ता भी बर्तनों की सफाई में लगे रहते हैं. 

स्‍वर्ण मंदिर में अबराम के साथ शाहरुख खान

भठिंडा के श्रद्धालु रमेश गोयल ने कहा, 'गुरुद्वारे में यह अध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र है. यहां लंगर आपको कई तरह से संतुष्टि प्रदान करता है. यहां का अनुभव आपकी आत्मा पर प्रभाव छोड़ता है.'

बिहार के पटना से परिवार के साथ यहां पहुंचे तारिक अहमद ने कहा, 'हम अक्सर इस गुरुद्वारे के बारे में सुनते थे, मगर आज मैंने जो अनुभव किया, वह जन्नत के जैसा है. इतनी बड़ी भीड़ के बावजूद ये लोग पूरे समर्पण व मानवता के साथ इस कार्य को अंजाम देते हैं. यह अकल्पनीय है.'

अमृतसर के युवा सिख श्रद्धालु अनूप सिंह अक्सर अपने दादा-दादी और माता-पिता के साथ गुरुद्वारा आते हैं. उन्होंने कहा, 'मुझे लंगर में लोगों को चपाती बांटना अच्छा लगता है. यह बेहद संतोषप्रद अनुभव है.'

एसजीपीसी के मुख्य सचिव रूप सिंह के मुताबिक, 'संपूर्ण कार्य निस्वार्थ रूप से पूरा होता है. यह बड़ा कार्य है, लेकिन सुचारू ढंग से संपन्न होता है. श्रद्धालुओं की जरूरतों के अनुसार हम अपने कार्य में बदलाव भी करते रहते हैं.'

एसजीपीसी को सिख धर्म की लघु संसद के रूप में जाना जाता है. इसका प्रबंधन स्वर्ण मंदिर और पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश में संचालित गुरुद्वारों के माध्यम से किया जाता है. इसका सालाना बजट 1,100 करोड़ रुपये का है, जिसकी पूर्ति ज्यादातर गुरुद्वारों के दान से होती है. 

स्वर्ण मंदिर में हर साल देश-विदेश से लाखों पर्यटक व श्रद्धालु पहुंचते हैं. अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा में निवास करने वाले सिख प्रवासी बढ़चढ़ कर अपना योगदान देते हैं. 

  Video: स्वर्ण मंदिर के लंगर पर GST का विरोध इनपुट: आईएएनएस

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com