कल्पवास की पूर्णता का पर्व है माघी पूर्णिमा, जानिए इससे जुड़ी धार्मिक-पौराणिक मान्यताएं

कल्पवास की पूर्णता का पर्व है माघी पूर्णिमा, जानिए इससे जुड़ी धार्मिक-पौराणिक मान्यताएं

माघ महीने की पूर्णिमा को कल्पवास की पूर्णता का पर्व भी कहा जाता है. आप जानते हैं, कल्पवास की शुरुआत पूस के महीने की पूर्णिमा से होती है, जो संगम नगरी इलाहबाद में प्रयाग में गंगा के तट पर किया जाता है. सदियों से चली आ रही इस परंपरा के अंतर्गत लोग दूर-दूर से आकर गंगा के तट पर पूरे एक महीने के लिए समाज और परिवार से कट कर ध्यान और तप में लीन हो जाते हैं.

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यही एक माह की तपस्या माघ महीने की पूर्णिमा को समाप्त हो जाती है. संगम के तट पर कठिन कल्पवास व्रतधारी अपने-अपने घरों को लौट जाते हैं. ऐसे में यह स्वाभाविक है कि कल्पवासियों की संकल्प की पूर्ति का संतोष और परिवारजनों से मिलने का उत्साह इस मौके को खास बना देती है. इसीलिए यह स्नान-पर्व एक आनंद और उत्साह का पर्व बन जाता है.
 
धार्मिक-पौराणिक मान्यताएं
'ब्रह्मवैवर्तपुराण' में वर्णन मिलता है कि माघ पूर्णिमा पर स्वयं जगतपालक भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं. इसलिए इस दिन गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है. अन्य पुराणों में भी इस बात का जिक्र किया गया है. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु व्रत, उपवास, दान से भी उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना अधिक प्रसन्न माघ स्नान करने से होते हैं.

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'पद्मपुराण' में उल्लिखित है कि किसी और महीने में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते, जितने कि वे माघ मास में स्नान करने से होते हैं. यही वजह है कि अनेक प्राचीन हिन्दू ग्रंथों में वैकुण्ठ को पाने का आसान रास्ता माघ पूर्णिमा के पुण्य स्नान को बताया गया है. विश्व से सबसे बड़े महाकाव्य महाभारत में उल्लेख है कि इन दिनों में अनेक तीर्थों का समागम होता है.

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