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This Article is From Dec 04, 2020

Kaal Bhairav Jayanti 2020 Date: 7 दिसंबर को है काल भैरव अष्टमी, जानें कैसे प्रसन्न होते हैं काल भैरव ?

Kaal Bhairav Ashtami 2020 Date: काल भैरव जयंती 7 दिसंबर 2020 को मनाई जाएगी. हर साल मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव देव जी की जयंती (Kaal Bhairav Jayanti) मनाई जाती है.

Kaal Bhairav Jayanti 2020 Date: 7 दिसंबर को है काल भैरव अष्टमी, जानें कैसे प्रसन्न होते हैं काल भैरव ?
कालभैरव अष्टमी 2020: 7 दिसंबर को है काल भैरव अष्टमी, जानें कैसे प्रसन्न होते हैं काल भैरव ?

Kaal Bhairav Ashtami 2020 Date: काल भैरव जयंती 7 दिसंबर 2020 को मनाई जाएगी. हर साल मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव देव जी की जयंती (Kaal Bhairav Jayanti) मनाई जाती है. इस दिन भगवान काल भैरव जी की विधि विधान से पूजा की जाती है. काल भैरव जयंती के दिन भगवान शिव की पूजा की जाए तो भी भगवान भैरव की कृपा प्राप्‍त होती है. मान्‍यता है कि भगवान भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के अंश के रूप में हुई.

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काल भैरव जंयती का महत्व

काल भैरव जयंती, काल भैरव अष्टमी के नाम से भी जानी जाती है. मान्‍यता है कि जो व्यक्ति काल भैरव जयंती के दिन काल भैरव जी की विधिवत श्रद्धा से पूजा करता है, उससे वे प्रसन्‍न होते हैं. साथ ही भैरव जी की पूजा से भूत-प्रेत और ऊपरी बाधा आदि जैसी समस्याएं भी दूर होती हैं. हिंदू धर्म में काल भैरव जी की पूजा का विशेष महत्व होता है. इन्‍हें भगवान शिव के ही स्वरूप माना जाता है.

काल भैरव अष्टमी की पूजा विधि

काल भैरव जी को प्रसन्न करने के लिए और उनकी कृपा प्राप्‍त करने के लिए कालाष्टमी के दिन से भगवान भैरव की प्रतिमा के आगे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए. इस दिन सुबह जल्‍दी उठकर स्नान करके स्‍वच्‍छ वस्त्र धारण करने चाहिए. भगवान काल भैरव को काले तिल, उड़द और सरसों का तेल अर्पित करना चाहिए. साथ ही मंत्रों के जाप के साथ ही उनकी विधिवत पूजा करने से वह प्रसन्‍न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्‍त होती है.

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काल भैरव की उत्पत्ति

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि काल भैरव जी भगवान शिव के क्रोध के कारण उत्पन्न हुए थे. मान्‍यता है कि एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश में इस बात को लेकर स्‍वयं को श्रेष्‍ठ साबित करने को लेकर बहस हुई. तब इस बहस के बीच ब्रह्मा जी ने भगवान शिव की निंदा की, इससे भोले शिव शंकर क्रोधित हो गए. उनके रौद्र रूप के कारण ही काल भैरव जी की उत्पत्ति हुई. काल भैरव ने वहीं सिर काट दिया था. (ब्रह्मा जी की जब उत्पति हुई तब उनके पांच मुख थे और शिव के भी पांच मुख थे. चार दिशाओं में चार और एक ऊपर आकाश की ओर उसके बाद ब्रह्मा के चार मुंह रह गए और शिवजी के आज भी पंच मुख होने के कारण पांच वक्त्र कहे जाते हैं. इससे उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लग गया जिससे बचने के लिए भगवान शिव ने एक उपाय सुझाया. उन्होंने काल भैरव को पृथ्वी लोक पर भेजा और कहा कि जहां भी यह सिर खुद हाथ से गिर जाएगा वहीं उन पर चढ़ा यह पाप मिट जाएगा. जहां वो सिर हाथ से गिरा था वो जगह काशी थी जो शिव की स्थली मानी जाती है. यही कारण है कि आज भी काशी जाने वाला हर श्रद्धालु या पर्यटक काशी विश्वनाथ के साथ साथ काल भैरव के दर्शन भी अवश्य रूप से करता है. और उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है.

काल भैरव मंत्र  

1. ॐ कालभैरवाय नम:

2. ॐ भयहरणं च भैरव:

3. ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं

4. ॐ भ्रं कालभैरवाय फट्

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