
Jivitputrika Vrat 2025: हिंदू धर्म और सनातन परंपरा में जितिया पर्व (जितमिया व्रत) का विशेष महत्व है. यह पर्व खासतौर पर माताओं द्वारा अपने बच्चों की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और कल्याण के लिए किया जाता है. जिस प्रकार सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए हरितालिका तीज का कठोर उपवास करती हैं, उसी प्रकार माताएं अपने बच्चों की रक्षा और जीवन में आने वाली हर विपत्ति को टालने के लिए निर्जला उपवास रखती हैं.
बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, नेपाल और पूर्वी भारत के कई हिस्सों में यह पर्व बेहद आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. मिथिला, कोसी और मगध क्षेत्र में इस व्रत की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है.
जितिया व्रत का धार्मिक महत्व
धार्मिक दृष्टि से जितिया व्रत केवल उपवास या परंपरा नहीं है, बल्कि यह मां के असीम प्रेम, त्याग और मातृत्व के अद्भुत स्वरूप को दर्शाता है. विद्वानों का मानना है कि यह व्रत संतान की रक्षा और उनकी सफलता के लिए मां का सबसे बड़ा संकल्प है. इस पर्व के माध्यम से माताएं भगवान से प्रार्थना करती हैं कि संतान जीवन में हर संकट से सुरक्षित रहे और उनकी आयु लंबी हो.
ज्योतिष आचार्य डॉ. श्रीपति त्रिपाठी के अनुसार, “जितिया पर्व मातृत्व के उस स्वरूप का प्रतीक है जिसमें मां अपनी संतान की दीर्घायु और सुखी जीवन के लिए सबसे कठिन तपस्या करती है. यह केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि मां के त्याग और प्रेम का जीवंत उदाहरण है.”
जितिया पर्व की पौराणिक कथा
जितिया व्रत की जड़ें पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी हैं. शास्त्रों के अनुसार यह व्रत जीवपुत्र वाहन नागराज की कथा से संबंधित है. कहानी के अनुसार, एक बार गरुड़ ने एक नाग कुमार को निगलने का प्रयास किया. उस समय जीवपुत्र नाग ने अपने प्राण त्यागकर उस नाग कुमार की रक्षा की. माताओं द्वारा किया जाने वाला यह व्रत उसी बलिदान और रक्षा भावना की स्मृति में मनाया जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान पर आने वाली अकाल मृत्यु का संकट टल जाता है और उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है.

जितिया व्रत की पूजा विधि
जितिया व्रत तीन दिनों तक विशेष विधि-विधान के साथ किया जाता है.
1. सप्तमी तिथि – नहाए-खाए
इस दिन माताएं पवित्र स्नान करके सात्विक भोजन करती हैं.
अरवा चावल, दाल और कद्दू-झुकी जैसी पारंपरिक सब्जियां बनाई जाती हैं.
नहाए-खाए का भोजन व्रत की शुरुआत माना जाता है.
2. अष्टमी तिथि – निर्जला उपवास
इस दिन माताएं सूर्योदय से लेकर अगले दिन तक बिना भोजन और जल के उपवास करती हैं.
शाम को जीवित वाहन (नागराज) की मूर्ति का पूजन किया जाता है.
माताएं "जीतिया महिजा मंत्र" का जाप करती हैं और संतान की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं.
3. नवमी तिथि – पारण
नवमी के दिन व्रत का पारण होता है.
माताएं सूर्योदय के बाद पूजा-अर्चना करके व्रत तोड़ती हैं.
व्रत का पारण सात्विक भोजन से किया जाता है.
जितिया व्रत के नियम
जितिया व्रत बेहद कठोर माना जाता है. इसके दौरान माताओं को कुछ विशेष नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है:
व्रत में क्या करें
- संतान का मस्तक स्पर्श करके उन्हें आशीर्वाद दें.
- ब्रह्मचर्य का पालन करें.
- कथा और पूजा विधि का पूरी श्रद्धा से पालन करें.
- व्रत के दौरान पूरी निष्ठा से मंत्र जाप और पूजा करें.
व्रत में क्या न करें
- व्रत के दौरान तामसिक भोजन का सेवन वर्जित है.
- आधे-अधूरे मन से व्रत करने की मनाही है.
- निर्जला उपवास में जल का सेवन नहीं करना चाहिए.
- व्रत तोड़ने के नियमों की अनदेखी करना अशुभ माना जाता है.
जितिया व्रत का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
जितिया व्रत सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. यह पर्व मां और संतान के बीच अटूट बंधन का प्रतीक है. बिहार और पूर्वी भारत के गांव-गांव में यह पर्व माताओं की आस्था और परिवार के सामूहिक उत्सव का हिस्सा बन चुका है. गांवों में महिलाएं सामूहिक रूप से गीत गाती हैं, कथा सुनती हैं और व्रत की परंपरा को आगे बढ़ाती हैं.
यह पर्व आने वाली पीढ़ियों को त्याग, अनुशासन और मातृत्व की शक्ति का संदेश भी देता है. जितिया व्रत मातृत्व, आस्था और त्याग का अद्भुत संगम है. संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और जीवन में सफलता की कामना के लिए माताएं यह कठिन व्रत पूरी श्रद्धा से करती हैं. धार्मिक मान्यता हो या सामाजिक दृष्टिकोण-जितिया पर्व हर मायने में भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा का अद्वितीय उत्सव है
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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