चोला, जलेबी, दही, मक्खन, मलाई, मेसू, रसगुल्ला, पगी, महारायता
सिखरन, शरबत, बालका (बाटी), इक्षु, बटक, मोहन भोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, मठरी
फेनी, पूड़ी, खजला, घेवर, मालपुआ, थूली, लौंगपुरी, खुरमा, दलिया, परिखा, सौंफ युक्त बिलसारू
लड्डू, साग, अधौना अचार, मोठ, खीर, भात, सूप, चटनी, कढ़ी, दही शाक की कढ़ी, रबड़ी, पापड़
गाय का घी, सीरा, लस्सी, सुवत, मोहन, सुपारी, इलायची, फल, तांबूल, कटु, अम्ल, तांबूल, लसिका
आज जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर इन संदेशों के जरिए अपनों को कहें Happy Krishna Janmashtami
ऐसे शुरू हुई कान्हा को 56 भोग लगाने की परंपरा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता यशोदा कान्हा जी को बचपन में दिन में 8 बार भोजन कराती थीं. कहते हैं कि एक बार गांव में अच्छी बारिश की इच्छा पूर्ति के लिए नंद बाबा और सभी ग्रामीण मिलकर इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ का आयोजन किए. कान्हा जी को भी को इस आयोजन का ज्ञात हुआ तो उन्होंने कहा कि बारिश के लिए पूजा करनी है तो इंद्रदेव की नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत की आराधना करें. इससे फल-सब्जियां प्राप्त होती हैं और पशुओं को चारा भी प्राप्त होगा.
बिना भोजन के 7 दिन तक रहे कान्हा जी
कान्हा जी के कहने पर नंद बाबा सहित सभी मिलकर इंद्रदेव की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे. कहते हैं कि इंद्र देव ने गुस्से में आकर बारिश कर दी. जिससे चारों ओर पानी ही पानी हो गया. तब कृष्ण जी ने अपनी एक उंगली पर पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सबकी रक्षा की. कहा जाता है कि सात दिन तक कान्हा बिना खाए इसी अवस्था में रहे. इसके बाद माता यशोदा और सभी गांववालों ने बाल गोपाल के लिए सात दिन और आठ प्रहर के हिसाब से छप्पन में कई पकवान बनाकर उन्हें खिलाए. कहते हैं कि तभी से कान्हा को 56 भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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