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This Article is From Jun 20, 2022

इस कथा को सुने बिना नहीं पूरा हो सकता आपके गुरुवार का व्रत, जानें क्या है Guruvaar Vrat की पौराणिक कथा

Guruvaar Vrat Katha: कहा जाता है कि गुरुवार के दिन बृहस्पति देव की पूजा करने से मान सम्मान, प्रतिष्ठा, धन और विद्या की प्राप्ति होती है.

इस कथा को सुने बिना नहीं पूरा हो सकता आपके गुरुवार का व्रत, जानें क्या है Guruvaar Vrat की पौराणिक कथा
Guruvaar Puja Vidhi: पढ़िए गुरुवार व्रत की पूरी कथा यहां.

Guruvaar Vrat Katha: गुरुवार व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है. इस दिन भक्त पूरे विधि-विधान से बृहस्पति देव की पूजा करते हैं. कई भक्त तो इस दिन बृहस्पति देव और केले के पेड़ की भी आराधना करते हैं. बृहस्पति देव को बुद्धि का कारक माना जाता है. वहीं, केले के पेड़ को हिंदू धर्म के अनुसार बहुत ही ज्यादा पवित्र माना गया है. कहा जाता है कि गुरुवार के दिन बृहस्पति देव (Brahaspati Dev) की पूजा करने से मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, धन और विद्या की प्राप्ति होती है. इसके अलावा यह भी कहते हैं कि इस दिन पूरे मन से व्रत रखने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. गुरुवार (Thursday) के दिन विधि-विधान से व्रत करने और कथा सुनने से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. तो चलिए जानते हैं गुरुवार व्रत कथा और उसके व्रत महत्व के बारे में.

 प्राचीन काल की बात है मन्यातानुसार जब किसी राज्य में एक बड़े प्रतापी और दानी राजा राज किया करते थे. वो हर गुरुवार व्रत रखकर दीन दुखियों की मदद करते और पुण्य प्राप्त करते थे, लेकिन राजा की ये बात उनकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी. रानी खुद तो व्रत करती नहीं थीं लेकिन राजा को भी दान देने और व्रत करने से मना किया करती थीं. एक दिन जब राजा शिकार के लिए गए थे उस दिन गुरु बृहस्पति देव साधू का रूप धारण कर भिक्षा मांगने पहुंचे. साधू ने जब रानी से भिक्षा मांगी तो रानी कहने लगीं कि साधु महाराज मैं इस दान पुण्य से तंग आ गई हूं. आप कुछ ऐसा उपाय कीजिए जिससे ये सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं. 

बृहस्पति देव ने रानी को अपने धन का इस्तेमाल अच्छे और पुण्य कामों में लगाने की बात कही. लेकिन, साधु की बात सुनकर रानी खुश नहीं हुईं बल्कि उन्होंने कहा कि मुझे ऐसे धन की जरूरत नहीं है जिससे मुझे दान करना पड़े.या जिसे संभालने में मेरा सारा वक्त नष्ट हो जाए. रानी की बात सुनकर साधु ने उन्हें बालों को पीली मिट्टी से धोने, भोजन में मांस मदिरा का इस्तेमाल करने और घर गोबर से लीपने को कहा और बोले कि इससे धन नष्ट हो जाएगा. मान्यतानुसार यह बोलकर बृहस्पति देव अंतर्ध्यान हो गए.

साधू की सभी बातों को सुनकर उसे पूरा करने में रानी को सिर्फ 3 बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उनका पूरा धन नष्ट हो गया. हालात ये हो गई कि खाने के लिए भी राजा का परिवार तरसने लगा. पैसे कमाने के लिए राजा दूसरे देश में लकड़ी बेचने लगे. ऐसे में जब रानी की हालत का उनकी बड़ी बहन को पता चला तो उनसे मिलने आईं. रानी ने अपनी पीड़ा अपनी बड़ी बहन को बताया. तब  उनकी बड़ी बहन ने रानी से कहा, भगवान बृहस्पति देव (Lord Bhrahaspati) सभी की मनोकामना पूरी करते हैं, देखो शायद तुम्हारे घर में भी अनाज रखा हो. 

 पौराणिक कथा के अनुसार, पहले तो रानी को बड़ी बहन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ पर उनके कहने पर जब रानी ने देखा तो अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया. ये देखकर रानी ने बहन से गुरुवार व्रत करने की इच्छा जाहिर की. रानी की बहन ने उन्हें पूजा की विधि (Puja Vidhi) से लेकर व्रत के बारे में क्या खाएं और क्या ना खाएं इसके बारे में सब कुछ बताया. रानी ने अपनी बड़ी बहन के बताए अनुसार पूरे विधि विधान से व्रत किया, लेकिन उन्हें पीला भोजन करने की चिंता सता रही थी. उसी दिन बृहस्पति देव एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थाली में पीला भोजन दासी को दे गए. इसी तरह हर गुरुवार व्रत कर रानी ने अपनी खोई हुई धन-संपत्ति वापस पा ली. मान्यतानुसार दासी के कहने पर रानी राजा की तरह दान पुण्य भी करने लगीं और इसके बाद नगर में यश बढ़ने लगा और सभी का जीवन खुशहाल हो गया.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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