
दीपावली के मौके पर शिव की नगरी काशी में धनतेरस से अन्नकूट तक के चार दिन बेहद खास होते हैं. इन दिनों में मां अन्नपूर्णा का दर्शन पूजन और वहां मिलाने वाला खजाना दुर्लभ होता है. इसकी चाहत में देश दुनिया से लोग यहां आते हैं. कार्तिक महीने के कृष्ण त्रयोदशी, यानी धनतेरस के दिन बाबा विश्वनाथ के आंगन में विराजीं मां अन्नपूर्णा के मंदिर में वर्ष भर में सिर्फ चार दिन के लिए स्वर्णमयी प्रतिमा में मां के दर्शन आम लोगों को होते हैं. इस दिन यहां पर लावा और खजाने के रूप में सिक्का मिलता है. इसे पाने के लिए लाखों लोगों की कतार सुबह से शाम तक लगी रहती है. मान्यता है कि यहां से मिले खजाने से घर धनधान्य से परिपूर्ण होता है.
अलौकिक आभा से युक्त स्वर्णमयी मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा कमलासन पर विराजमान हैं और रजत शिल्प में ढले भगवान शिव की झोली में भिक्षा का दान दे रही हैं. मां की प्रतिमा के दांई तरफ माता लक्ष्मी और बाईं तरफ भूदेवी का स्वर्ण विग्रह है. माता अन्नपूर्णा का यह अलौकिक दरबार सिर्फ साल में चार दिन ही आम लोगों के दर्शन के लिए खुलता है.
कहा जाता है कि काशी में मां अन्नपूर्णा हर किसी का पेट भरती हैं. यहां कोई भूखा नहीं रहता है. स्वयं भगवान शंकर भी इनसे भिक्षा प्राप्त करते हैं.
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साल 1775 में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब मंदिर के बगल में देवी अन्नपूर्णा का मंदिर था. मां की स्वर्णमयी प्रतिमा का उल्लेख भीष्म पुराण के साथ दूसरे अन्य ग्रंथों में मिलता है.
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