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This Article is From Nov 01, 2018

Dhanteras: ये है धनतेरस की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा, जानिए इस दिन क्‍या खरीदें और क्‍या नहीं?

धनतेरस (Dhanteras) के साथ ही महापर्व दीपावली की शुरुआत हो जाती है. इसके बाद छोटी दीपावली या नरक चौदस (Chhoti Diwali or Narak Chaturdashi), बड़ी या मुख्‍य दीपावली (Diwali), गोवर्द्धन पूजा (Govardhan Puja) और अंत में भाई दूज या भैया दूज (Bhai Dooj) का त्‍योहार मनाया जाता है.

Dhanteras: ये है धनतेरस की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा, जानिए इस दिन क्‍या खरीदें और क्‍या नहीं?
Dhanteras 2018: धनतेरस के दिन मां लक्ष्‍मी की पूजा का विधान है
नई दिल्ली: धनतेरस (Dhanteras) पांच दिन तक चलने वाले दीपावली (Deepawali) पर्व का पहला दिन है. इसे धनत्रयोदशी (Dhantrayodashi), धन्‍वंतरि त्रियोदशी (Dhanwantari Triodasi) या धन्‍वंतरि जयंती (Dhanvantri Jayanti) भी कहा जाता है. मान्‍यता है कि क्षीर सागर के मंथन के दौरान धनतेरस के दिन ही माता लक्ष्‍मी (Maa Laxmi) और भगवान कुबेर (Kuber) प्रकट हुए थे. यह भी कहा जाता है कि इसी दिन आयुर्वेद के देवता भगवान धन्‍वंतरि का जन्‍म हुआ था. यही वजह है कि इस दिन माता लक्ष्‍मी, भगवान कुबेर और भगवान धन्‍वंतरि की पूजा का विधान है. भगवान धन्‍वंतरि के जन्‍मदिन को भारत सरकार का आयुर्वेद मंत्रालय 'राष्‍ट्रीय आयुर्वेद दिवस' (National Ayurveda Day) के नाम से मनाता है. इसके अलावा धनतेरस के दिन मृत्‍यु के देवता यमराज की पूजा (Yama Puja) भी की जाती है. इस दिन सोने-चांदी के आभूषण और बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है. धनतेरस दीपावली पर्व की शुरुआत का प्रतीक भी है. इसके बाद छोटी दीपावली या नरक चौदस (Chhoti Diwali or Narak Chaturdashi), बड़ी या मुख्‍य दीपावली (Diwali), गोवर्द्धन पूजा (Govardhan Puja) और अंत में भाई दूज या भैया दूज (Bhai Dooj) का त्‍योहार मनाया जाता है. 

धनतेरस (Dhanteras) कब है?
धनतेरस का पर्व हर साल दीपावली से दो दिन पहले मनाया जाता है. हिन्‍दू कैलेंडर के मुताबिक कार्तिक मास की तेरस यानी कि 13वें दिन धनतेरस मनाया जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह पर्व हर साल अक्‍टूबर या नवंबर महीने में आता है. इस बार धनतेरस 5 नवंबर को है.

धनतेरस की तिथि और शुभ मुहूर्त
त्रयोदशी तिथ‍ि प्रारंभ: 05 नवंबर 2018 को सुबह 01 बजकर 24 मिनट से 
त्रयोदशी तिथि समाप्‍त: 05 नवंबर 2018 को रात 11 बजकर 46 मिनट तक
धनतेरस पूजा मुहूर्त: 05 नवंबर 2018 को शाम 06 बजकर 20 मिनट से रात 08 बजकर 17 मिनट तक.
कुल अवधि: 01  घंटे  57 मिनट
प्रदोष काल: 05 नवंबर 2018 को शाम 05 बजकर 42 मिनट से रात 08 बजकर 17 मिनट तक.
वृषभ काल: 05 नवंबर 2018 को शाम 06 बजकर 20 मिनट से रात 08 बजकर 18 मिनट तक.

(ये भी पढ़ें : सोने की शुद्धता और कीमत पहचानने का आसान फॉर्मूला, साथ ही जानिए असली-नकली में फर्क भी)

धनतेरस के दिन क्‍या खरीदें?
धनतेरस का दिन खरीददारी के लिए बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन लोग अपने घर के लिए नया सामान जोड़ते हैं. मान्‍यता है कि इस दिन खरीदा गया सामान कभी खराब नहीं होता और बेहद शुभ होता है. फिर भी धनतेरस के दिन इन चीजों को जरूर खरीदना चाहिए: 
- आमतौर पर लोग इस दिन सोने-चांदी के आभूषण खरीदते हैं. लेकिन यह जरूर नहीं कि आपकी जेब भी इसकी अनुमति दे. लेकिन त्‍योहार है तो उसे मनाना भी जरूरी है. ऐसे में आप सोने या चांदी का सिक्‍का खरीद सकते हैं. 
- धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है और उन्‍हें चांदी अति प्रिय है. ऐसे में इस दिन चांदी खरीदना अच्‍छा माना जाता है. कहते हैं कि धनतेरस के मौके पर चांदी खरीदने से यश, कीर्ति और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है. यही नहीं चांदी को चंद्रमा का प्रतीक भी माना जाता है, जो मनुष्‍य के जीवन में शीतलता लेकर आती है.  
- इस दिन धातु के बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है. विशेषकर चांदी और पीतल को भगवान धन्‍वंतरी का मुख्‍य धातु माना जाता है. ऐसे में इस दिन चांदी या पीतल के बर्तन जरूर खरीदने चाहिए.
- मान्‍यता है कि भगवान धन्‍वंतर‍ि समुद्र मंथन के दौरान हाथ में कलश लेकर जन्‍मे थे. इसलिए धनतेरस के दिन पानी भरने वाला बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है.
- इस दिन व्‍यापारी नए बही-खाते खरीदते हैं, जिनकी पूजा दीपावली के मौके पर की जाती है.  
- इस दिन गणेश और लक्ष्‍मी की अलग-अलग मूर्तियां जरूर खरीदें. दीपावली के दिन इन मूर्तियों की पूजा का विधान है. 
- इस दिन खील-बताशे और मिट्टी के छोटे दीपक खरीदें. एक बड़ा दीपक भी खरीदें. 
- इस दिन लक्ष्‍मी जी का श्री यंत्र खरीदना भी शुभ माना जाता है. 
- इसके अलावा आप अपनी घर की जरूरत का दूसरा सामान जैसे कि फ्रिज, वॉशिंग मशीन, मिक्‍सर-ग्राइंडर, डिनर सेट और फर्नीचर भी ले सकते हैं. 
- इस दिन वाहन खरीदना शुभ होता है. लेकिन मान्‍यताओं के मुताबिक राहु काल में वाहन नहीं खरीदना चाहिए. 
- मान्‍यता है कि मां लक्ष्‍मी को कौड़‍ियां अति प्रिय हैं. इसलिए धनतेरस के दिन कौड़‍ियां खरीदकर रखें और शाम के समय इनकी पूजा करें. दीपावली के बाद इन कौड़‍ियों को अपने घर की तिजोरी में रखें. मान्‍यता है कि ऐसा करने से धन-धान्‍य की कमी नहीं रहती.
- मां लक्ष्‍मी को धनिया अति प्रिय है. धनतेरस के दिन धनिया के बीज जरूर खरीदने चाहिए. मान्‍यता है कि जिस घर में धनिया के बीज रहते हैं वहां कभी धन की कमी नहीं रहती. दीपावली के बाद धनिया के इन बीजों को घर के आंगन में लगाना चाहिए. 
- धनतेरस के दिन नया झाड़ू खरीदना चाहिए. मान्‍यता है कि झाड़ू दरिद्रता को दूर करता है. कहते हैं कि लक्ष्‍मी स्‍वच्‍छ घर में ही निवास करती हैं और झाड़ू सफाई करने का सर्वोत्तम साधन है.

धनतेरस के दिन क्‍या न खरीदें? 
वैसे तो धनतेरस के दिन नया सामान खरीदना शुभ माना जाता है, लेकिन मान्‍यताओं के अनुसार इस दिन कुछ चीजों को खरीदने से बचना चाहिए: 
- मान्‍यताओं के मुताबिक धनतेरस के दिन कांच का सामान नहीं खरीदना चाहिए. 
- हिन्‍दू धर्म में काले रंग को शुभ नहीं माना जाता है. ऐसे में कहा जाता है कि धनतेरस के दिन काले रंग की चीजें नहीं खरीदनी चाहिए.
- इस दिन नुकीली चीजें जैसे कि कैंची और चाकू नहीं खरीदना चाहिए.

धनतेरस के दिन क्‍या सावधानियां बरतें?
वैसे तो धनतेरस का दिन बेहद शुभ होता है लेकिन इस दौरान कुछ सावधनियां बरतनी चाहिए: 
- धनतेरस से पहले घर की साफ-सफाई का काम पूरा कर लें. धनतेरस के दिन स्‍वच्‍छ घर में ही भगवान धन्‍वंतरि, माता लक्ष्‍मी और मां कुबेर का स्‍वागत करें. 
- धनतेरस के दिन बर्तन खरीदने के बाद घर लाते समय उसे खाली न लाएं और उसमें कुछ मीठा जरूर डालें. अगर बर्तन छोटा हो या गहरा न हो तो उसके साथ मीठा लेकर आएं. 
- धनतेरस के दिन तिजोरी में अक्षत रखे जाते हैं. ध्‍यान रहे कि अक्षत खंडित न हों यानी कि टूटे हुए अक्षत नहीं रखने चाहिए. 
- इस दिन उधार लेना या उधार देना सही नहीं माना जाता है.  

धनतेरस की पूजा विधि 
धनतेरस के दिन भगवान धन्‍वंतरि, मां लक्ष्‍मी, भगवान कुबेर और यमराज की पूजा का विधान है. 
- धनतेरस के दिन आरोग्‍य के देवता और आयुर्वेद के जनक भगवान धन्‍वंतरि की पूजा की जाती है. मान्‍यता है कि इस दिन धन्‍वंतरि की पूजा करने से आरोग्‍य और दीर्घायु प्राप्‍त होती है. इस दिन भगवान धन्‍वंतर‍ि की प्रतिमा को धूप और दीपक दिखाएं. साथ ही फूल अर्पित कर सच्‍चे मन से पूजा करें. 
- धनतेरस के दिन मृत्‍यु के देवता यमराज की पूजा भी की जाती है. इस दिन संध्‍या के समय घर के मुख्‍य दरवाजे के दोनों ओर अनाज के ढेर पर मिट्टी का बड़ा दीपक रखकर उसे जलाएं. दीपक का मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए. दीपक जलाते समय इस मंत्र का जाप करें: 
मृत्‍युना दंडपाशाभ्‍यां कालेन श्‍याम्‍या सह|
त्रयोदश्‍यां दीप दानात सूर्यज प्रीयतां मम ||
-
धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है. मान्‍यता है कि उनकी पूजा करने से व्‍यक्ति को जीवन के हर भौतिक सुख की प्राप्‍ति होती है. इस दिन भगवान कुबेर की प्रतिमा या फोटो धूप-दीपक दिखाकर पुष्‍प अर्पित करें. फिर दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर सच्‍चे मन से इस मंत्र का उच्‍चारण करें: 
ॐ  श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्‍लीं श्रीं क्‍लीं वित्तेश्वराय नम: 
- धनतेरस के दिन मां लक्ष्‍मी की पूजा का विधान है. इस दिन मां लक्ष्‍मी के छोटे-छोट पद चिन्‍हों को पूरे घर में स्‍थापित करना शुभ माना जाता है. 

धनतेरस के दिन कैसे करें मां लक्ष्‍मी की पूजा?
धनतेरस के दिन प्रदोष काल में मां लक्ष्‍मी की पूजा करनी चाहिए. इस दिन मां लक्ष्‍मी के साथ महालक्ष्‍मी यंत्र की पूजा भी की जाती है. धनतेरस पर इस तरह करें मां लक्ष्‍मी की पूजा: 
- सबसे पहले एक लाल रंग का आसन बिछाएं और इसके बीचों बीच मुट्ठी भर अनाज रखें.
- अनाज के ऊपर स्‍वर्ण, चांदी, तांबे या मिट्टी का कलश रखें. इस कलश में तीन चौथाई पानी भरें और थोड़ा गंगाजल मिलाएं. 
- अब कलश में सुपारी, फूल, सिक्‍का और अक्षत डालें. इसके बाद इसमें आम के पांच पत्ते लगाएं. 
- अब पत्तों के ऊपर धान से भरा हुआ किसी धातु का बर्तन रखें. 
- धान पर हल्‍दी से कमल का फूल बनाएं और उसके ऊपर मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा रखें. साथ ही कुछ सिक्‍के भी रखें.
- कलश के सामने दाहिने ओर दक्षिण पूर्व दिशा में भगवान गणेश की प्रतिमा रखें. 
- अगर आप कारोबारी हैं तो दवात, किताबें और अपने बिजनेस से संबंधित अन्‍य चीजें भी पूजा स्‍थान पर रखें. 
- अब पूजा के लिए इस्‍तेमाल होने वाले पानी को हल्‍दी और कुमकुम अर्पित करें. 
- इसके बाद इस मंत्र का उच्‍चारण करें 
ॐ  श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलिए प्रसीद प्रसीद | 
ॐ  श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मिये नम: ||
-
अब हाथों में पुष्‍प लेकर आंख बंद करें और मां लक्ष्‍मी का ध्‍यान करें. फिर मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा को फूल अर्पित करें. 
- अब एक गहरे बर्तन में मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा रखकर उन्‍हें पंचामृत (दही, दूध, शहद, घी और चीनी का मिश्रण) से स्‍नान कराएं. इसके बाद पानी में सोने का आभूषण या मोती डालकर स्‍नान कराएं. 
- अब प्रतिमा को पोछकर वापस कलश के ऊपर रखे बर्तन में रख दें. आप चाहें तो सिर्फ पंचामृत और पानी छिड़ककर भी स्‍नान करा सकते हैं. 
- अब मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा को चंदन, केसर, इत्र, हल्‍दी, कुमकुम, अबीर और गुलाल अर्पित करें. 
- अब मां की प्रतिमा पर हार चढ़ाएं. साथ ही उन्‍हें बेल पत्र और गेंदे का फूल अर्पित कर धूप जलाएं. 
- अब मिठाई, नारियल, फल, खीले-बताशे अर्पित करें. 
- इसके बाद प्रतिमा के ऊपर धनिया और जीरे के बीज छिड़कें. 
- अब आप घर में जिस स्‍थान पर पैसे और जेवर रखते हैं वहां पूजा करें. 
- इसके बाद माता लक्ष्‍मी की आरती उतारें.

धनतेरस के दिन क्‍यों की जाती है लक्ष्‍मी जी की पूजा?
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया. तब विष्णु जी ने कहा, 'अगर मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो.' तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं. कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा, 'जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो. मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत आना.' विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतूहल जागा, 'आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए.'

लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं. कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे. सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं. आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं. उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप देते हुए बोले, 'मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानी और किसान के खेत में चोरी का अपराध कर बैठी. अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो.' ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए. तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं. 

एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा, 'तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तब तुम जो मांगोगी मिलेगा.' किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया. पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया. लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया. किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए. फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं. 

विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया. तब भगवान ने किसान से कहा, 'इन्हें कौन जाने देता है ,यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं. इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके. इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं. तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है.' किसान हठपूर्वक बोला, 'नहीं! अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा.' 

तब लक्ष्मीजी ने कहा, 'हे किसान! तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो. कल तेरस है. तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना. रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपये भरकर मेरे लिए रखना, मैं उस कलश में निवास करुंगी. किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी.' 

लक्ष्‍मी जी ने आगे कहा, 'इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी.' यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं. अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया. उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया. तभी से हर साल तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी.

धनतेरस के दिन क्‍यों की जाती है यमराज की पूजा? 
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में हेम नाम का एक राजा था, जिसकी कोई संतान नहीं थी. बहुत समय बाद उन्‍हें एक पुत्र की प्राप्‍ति हुई. जब उस बालक की कुंडली बनवाई तब ज्‍योतिष ने कहा कि इसकी शादी के दसवें दिन मृत्‍यु का योग है. यह सुनकर राजा हेम ने पुत्र की शादी कभी न करने का निश्‍चय लिया और उसे एक ऐसे स्‍थान पर भेज दिया जहां कोई भी स्‍त्री न हो. लेकिन नियति को कौन टाल सकता? घने जंगल में राजा के बेटे को एक सुंदर स्‍त्री मिली और दोनों को आपस में प्रेम हो गया. फिर दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया.

भव‍िष्‍यवाणी के अनुसार विवाह के दसवें दिन यमदूत राजा के प्राण लेने पृथ्‍वीलोक आए. जब वे प्राण ले जा रहे थे तब उसकी पत्‍नी के रोने की आवाज सुनकर यमदूत का मन दुखी हो गया. यमदूत जब प्राण लेकर यमराज के पास पहुंचे तो बेहद दुखी थे. यमराज ने कहा कि दुखी होना स्‍वाभाविक है लेकिन कर्तव्‍य के आगे कुछ नहीं होता. ऐसे में यमदूत ने यमराज से पूछा, 'क्‍या इस अकाल मृत्‍यु को रोकने का कोई उपाय है?' तब यमराज ने कहा, 'अगर मनुष्‍य कार्तिक कृष्‍ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन व्‍यक्ति संध्‍याकाल में अपने घर के द्वार पर दक्षिण दिशा में दीपक जलाएगा तो उसके जीवन से अकाल मृत्‍यु का योग टल जाएगा.' तब से धनतेरस के दिन यम पूजा का विधान है.
 

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