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This Article is From Nov 24, 2020

Dev Uthani Ekadashi 2020: कल है देवोत्थान एकादशी और तुलसी विवाह, जानें शुभ मुहुर्त, पूजा विधि और महत्व

Dev Uthani Ekadashi 2020: देवोत्थान एकादशी कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं. दीपावली के बाद आने वाली एकादशी को ही देवोत्थान एकादशी अथवा देवउठान एकादशी या 'प्रबोधिनी एकादशी' कहा जाता है.

Dev Uthani Ekadashi 2020: कल है देवोत्थान एकादशी और तुलसी विवाह, जानें शुभ मुहुर्त, पूजा विधि और महत्व
Dev Uthani Ekadashi 2020: कल है देवोत्थान एकादशी और तुलसी विवाह, जानें शुभ मुहुर्त, पूजा विधि और महत्व

Dev Uthani Ekadashi 2020: देवोत्थान एकादशी कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं. दीपावली के बाद आने वाली एकादशी को ही देवोत्थान एकादशी अथवा देवउठान एकादशी या 'प्रबोधिनी एकादशी' कहा जाता है. आषाढ़, शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि को देव शयन करते हैं और इस कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं. इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है. कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो क्षीरसागर में सोए हुए थे, चार माह उपरान्त जागे थे. विष्णु जी के शयन काल के चार मासों में विवाहादि मांगलिक कार्यों का आयोजन करना निषेध है. हरि के जागने के बाद ही इस एकादशी से सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं.

पौराणिक मान्यता

कहा जाता है कि चातुर्मास के दिनों में एक ही जगह रुकना ज़रूरी है, जैसा कि साधु संन्यासी इन दिनों किसी एक नगर या बस्ती में ठहरकर धर्म प्रचार का काम करते हैं. देवोत्थान एकादशी को यह चातुर्मास पूरा होता है और पौराणिक आख्यान के अनुसार इस दिन देवता भी जाग उठते हैं. माना जाता है कि देवशयनी एकादशी के दिन सभी देवता और उनके अधिपति विष्णु सो जाते हैं. फिर चार माह बाद देवोत्थान एकादशी को जागते हैं. देवताओं का शयन काल मानकर ही इन चार महीनों में कोई विवाह, नया निर्माण या कारोबार आदि बड़ा शुभ कार्य आरंभ नहीं होता. इस प्रतीक को चुनौती देते या उपहास उड़ाते हुए युक्ति और तर्क पर निर्भर रहने वाले लोग कह उठते हैं कि देवता भी कभी सोते हैं क्या श्रद्धालु जनों के मन में भी यह सवाल उठता होगा कि देवता भी क्या सचमुच सोते हैं और उन्हें जगाने के लिए उत्सव आयोजन करने होते हैं पर वे एकादशी के दिन सुबह तड़के ही विष्णु औए उनके सहयोगी देवताओं का पूजन करने के बाद शंख- घंटा घड़ियाल बजाने लगते हैं. पारंपरिक आरती और कीर्तन के साथ वे गाने लगते हैं-

उठो देवा, बैठो देवा, अंगुरिया चटकाओं देवा।‘

देवताओं को जगाने, उन्हें अंगुरिया चटखाने और अंगड़ाई ले कर जाग उठने का आह्रान करने के उपचार में भी संदेश छुपा है. स्वामी नित्यानंद सरस्वती के अनुसार चार महीने तक देवताओं के सोने और इनके जागने पर कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी पर उनके जागने का प्रतीकात्मक है. प्रतीक वर्षा के दिनों में सूर्य की स्थिति और ऋतु प्रभाव बताने, उस प्रभाव से अपना सामंजस्य बिठाने का संदेश देते हैं. वैदिक वांग्मय के अनुसार सूर्य सबसे बड़े देवता हैं. उन्हें जगत् की आत्मा भी कहा गया है. हरि, विष्णु, इंद्र आदि नाम सूर्य के पर्याय हैं. वर्षा काल में अधिकांश समय सूर्य देवता बादलों में छिपे रहते हैं. इसलिए ऋषि ने गाया है कि वर्षा के चार महीनों में हरि सो जाते हैं. फिर जब वर्षा काल समाप्त हो जाता है तो वे जाग उठते हैं या अपने भीतर उन्हें जगाना होता है. बात सिर्फ़ सूर्य या विष्णु के सो जाने और उस अवधि में आहार विहार के मामले में ख़ास सावधानी रखने तक ही सीमित नहीं है. इस अनुशासन का उद्देश्य वर्षा के दिनों में होने वाले प्रकृति परिवर्तनों उनके कारण प्राय: फैलने वाली मौसमी बीमारियों और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ने वाले उसके प्रभाव के कारण अक्सर गड़बड़ाता रहता है. निजी जीवन में स्वास्थ्य संतुलन का ध्यान रखने के साथ ही यह चार माह की अवधि साधु संतों के लिए भी विशेष दायित्वों का तकाजा लेकर आती है. घूम-घूम कर धर्म अध्यात्म की शिक्षा देने लोक कल्याण की गतिविधियों को चलाते रहने वाले साधु संत इन दिनों एक ही जगह पर रुक कर साधना और शिक्षण करते हैं.

जिस जगह वे ठहरते उस जगह माहौल में आध्यात्मिक, प्रेरणाओं की तंरगे व्याप्त रहती थीं. इस दायित्व का स्मरण कराने के लिए चातुर्मास शुरू होते ही कुछ ख़ास संदर्भ भी प्रकट होते लगते हैं. आषाढ़, पूर्णिमा को वेदव्यास की पूजा गुरु के प्रति श्रद्धा समर्पण, श्रावणी नवरात्र जैसे कई उत्सव आयोजनों की शृंखला शुरू हो जाती है जिनका उद्देश्य आध्यात्मिक उत्कर्ष की प्रेरणा देना ही होता था. उल्लेखनीय है प्रारंभ चाहे जिस दिन हो समापन कार्तिक पक्ष की एकादशी के दिन ही होता है. वहीं कार्तिक शुकलपक्ष की एकादशी को देवोत्थानी (देवताओं के जागने की) कहा गया है.

तुलसी विवाह

देवउठनी एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह और पूजन किया जाता है. इस दिन तुलसी माता को महंदी, मौली धागा, फूल, चंदन, सिंदूर, सुहाग के सामान की वस्तुएं, अक्षत, मिष्ठान और पूजन सामग्री आदि भेंट की जाती हैं.

देवउठनी एकादशी पूजा विधि

देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को गन्नों से बनाए गए मंडप के नीचे रखकर पूजा की जाती है. पूजा में मूली, शकरकंद, सिंघाड़ा, आंवला, बेर आदि फलों को चढाया जाता है.

देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त

इस वर्ष देवोत्थान एकादशी व्रत 25 नवंबर, 2020 बुधवार के दिन है. हिंदू पंचांग के अनुसार 25 नवंबर को एकादशी तिथि दोपहर 2 बजकर 42 मिनट से लग जाएगी. वहीं, एकादशी तिथि का समापन 26 नवंबर 2020 को शाम 5 बजकर 10 मिनट पर समाप्त हो जाएगी.

देवउठनी एकादशी को क्या न करें?

-एकादशी पर किसी भी पेड़-पौधों की पत्तियों को नहीं तोड़ना चाहिए.

-एकादशी वाले दिन पर बाल और नाखून नहीं कटवाने चाहिए.

-एकादशी वाले दिन पर संयम और सरल जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए.

-इस दिन कम से कम बोलने की किसी कोशिश करनी चाहिए और भूल से भी किसी को कड़वी बातें नहीं बोलनी चाहिए.

-हिंदू शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए.

-एकादशी वाले दिन पर किसी अन्य के द्वारा दिया गया भोजन नहीं करना चाहिए.

-एकादशी पर मन में किसी के प्रति विकार नहीं उत्पन्न करना चाहिए.

-इस तिथि पर गोभी, पालक, शलजम आदि का सेवन न करें.

-देवउठनी एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए.

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