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This Article is From Nov 27, 2020

Dev Deepawali 2020: कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाते हैं देवों की दीवाली, जानें, देव दीपावली की पूजा विधि, महत्व और कथा

Dev deepawali 2020: कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु पर्व के साथ-साथ देव दीपावली भी मनाई जाती है. इस दिन मंदिरों में भगवानों की प्रतिमा के आगे दीपक जलाए जाते हैं.

Dev Deepawali 2020: कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाते हैं देवों की दीवाली, जानें, देव दीपावली की पूजा विधि, महत्व और कथा
Dev Deepawali 2020: कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाते हैं देवों की दीवाली, जानें, देव दीपावली की पूजा विधि, महत्व और कथा

Dev deepawali 2020: कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन गुरु पर्व (Guru Parv) के साथ-साथ देव दीपावली (Dev Deepawali) भी मनाई जाती है. इस दिन मंदिरों में भगवानों की प्रतिमा के आगे दीपक जलाए जाते हैं. खासकर, उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी के दिन देव दिवाली (Dev Diwali) के लिए भव्य आयोजन किया जाता है. लोग वाराणसी जाकर गंगा में डुबकी लगाते हैं और दीपदान (Deepdan) करते हैं. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन दीया जलाने से घर में यश और कीर्ति आती है. गंगा घाट पर देव दीपावली (Dev Deepawali) के दिन लाखों दीए को जलाए जाते हैं. सिर्फ गंगा किनारे ही नहीं इस दिन बनारस के सभी मंदिर भी दीयों की रोशनी से जगमगा उठते हैं.

Kartik Purnima 2020: 30 नवंबर को है कार्तिक पूर्णिमा, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और व्रत कथा

देव दीपावली कब है?

दिवाली के 15 दिन और देव उठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) के 4 दिन बाद देव दीपावली मनाई जाती है. इस बार देव दिवाली 29 नवंबर को है. देव दिवाली के दिन ही कार्तिक पूर्णिमा और गुरु नानक जयंती मनाई जाती है.

देव दीपावली 29 नवम्बर 2020 रविवार को मनाई जाएगी. चूंकि उदय तिथि सोमवार 30 नवंबर 2020 को है किन्तु रात्रि के विशेष मुहूर्त में मनाए जाने के कारण पूर्णिमा तिथि रविवार 29 नवंबर को शाम में है जबकि 30 नवम्बर को दोपहर बाद पूर्णिमा नहीं है. प्रदोषकाल देव दीपावली मुहूर्त 29-नवम्बर 2020 रविवार को - शाम 5 बजकर 08 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट तक.

देव दीपावली की पूजा विधि
1. इस दिन सुबह-सुबह गंगा स्नान किया जाता है. 
2. भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा की जाती है. 
3. पूजा के बाद सुबह और शाम को मिट्टी के दीपक में घी या तिल का तेल डालकर जलाया जाता है. 
4. जो लोग गंगा स्नान ना कर पाएं को घर पर ही गंगाजल का छिड़काव कर स्नान करें.
5. स्नान करते समय ॐ नमः शिवाय का जप करते जाएं. या फिर नीचे दिए गए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें.

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः 
ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 
उर्वारुकमिव बन्‍धनान् 
मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !! 

6. कार्तिक पूर्णिमा के दिन विष्णु जी की भी पूजा की जाती है. भगवान विष्णु जी की पूजा करते वक्त श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें या फिर भगवान विष्णु के इस मंत्र को पढ़ें.

'नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे।
सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:।।'

देव दिवाली का महत्व
मान्यता है कि देव दीपावली पर दीपदान करना बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन मिट्टी के दीपक जलाने से भगवान विष्णु की खास कृपा मिलती है. घर में धन, यश और कीर्ति आती है. इसीलिए इस दिन लोग विष्णु जी का ध्यान करते हुए मंदिर, पीपल, चौराहे या फिर नदी किनारे बड़ा दिया जलाते हैं. दीप खासकर मंदिरों से जलाए जाते हैं. इस दिन मंदिर दीयों की रोशनी से जगमगा उठता है. दीपदान मिट्टी के दीयों में घी या तिल का तेल डालकर करें. 

देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार है जो उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मनाया जाता है. यह विश्व के सबसे प्राचीन शहर काशी की संस्कृति एवं परम्परा है. यह दीपावली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है. गंगा नदी के किनारे जो रास्ते बने हुए है रविदास घाट से लेकर राजघाट के आखरी तक वहाँ करोड़ो दिये जलाकर गंगा नदी की पुजा की जाती है और गंगा को माँ का सम्मान दिया जाता है. प्राचीन परम्परा और संस्कृति में आधुनिकता का शुरुआत कर काशी ने विश्वस्तर पर एक नये अध्याय का आविष्कार किया था. जिससे यह विश्वविख्यात आयोजन लोगों को आकर्षित करने लगा है. देवताओं के इस उत्सव में परस्पर सहभागी होते हैं- काशी, काशी के घाट, काशी के लोग.

देवताओं का उत्सव देव दीपावली, जिसे काशीवासियों ने सामाजिक सहयोग से महोत्सव में परिवर्तित कर विश्वप्रसिद्ध कर दिया. असंख्य दीपकों और झालरों की रोशनी से रविदास घाट से लेकर आदिकेशव घाट व वरुणा नदी के तट एवं घाटों पर स्थित देवालय, महल, भवन, मठ-आश्रम जगमगा उठते हैं, मानों काशी में पूरी आकाश गंगा ही उतर आयी हों. धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी काशी के ऐतिहासिक घाटों पर कार्तिक पूर्णिमा को माँ गंगा की धारा के समान्तर ही प्रवाहमान होती है. माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं व इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था.  

देव दीपावली की कथा
हिंदू पौराणिक कथाओं में देव दिवाली की एक नहीं बल्कि कई कथाएं प्रचलित हैं.

पहली कथा - त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षक का भगवान शिव के बड़े बेटे कार्तिक ने वध किया था. क्योंकि त्रिपुरासुर अपनी शक्तियों से सभी देवताओं को बार-बार परेशान किया करता था. इससे बचने के लिए सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे और इस समस्या का हल मांगा. इस पर भगवान शिव के बड़े बेटे कार्तिक ने त्रिपुरासुर का वध किया और देवताओं को इस परेशानी से निकाला. इस खुशी में सभी देव-देवता शिव की नगरी काशी पहुंचे और वहां जाकर शिव जी को दीपदान किया. तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाने लगी.

दूसरी कथा - एक और पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार उत्पन्न हुआ था. इस खुशी में भी इस दिन भगवान विष्णु के लिए दीपदान रखते हैं.

तीसरा कथा - मान्यता है कि आषाढ़ की देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) के बाद चार महीनों की निद्रा के बाद देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु नींद से जागते हैं. इसके साथ ही देवउठनी एकादशी के बाद आऩे वाली वाराणसी के दिन चतुर्दशी के दिन भगवान शिव जागते हैं. इस खुशी में भी सभी देवी-देवता धरती पर आकर काशी में दीप जलाते हैं.

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