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This Article is From Mar 27, 2020

Navratri Bhog: ये है मां दुर्गा के नौ रूपों का मनपसंद खाना, जानिए किस दिन लगाएं कौन सा भोग

चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri) में शक्ति की देवी मां दुर्गा के अलग-अलग नौ रूपों को भोग लगाने का विधान है.

Navratri Bhog: ये है मां दुर्गा के नौ रूपों का मनपसंद खाना, जानिए किस दिन लगाएं कौन सा भोग
Chaitra Navratri: दुर्गा के नौ रूपों को अलग-अलग भोग लगाना चाह‍िए
नई दिल्ली:

चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri) के दौरान आदि शक्ति मां दुर्गा (Maa Durga) के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा का विधान है. नवरात्र में भक्‍त दिन भर व्रत रखते हैं और शाम को उनकी आरती उतार उन्‍हें भोग लगाते हैं. आरती के बाद इस भोग को परिवार के सभी सदस्‍यों में बांटा बांटा जाता है. मान्‍यता है कि सच्‍चे मन और भक्ति-भाव से जो कुछ भी अर्पित किया जाता है मां उसको सहर्ष स्‍वीकार कर लेती हैं और अपने भक्‍तों को आशीर्वाद देती हैं. लेकिन फिर भी कुछ चीजें ऐसी हैं जो मां को भोग के रूप में बेहद पसंद हैं. यहां पर हम आपको बता रहे हैं कि मां दुर्गा के किस रूप को भोग में क्‍या पसंद है.
   
मां शैलपुत्री 
मां शैलपुत्री को करुणा और ममता की देवी माना जाता है. शैलपुत्री प्रकृति की भी देवी हैं. उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है. शैलपुत्री का वाहन वृषभ यानी कि बैल है. मान्‍यता है कि शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की बेटी हैं. नवरात्रि में शैलपुत्री पूजन का विशेष महत्‍व है. हिन्‍दू पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार इनके पूजन से मूलाधार चक्र जाग्रत हो जाता है. कहते हैं कि जो भी भक्‍त श्रद्धा भाव से मां की पूजा करता है उसे सुख और सिद्धि की प्राप्‍ति होती है. मान्‍यता है कि इस दिन व्रत करने के बाद माता के चरणों में गाय का शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उपवास करने वाला निरोगी रहता है. 

मां ब्रह्मचारिणी
मान्‍यताआों के अनुसार माता ब्रह्मचारिणी पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं. देवर्षि नारद जी के कहने पर उन्होंने भगवान शंकर की पत्नी बनने के लिए तपस्या की. इन्हें ब्रह्मा जी ने मन चाहा वरदान भी दिया. इसी तपस्या की वजह से इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा. इसके अलावा मान्यता है कि माता के इस रूप की पूजा करने से मन स्थिर रहता है और इच्छाएं पूरी होती हैं.  इस दिन माता ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए उनको शक्‍कर का भोग लगाया जाता है. मान्‍यता है कि मां को शक्‍कर का भोग लगाने से घर के सदस्‍यों की उम्र लंबी होती है.

मां चंद्रघंटा
मां चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण है. मां चंद्रघंटा और इनकी सवारी शेर दोनों का शरीर सोने की तरह चमकीला है. दसों हाथों में कमल और कमडंल के अलावा अस्त-शस्त्र हैं. माथे पर बना आधा चांद इनकी पहचान है. इस अर्ध चांद की वजह के इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है. अपने वाहन सिंह पर सवार मां का यह स्वरुप युद्ध व दुष्टों का नाश करने के लिए तत्पर रहता है. चंद्रघंटा को स्वर की देवी भी कहा जाता है. नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा के लिए खासकर लाल रंग के फूल चढ़ाएं. इसके साथ ही फल में लाल सेब चढ़ाएं. भोग चढ़ाने के दौरान और मंत्र पढ़ते वक्त मंदिर की घंटी जरूर बजाएं.

मां कूष्‍मांडा 
चेहरे पर हल्‍की मुस्‍कान लिए मां कूष्‍मांडा की आठ भुजाएं हैं. इसलिए इन्‍हें अष्‍टभुजा भी कहा जाता है. इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, कलश, चक्र और गदा है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है. देवी के हाथ में जो अमृत कलश है उससे वह अपने भक्‍तों को दीर्घायु और उत्तम स्‍वास्‍थ्‍य का वरदान देती हैं. मां कूष्‍मांडा सिंह की सवारी करती हैं जो धर्म का प्रतीक है. चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए माता कूष्‍मांडा को सभी दुखों को हरने वाली मां कहा जाता है. मान्‍यता है क‍ि श्रद्धा भाव से मां कूष्‍मांडा को जो भी अर्पित किया जाए उसे वो प्रसन्‍नतापूर्वक स्‍वीकार कर लेती हैं. लेकिन मां कूष्‍मांडा को मालपुए का भोग अतिप्रिय है. 

मां स्‍कंदमाता 
भगवान स्कंद यानी कार्तिकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्‍कंदमाता पड़ा. स्‍कंदमाता प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं की सेनापति बनी थीं. इस वजह से पुराणों में कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है. दिन भर व्रत रखने के बाद शाम को माता को केले का भोग लगाया जाता है. मान्‍यता है कि ऐसा करने से शरीर स्वस्थ रहता है. 

मां कात्‍यायनी
पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार महर्षि कात्‍यायन की तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर आदिशक्ति ने उनकी पुत्री के रूप में जन्‍म लिया था. इसलिए उन्‍हें कात्‍यायनी कहा जाता है. कहते हैं कि माता कात्यायनी की उपासना से भक्‍त को अपने आप आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां मिल जाती हैं. साथ ही वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है. नवरात्र के छठे दिन मां कात्‍यायनी को शहद का भोग लगाया जाता है. मान्‍यता है कि शहद का भोग लगाने से रोग, शोक, संताप और भय नष्‍ट हो जाते हैं.

मां कालरात्रि 
शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयंकर है. देवी कालरात्रि का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है. मां कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली होती हैं. इस कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है. नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि को सपमर्पित है. कालरात्रि को गुड़ बहुत पसंद है इसलिए महासप्‍तमी के दिन उन्‍हें इसका भोग लगाना शुभ माना जाता है. मान्‍यता है कि मां को गुड़ का भोग चढ़ाने और ब्राह्मणों को दान करने से वह प्रसन्‍न होती हैं और सभी विपदाओं का नाश करती हैं. 

महागौरी 
महागौरी के सभी आभूषण और वस्‍त्र सफेद रंग के हैं इसलिए उन्‍हें श्‍वेताम्‍बरधरा भी कहा जाता है. नवरात्र के आठवें दिन महागौरी की पूजा की जाती है और मां को नारियल का भोग लगाया जाता है. इस दिन ब्राह्मण को भी नारियल दान में देने का विधान है. मान्‍यता है कि मां को नारियल का भोग लगाने से नि:संतानों की मनोकामना पूरी होती है.

मां सिद्धिदात्री 
पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार भगवान शिव ने सिद्धिदात्री की कृपा से ही अनेकों सिद्धियां प्राप्त की थीं. मां की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था. इसी कारण शिव 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए. मां सिद्धिदात्री का मनपसंद भोग नारियल, खीर, नैवेद्य और पंचामृत हैं. 

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