अक्षय तृतीया के दिन बांके बिहारी के दर्शन का बड़ा महात्म्य है
वृन्दावन:
अच्छे कामों की शुरुआत के लिए अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) का दिन बेहद शुभ माना जाता है. अक्षया यानी अनंत फल देने वाला और तृतीया यानी कि तीसरा दिन. बैसाख महीने की तृतीया को अक्षया तृतीया कहते हैं. मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाए उसका कई गुना फल मिलता है. देश के कई हिस्सों में इसे धूमधाम से मनाया जाता है. इस मौके पर वृन्दावन के मशहूर बांके बिहारी मंदिर की छटा देखते ही बनती है. अक्षय तृतीया के दिन इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है. भक्त अपने आराध्य बांके बिहारी की एक झलक पाने के लिए दूर-दूर से यहां चले आते हैं. इस बार अक्षय तृतीया 18 अप्रैल को है.
अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदते वक्त रखें इन बातों का ख्याल
दरअसल, पूरे साल में सिर्फ अक्षय तृतीया के ही दिन बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं. इस मंदिर में साल भर भगवान के चरण वस्त्रों और फूलों से ढके रहते हैं. मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन बांके बिहारी के चरणों के दर्शन करने से भक्त पर प्रभु की विशेष कृपा बरसती है और उसका मन आनंदित हो जाता है. बांके बिहारी को साक्षात राध-कृष्ण का ही रूप माना जाता है.
अक्षय तृतीया के दिन मल्यागिरी चंदन को केसर के साथ घिसकर बांके बिहारी के अंग में लगाया जाता है. प्रभु इस दिन चरणों में पायल भी धारण करते हैं. इस दिन बांके बिहारी को सत्तू के लड्डू, शरबत, आम रस और ककड़ी का भोग लगाया जाता है. इसी दिन से ठाकुर की पंखा सेवा भी शुरू हो जाती है.
आखिर क्यों है अक्षय तृतीया का दिन हिंदुओं के लिए बेहद खास
श्री बिहारी जी की बांकी छवि के दर्शन अक्षय तृतीया को ही होते हैं. उस दिन शाम के समय चरणों के साथ ही सर्वांग दर्शन भी होते हैं. अक्षय तृतीया के दिन चरणों के दर्शन के पीछे की एक कथा प्रचलित है. इस कथा के मुताबिक एक बार वृन्दावन के मंदिर एक संत कुछ ऐसा भाव गुनगुना रहा था- 'बिहारी जी के चरण कमल में नयन हमारे अटके.' इस भाव को पास में ही खड़ा एक व्यक्ति सुन रहा था. घर लौटते वक्त वह व्यक्ति मग्न होकर गुनगुनाने लगा. लेकिन उससे गलती हो गई और वो उल्टा गाने लगा. वो गा रहा था, 'बिहारी जी के नयन कमल में चरण हमारे अटके.'
जानिए अक्षय तृतीया से जुड़ी मान्यताएं
मान्यता है कि उस व्यक्ति ने भाव इतने मन से गुनगुनाया कि ईश्वर स्वयं उसके सामने प्रकट हो गए. भगवान उससे बोले, 'तुम बड़े निराले भक्त हो. लोगों के नयन तो हमारे चरणों में अटक जाते हैं लेनि तुमने तो हमारे ही नयन अपने चरणों में अटका दिए.'
पहले तो उस व्यक्ति को कुछ समझ नहीं आया. फिर जब बाद में उसे अहसास हुआ तो उसे समझ आया कि भगवान केवल भावों के भूखे हैं और अगर कोई गलती हुई होती तो उसे दर्शन नहीं मिलते. फिर वह व्यक्ति ईश्वर के प्रेम में खूब रोया और उनके दर्शन पाकर धन्य हो गया.
अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदते वक्त रखें इन बातों का ख्याल
दरअसल, पूरे साल में सिर्फ अक्षय तृतीया के ही दिन बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं. इस मंदिर में साल भर भगवान के चरण वस्त्रों और फूलों से ढके रहते हैं. मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन बांके बिहारी के चरणों के दर्शन करने से भक्त पर प्रभु की विशेष कृपा बरसती है और उसका मन आनंदित हो जाता है. बांके बिहारी को साक्षात राध-कृष्ण का ही रूप माना जाता है.
अक्षय तृतीया के दिन मल्यागिरी चंदन को केसर के साथ घिसकर बांके बिहारी के अंग में लगाया जाता है. प्रभु इस दिन चरणों में पायल भी धारण करते हैं. इस दिन बांके बिहारी को सत्तू के लड्डू, शरबत, आम रस और ककड़ी का भोग लगाया जाता है. इसी दिन से ठाकुर की पंखा सेवा भी शुरू हो जाती है.
आखिर क्यों है अक्षय तृतीया का दिन हिंदुओं के लिए बेहद खास
श्री बिहारी जी की बांकी छवि के दर्शन अक्षय तृतीया को ही होते हैं. उस दिन शाम के समय चरणों के साथ ही सर्वांग दर्शन भी होते हैं. अक्षय तृतीया के दिन चरणों के दर्शन के पीछे की एक कथा प्रचलित है. इस कथा के मुताबिक एक बार वृन्दावन के मंदिर एक संत कुछ ऐसा भाव गुनगुना रहा था- 'बिहारी जी के चरण कमल में नयन हमारे अटके.' इस भाव को पास में ही खड़ा एक व्यक्ति सुन रहा था. घर लौटते वक्त वह व्यक्ति मग्न होकर गुनगुनाने लगा. लेकिन उससे गलती हो गई और वो उल्टा गाने लगा. वो गा रहा था, 'बिहारी जी के नयन कमल में चरण हमारे अटके.'
जानिए अक्षय तृतीया से जुड़ी मान्यताएं
मान्यता है कि उस व्यक्ति ने भाव इतने मन से गुनगुनाया कि ईश्वर स्वयं उसके सामने प्रकट हो गए. भगवान उससे बोले, 'तुम बड़े निराले भक्त हो. लोगों के नयन तो हमारे चरणों में अटक जाते हैं लेनि तुमने तो हमारे ही नयन अपने चरणों में अटका दिए.'
पहले तो उस व्यक्ति को कुछ समझ नहीं आया. फिर जब बाद में उसे अहसास हुआ तो उसे समझ आया कि भगवान केवल भावों के भूखे हैं और अगर कोई गलती हुई होती तो उसे दर्शन नहीं मिलते. फिर वह व्यक्ति ईश्वर के प्रेम में खूब रोया और उनके दर्शन पाकर धन्य हो गया.
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