गाजीपुर में कूड़े का पहाड़.
नई दिल्ली:
गुरुवार को दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैनल को सुप्रीम कोर्ट ने जमकर फटकार लगाई और यहां तक कह दिया कि एलजी खुद को सुपरमैन समझते हैं लेकिन कर कुछ नहीं रहे. दिल्ली के उप राज्यपाल पर इतनी तल्ख टिप्पणी पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने की. आखिर क्यों दिल्ली के कूड़े के हालात पर सुप्रीम कोर्ट का सब्र का बांध टूटा? इसको समझने के लिए पूर्वी दिल्ली की ग़ाज़ीपुर लैंडफिल साइट को एक उदाहरण के तौर पर लेते हैं.
पूर्वी दिल्ली की ग़ाज़ीपुर लैंडफिल साइट, जिसमें कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई 60 मीटर पहुंच गई है. यही हाल रहा तो कुछ ही समय मे क़ुतुबमीनार को पीछे छोड़ देगी, जिसकी ऊंचाई 73 मीटर है. यहां कूड़ा डालने की लगभग 25 मीटर ऊंचाई की लिमिट 16 साल पहले 2002 में ख़त्म हो चुकी है. बीते साल सितम्बर में ये कूड़े का पहाड़ भरभराकर गिर पड़ा जिसमें दो लोगों की मौत हो गई. इसके बाद एलजी ने कूड़ा ग़ाज़ीपुर की जगह बाहरी दिल्ली के रानीखेड़ा में डालने का फैसला किया. लेकिन रानीखेड़ा के आसपास के लोगों ने आंदोलन किया तो एलजी को पीछे हटना पड़ा और कूड़ा फिर से ग़ाज़ीपुर में डलना शुरू हुआ.
गाज़ीपुर में कूड़ा डालने की जगह बने इसके लिए वहां से पहले से जमा कूड़ा उठाने की ज़रूरत थी. सितंबर की घटना के तुरंत बाद एलजी ने कहा NHAI नवंबर 2017 से सड़क बनाने के लिए ग़ाज़ीपुर का कूड़ा उठवाना शुरू करेगा लेकिन आज तक एक तिनका नहीं उठा. आखिरकार डीडीए ने पूर्वी दिल्ली का कूड़ा ग़ाज़ीपुर की जगह घोंडा गुजरान और सोनिया विहार में यमुना किनारे डालने के लिए लैंडफिल साइट निर्धारित की, लेकिन दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी का संसदीय क्षेत्र होने के चलते इस पर ब्रेक लग गया.
पूर्वी दिल्ली का सारा कूड़ा ग़ाज़ीपुर लैंडफिल साइट पर आता है जिसकी मात्रा रोज़ाना 2600 टन होती है. जिसमें से 1000 टन का ही निस्तारण हो पाता है (वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में कूड़ा खपाकर बिजली बनती है) जबकि 1600 टन बचा हुआ कूड़ा ग़ाज़ीपुर के पहाड़ की ऊंचाई बढ़ाने में योगदान देता है. जिससे ग़ाज़ीपुर में आज करीब 150 लाख टन कूड़ा जमा हो गया है.
पूर्वी दिल्ली नगर निगम क्लास-4 कर्मचारियों को छोड़ बाकी की तीन महीने से तनख्वाह तक नहीं दे पा रहा है कूड़े के निस्तारण और नई लैंडफिल साइट में ख़र्चा कहां से करेगा. पूर्वी दिल्ली नगर निगम के मेयर बिपिन बिहारी सिंह का कहना है कि 'निगम की आर्थिक हालात बहुत खराब है. दिल्ली की केजरीवाल सरकार को हमारा 10,228 करोड़ का बकाया देना है, चौथे वित्त आयोग के हिसाब से. हम लोग अपने कर्मचारियों की तनख्वाह तक नहीं दे पा रहे हैं.' हालांकि पूर्वी दिल्ली नगर निगम ही नहीं उत्तरी दिल्ली नगर निगम की भी हालत अभी ही नहीं सालों से ऐसी ही है. इसके जवाब में आम आदमी पार्टी नेता आतिशी मारलेना ने कहा कि 'बकाया पूर्वी दिल्ली नगर निगम का हमारी पार्टी की सरकार पर नहीं है बल्कि हमारी दिल्ली सरकार का पूर्वी दिल्ली नगर निगम पर है. हमने उनको पहले से ज़्यादा पैसा देने के साथ-साथ लोन भी दिया है जिसका ब्याज हम नहीं काट रहे क्योंकि हमको निगम की आर्थिक हालत पता है. अगर हमने ब्याज काट लिया तो वो सफ़ाई कर्मचारियों का वेतन तक नहीं देंगे.'
अब जरा सोचकर देखें कि पहले जिस जगह पर कूड़ा डालने की लिमिट खत्म हो गई है. कूड़ा का निस्तारण करने की जगह कूड़े के पहाड़ बन रहे हैं. इस पहाड़ की ऊंचाई क़ुतुब मीनार को टक्कर दे रही है. कूड़ा लोगों का सांस लेना तक दूभर बना रहा है. हादसे में लोग अपनी जान गंवा रहे हैं. 150 लाख टन कूड़ा तो अकेले ग़ाज़ीपुर में जमा हो गया है. पिछले कुछ दिनों में उप राज्यपाल दिल्ली के बॉस तो थे ही साथ ही हमेशा से और आज भी वो दिल्ली की नगर निगमों के प्रभारी हैं, डीडीए के चेयरमैन हैं, दिल्ली पुलिस के बॉस हैं ऐसे में इतने ताकतवर होते हुए भी वे समाधान करके देने की जगह सिर्फ़ दावे ही किए जा रहे हैं तो सुप्रीम कोर्ट का सब्र का बांध तो टूटना ही था.
पूर्वी दिल्ली की ग़ाज़ीपुर लैंडफिल साइट, जिसमें कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई 60 मीटर पहुंच गई है. यही हाल रहा तो कुछ ही समय मे क़ुतुबमीनार को पीछे छोड़ देगी, जिसकी ऊंचाई 73 मीटर है. यहां कूड़ा डालने की लगभग 25 मीटर ऊंचाई की लिमिट 16 साल पहले 2002 में ख़त्म हो चुकी है. बीते साल सितम्बर में ये कूड़े का पहाड़ भरभराकर गिर पड़ा जिसमें दो लोगों की मौत हो गई. इसके बाद एलजी ने कूड़ा ग़ाज़ीपुर की जगह बाहरी दिल्ली के रानीखेड़ा में डालने का फैसला किया. लेकिन रानीखेड़ा के आसपास के लोगों ने आंदोलन किया तो एलजी को पीछे हटना पड़ा और कूड़ा फिर से ग़ाज़ीपुर में डलना शुरू हुआ.
गाज़ीपुर में कूड़ा डालने की जगह बने इसके लिए वहां से पहले से जमा कूड़ा उठाने की ज़रूरत थी. सितंबर की घटना के तुरंत बाद एलजी ने कहा NHAI नवंबर 2017 से सड़क बनाने के लिए ग़ाज़ीपुर का कूड़ा उठवाना शुरू करेगा लेकिन आज तक एक तिनका नहीं उठा. आखिरकार डीडीए ने पूर्वी दिल्ली का कूड़ा ग़ाज़ीपुर की जगह घोंडा गुजरान और सोनिया विहार में यमुना किनारे डालने के लिए लैंडफिल साइट निर्धारित की, लेकिन दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी का संसदीय क्षेत्र होने के चलते इस पर ब्रेक लग गया.
पूर्वी दिल्ली का सारा कूड़ा ग़ाज़ीपुर लैंडफिल साइट पर आता है जिसकी मात्रा रोज़ाना 2600 टन होती है. जिसमें से 1000 टन का ही निस्तारण हो पाता है (वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में कूड़ा खपाकर बिजली बनती है) जबकि 1600 टन बचा हुआ कूड़ा ग़ाज़ीपुर के पहाड़ की ऊंचाई बढ़ाने में योगदान देता है. जिससे ग़ाज़ीपुर में आज करीब 150 लाख टन कूड़ा जमा हो गया है.
पूर्वी दिल्ली नगर निगम क्लास-4 कर्मचारियों को छोड़ बाकी की तीन महीने से तनख्वाह तक नहीं दे पा रहा है कूड़े के निस्तारण और नई लैंडफिल साइट में ख़र्चा कहां से करेगा. पूर्वी दिल्ली नगर निगम के मेयर बिपिन बिहारी सिंह का कहना है कि 'निगम की आर्थिक हालात बहुत खराब है. दिल्ली की केजरीवाल सरकार को हमारा 10,228 करोड़ का बकाया देना है, चौथे वित्त आयोग के हिसाब से. हम लोग अपने कर्मचारियों की तनख्वाह तक नहीं दे पा रहे हैं.' हालांकि पूर्वी दिल्ली नगर निगम ही नहीं उत्तरी दिल्ली नगर निगम की भी हालत अभी ही नहीं सालों से ऐसी ही है. इसके जवाब में आम आदमी पार्टी नेता आतिशी मारलेना ने कहा कि 'बकाया पूर्वी दिल्ली नगर निगम का हमारी पार्टी की सरकार पर नहीं है बल्कि हमारी दिल्ली सरकार का पूर्वी दिल्ली नगर निगम पर है. हमने उनको पहले से ज़्यादा पैसा देने के साथ-साथ लोन भी दिया है जिसका ब्याज हम नहीं काट रहे क्योंकि हमको निगम की आर्थिक हालत पता है. अगर हमने ब्याज काट लिया तो वो सफ़ाई कर्मचारियों का वेतन तक नहीं देंगे.'
अब जरा सोचकर देखें कि पहले जिस जगह पर कूड़ा डालने की लिमिट खत्म हो गई है. कूड़ा का निस्तारण करने की जगह कूड़े के पहाड़ बन रहे हैं. इस पहाड़ की ऊंचाई क़ुतुब मीनार को टक्कर दे रही है. कूड़ा लोगों का सांस लेना तक दूभर बना रहा है. हादसे में लोग अपनी जान गंवा रहे हैं. 150 लाख टन कूड़ा तो अकेले ग़ाज़ीपुर में जमा हो गया है. पिछले कुछ दिनों में उप राज्यपाल दिल्ली के बॉस तो थे ही साथ ही हमेशा से और आज भी वो दिल्ली की नगर निगमों के प्रभारी हैं, डीडीए के चेयरमैन हैं, दिल्ली पुलिस के बॉस हैं ऐसे में इतने ताकतवर होते हुए भी वे समाधान करके देने की जगह सिर्फ़ दावे ही किए जा रहे हैं तो सुप्रीम कोर्ट का सब्र का बांध तो टूटना ही था.
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