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This Article is From Apr 02, 2019

बिहार की सांस्कृतिक विरासत पर केंद्रित 'नाच: लोक उत्सव' का समापन, कलाकारों ने खूब जमाया रंग

हिन्दी रंगभूमि, रज़ा फाउण्डेशन और संगीत नाटक अकादमी के संयुक्त सहयोग से आयोजित 'नाच : लोक उत्सव' 28-29 मार्च को मेघदूत सभागार, रविंद्र भवन, मंडी हाउस में सम्पन्न हुआ.

बिहार की सांस्कृतिक विरासत पर केंद्रित 'नाच: लोक उत्सव' का समापन, कलाकारों ने खूब जमाया रंग
बिहार की लोक प्रदर्शनकारी कलाओं का संगम
नई दिल्ली:

हिन्दी रंगभूमि, रज़ा फाउण्डेशन और संगीत नाटक अकादमी के संयुक्त सहयोग से आयोजित 'नाच : लोक उत्सव' 28-29 मार्च को मेघदूत सभागार, रविंद्र भवन, मंडी हाउस में सम्पन्न हुआ. यह उत्सव बिहार के लोक पारम्परिक और प्रदर्शनकारी कलाओं पर केंद्रित था. बिहार के विभिन्न सांस्कृतिक और भाषाई भूभागों के अनेक लोक प्रदर्शनकारी कलाओं को इस लोक उत्सव में शामिल किया गया. 28 मार्च को  शाम 4 बजे से समारोह का उद्घाटन लोक कला विशेषज्ञ वागीश कुमार झा और सुमन कुमार ने किया. उसके बाद हिन्दी रंगभूमि के कलाकारों ने 'विद्यापति संगीत' की सुमधुर गायन को प्रस्तुत किया जिसे संजय झा और उनके साथियों ने की. दूसरी प्रस्तुति बक्सर बिहार से आए लोक आदिवासी कलाकारों ने 'गोंड़ नाच' की थी जिसमें प्रकृति, परम्परा, भाषा, लौकिक दर्शन के साथ लोक नाट्य यात्रा के विभिन्न अवयवों का विहंगम संगम हुआ. 


'गोंड़ नाच' अपनी शैली और कथ्य की विविध विशेषता के साथ मंचीय हुआ. तीसरी प्रस्तुति बेगूसराय बिहार  की 'बहुरा गोढ़िन' की थी, सच्ची लोक घटना पर आधारित यह प्रस्तुति कथा गायन शैली में हुई जिसे लोक कलाकार लक्ष्मी यादव ने गाया. पहले दिन की अंतिम प्रस्तुति दीप, झंझारपुर,मधुबनी से आए पमरिया कलाकारों (इसराइल पमरिया) द्वारा नाचे गाए सोहर और बधैया से सम्पन्न हुआ. पहले दिन का सफल मंच संचालन रंगकर्मी प्रकाश झा ने की. लोक उत्सव के दूसरे दिन 29 मार्च को सुबह 11 बजे से सेमिनार का आयोजन हुआ. सेमिनार तीन सत्रों में विभाजित था - पहला सत्र - लोक कलाकारों के संग वार्ता - जिसमें लोक कलाकार इसराइल अब्बासी, प्रभु कुमार, जैनेंद्र दोस्त और लक्ष्मी यादव ने शिरकत की. इन्होंने लोक और उसके अवयवों तथा कठिनाइयों पर प्रकाश डाला. 

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दूसरा सत्र - बिहार के लोक कला पर गंभीर कार्य और चिंतन करने वाले विद्वत्जनों के संग बातचीत का था. जिसमें लोक प्रदर्शकारी कला के तमाम बिंदुओं पर सिलसिले बार तरीके से बातचीत हुई. इसमें शामिल होने वाले वक्ताओं में - कैलाश कुमार झा, भुनेश्वर भास्कर, वागीश कुमार, कमलानंद झा और सुमन कुमार थे. संचालन - मुन्ना पांडे ने किया और अध्यक्षता श्री गंगेश गुंजन ने की. सेमिनार के तीसरे सत्र में दर्शक, प्रेक्षक, लोक कला विशेषज्ञ और कलाकारों के बीच हुआ.समारोह के दूसरे दिन शाम 4 बजे से फिर से विभिन्न कलाकारों द्वारा प्रदर्शन आरंभ हुआ. पहला - समस्तीपुर बिहार के गायक कलाकार मुकेश भारती ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार लाल दास कृत 'मिथिला रामायण' के कथा गायन से की जिसमें रामकथा को सीता की नज़रों से देखा गया है. लोक संगम का अद्भुत समायोजन था. 

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दूसरी प्रस्तुति - लक्ष्मी यादव एंड पार्टी की मगध बिहार की मशहूर लोक कथा 'रेशमा चूहड़मल' की कथा गायन से हुआ. चौथी - फिर से 'पमरिया नाच' के कलाकरों द्वारा पमार वंश की कथा को प्रदर्शित किया. पांचवी प्रस्तुति गोंड़ नाच के कलाकरों ने शिव विवाह लोक नाटक का मंचन किया जिसमें मुखौटों का इस्तेमाल बेहद दिलचस्प था. समारोह की अंतिम प्रस्तुति - महान लोक नर्तक, गायक, कलाकार भिखारी ठाकुर के जीवन और सृजन पर केंद्रित 'भिखारीनामा' से हुई. जिसे भिखारी ठाकुर रंगमण्डल छपरा के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया. मंच का सफल संचालन संस्कृतिकर्मी मुन्ना पांडे ने की. 

'नाच : लोक उत्सव' का उद्देश्य लोक और उनकी अपनी विरासत को समझने,  'लोक' कला के महत्व को स्थापित करने तथा इसे संरक्षित - प्रलेखित करने के साथ साथ जनमानस में लोक कलाओं के प्रति जागरूक करने के लिए था. जिससे यथासंभव आम जन लोग अपनी कलाओं के प्रति आकर्षित हों और एक सबल प्रबल रूप से कलाकारों को सम्मान, रोजगार और सामाजिक स्वीकृति प्राप्त हो.

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