धर्मशाला में अपनी बेटी के साथ ठहरी नेत्रहीन महिला के साथ फूल विक्रेता ने यौन उत्पीड़न किया था
नई दिल्ली:
दिल्ली में यौन उत्पीड़न के एक मामले में अदालत ने 63 साल के एक बुजुर्ग को दो साल की कैद और 25 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है. अदालत ने एक नेत्रहीन महिला का यौन उत्पीड़न करने के दोषी एक व्यक्ति को दो वर्ष जेल की सजा सुनाते हुए कहा कि उसने नीच कृत्य किया है और महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाई हैं. अदालत ने दक्षिण दिल्ली के कालकाजी मंदिर में फूल बेचने वाले 63 वर्षीय रामफल पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया और इस रकम को पीड़ित महिला को मुआवजे के रूप में भी देने के निर्देश दिए.
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अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजीव जैन ने कहा कि दोषी ने एक नेत्रहीन महिला का शील भंग करके नीच कृत्य किया है. उन्होंने कहा कि हालांकि यह सच है कि दोषी की उम्र 63 साल है और परिवार को उसकी जरूरत है लेकिन हमें उस पीड़ित महिला के दर्द को भी समझना होगा जिसका शील भंग किया गया और इसे वैश्विक रूप से समाज में नैतिक और शारीरिक रूप से निंदनीय अपराधों में समझा जाता हैं.
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न्यायाधीश ने कहा महिला की गरिमा को ठेस लगी है. यह पीड़िता के शरीर, दिमाग, निजता और पूरी संरचना पर हमला है. अदालत ने दोषी की इस दलील को खारिज कर दिया कि महिला ने उस पर झूठे आरोप लगाये हैं. अदालत ने कहा कि भारतीय समाज में यौन उत्पीड़न एक धब्बा है और एक महिला किसी को ब्लैकमेल करने के लिए कभी भी झूठे आरोप नहीं लगायेगी. यौन हमला पीड़िता में अपमान, घृणा, जबरदस्त शर्मिंदगी, शर्म की भावना, आघात और एक आजीवन भावनात्मक पीड़ा का कारण बनता है इसलिए कोई पीड़ित महिला यौन उत्पीड़न के लिए किसी का गलत तरह से नाम नहीं लेगी.
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अदालत ने दिल्ली कानूनी सेवा प्राधिकरण (दक्षिण दिल्ली) द्वारा पीडिता को पर्याप्त मुआवजा दिए जाने के भी निर्देश दिए. अभियोजन पक्ष के अनुसार यह घटना वर्ष 2014 में हुई थी. धर्मशाला में अपनी बेटी के साथ रहने वाली पीडित महिला का रामफल ने यौन उत्पीड़न किया था. पुलिस ने आरोपी पर भारतीय दंड संहिता की धारा के तहत बलात्कार और यौन उत्पीड़न के लिए आरोप पत्र दायर किया था.
अदालत ने हालांकि बलात्कार के आरोप से उसे बरी कर दिया था क्योंकि सबूतों के अभाव में यह आरोप साबित नहीं हो सका. दोषी इस आधार पर ढिलाई चाहता था कि वह गरीब है, और उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और वह अपने परिवार का भरण-पोषण करता है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजीव जैन ने कहा कि दोषी ने एक नेत्रहीन महिला का शील भंग करके नीच कृत्य किया है. उन्होंने कहा कि हालांकि यह सच है कि दोषी की उम्र 63 साल है और परिवार को उसकी जरूरत है लेकिन हमें उस पीड़ित महिला के दर्द को भी समझना होगा जिसका शील भंग किया गया और इसे वैश्विक रूप से समाज में नैतिक और शारीरिक रूप से निंदनीय अपराधों में समझा जाता हैं.
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न्यायाधीश ने कहा महिला की गरिमा को ठेस लगी है. यह पीड़िता के शरीर, दिमाग, निजता और पूरी संरचना पर हमला है. अदालत ने दोषी की इस दलील को खारिज कर दिया कि महिला ने उस पर झूठे आरोप लगाये हैं. अदालत ने कहा कि भारतीय समाज में यौन उत्पीड़न एक धब्बा है और एक महिला किसी को ब्लैकमेल करने के लिए कभी भी झूठे आरोप नहीं लगायेगी. यौन हमला पीड़िता में अपमान, घृणा, जबरदस्त शर्मिंदगी, शर्म की भावना, आघात और एक आजीवन भावनात्मक पीड़ा का कारण बनता है इसलिए कोई पीड़ित महिला यौन उत्पीड़न के लिए किसी का गलत तरह से नाम नहीं लेगी.
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अदालत ने दिल्ली कानूनी सेवा प्राधिकरण (दक्षिण दिल्ली) द्वारा पीडिता को पर्याप्त मुआवजा दिए जाने के भी निर्देश दिए. अभियोजन पक्ष के अनुसार यह घटना वर्ष 2014 में हुई थी. धर्मशाला में अपनी बेटी के साथ रहने वाली पीडित महिला का रामफल ने यौन उत्पीड़न किया था. पुलिस ने आरोपी पर भारतीय दंड संहिता की धारा के तहत बलात्कार और यौन उत्पीड़न के लिए आरोप पत्र दायर किया था.
अदालत ने हालांकि बलात्कार के आरोप से उसे बरी कर दिया था क्योंकि सबूतों के अभाव में यह आरोप साबित नहीं हो सका. दोषी इस आधार पर ढिलाई चाहता था कि वह गरीब है, और उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और वह अपने परिवार का भरण-पोषण करता है.
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