
दिल्ली सरकार आगामी 4 से 11 जुलाई के बीच राजधानी में कृत्रिम बारिश कराने जा रही है. इसके लिए दिल्ली सरकार आईआईटी कानपुर से संपर्क में है. ये बारिश कितनी कारगर रहेगी और इससे भविष्य में दिल्ली से प्रदूषण को कम करने में कितनी मदद मिलेगी, इन तमाम बातों को लेकर एनडीटीवी ने दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा से खास बातचीत की. इस बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि हमने इसके लिए आईआईटी कानपुर से संपर्क किया है. वो इसे करने जा रहे हैं, कृत्रिम बारिश कराने को लेकर जितनी भी अनुमति की जरूरत है वो हमने संबंधित विभागों से ले लिया है. हमने अपना प्लान भी पेश कर दिया है.
उन्होंने आगे कहा कि हमने डीजीसीए को पूरा प्लान दिया है और बताया है कि कृत्रिम बारिश के पहले चरण में हम किन इलाकों में ये करने जा रहे हैं. हमें कृत्रिम बारिश के लिए आईएमडी से जो तारीख मिली है वो है 4 से 11 जुलाई . हमने डीजीसीए से अनुरोध किया है कि हमें 4 से 11 जुलाई के अलावा एक और समय दिया जाए ताकि अगर किसी वजह से हम ये 4 से 11 जुलाई के बीच ये नहीं कर पाए तो हम दूसरे विंडो में इस करके देखें.
मॉनूसन के समय में कृत्रिम बारिश से कितना फायदा होगा इसे लेकर मंत्री सिरसा ने कहा कि ये समय हमने नहीं बल्कि आईआईटी कानपुर ने तय किया है. वो इसे मॉनिटर कर रहे हैं. ये काम उनका है. उन्होंने ही ये समय चुना है. ये मॉनसून की बात नहीं है ये बात है कृत्रिम बारिश कराने की है. ये कैसे होगा इसके लिए आईआईटी कानपुर के पास अच्छा जवाब होगा.
ये सिर्फ एक ट्रॉयल है
मनजिंदर सिंह सिरसा ने आगे कहा कि ये सिर्फ ट्रॉयल है, इस ट्रॉयल में हम कृत्रिम बारिश के असर को भी देखना चाहते हैं. हम ये भी जानना चाहते है कि ऐसी बारिश का पानी पर कितना और क्या असर पड़ता है. एक बार हमारे पास ये सभी जानकारी होगी तो हम आगे के बारे में कुछ सोच सकें. कृत्रिम बारिश का फायदा हमें उस समय ज्यादा होगा जब दिल्ली में ज्यादा प्रदूषण होता है.
हमें अभी इस ट्रॉयल के लिए तीन करोड़ रुपये देने पड़े हैं लेकिन अगर ट्रायल में हमें कामयाबी मिली तो इसपर आने वाला खर्च आगे कम हो जाएगा. ऐसी कृत्रिम बारिश का किसी की सेहत पर असर पड़ता है? इसे लेकर उन्होंने कहा कि ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है. हम इसके लिए कुछ इलाकों को चुना है.
दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए कृत्रिम बारिश का सहारा लेने के लिए पूर्व सीएम केजरीवाल ने कभी कुछ नहीं किया. सिरसा ने आगे कहा कि वो हमेशा फंड ना होने या केंद्र से फंड ना मिलने की बात करते रहे. लेकिन उनके पास अपने लिए शीशमहल बनाने का फंड था. वो ये करना ही नहीं चाहते थे. वो सिर्फ बाते करते थे. ये ही उनका तरीका था.
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