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This Article is From Nov 17, 2013

टीम और देश के लिए धड़कता रहेगा मेरा दिल : सचिन

मुंबई:

अपने संन्यास के एक दिन बाद रविवार को सचिन तेंदुलकर ने दिल खोलकर दुनिया के सामने रख दिया। सचिन ने कहा कि 24 साल और एक दिन का उनका अंतरराष्ट्रीय करियर एक स्वर्णिम सफर की तरह रहा है और इसे लेकर उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं। सचिन ने कहा कि बेशक अब उनका तन भारतीय टीम के साथ नहीं लेकिन मन और प्रार्थनाओं के साथ वह हमेशा अपन टीम के साथ जुड़े रहेंगे।

मुम्बई के पांच सितारा होटल ट्राइडेंट में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में सचिन ने कहा कि अब वह भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे लेकिन मन से वह हमेशा टीम इंडिया के साथ रहेंगे। सचिन बोले, "शरीर से भले ही मैं देश के नहीं खेलूं लेकिन मन से मैं हमेशा अपनी टीम के साथ हूं और हर समय उसकी जीत के लिए प्रार्थना करता रहूंगा। मैं हमेशा यही सोचूंगा कि भारतीय टीम शीर्ष पर रहे।"

सचिन ने कहा कि वह भी इस बात को लेकर कभी-कभी हैरान हो जाते हैं कि वह किस तरह 24 साल तक देश के लिए खेलते रहे लेकिन एक बात उन्हें इसका जवाब दे देती है कि उनके अंदर इस खेल के लिए असीम जज्बा और कुछ कर दिखाने का हौसला था।

बकौल सचिन, "मेरे लिए 24 साल और एक दिन का सफर स्वर्णिम रहा है। मैंने अपने इस करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं। मैं खुश हूं कि मैंने सही समय पर संन्यास का फैसला किया।"

सचिन ने स्वीकार किया कि 24 साल के क्रिकेट के बाद शरीर उनका साथ छोड़ने लगा था और उसी के द्वारा दिए गए संकेत को आधार बनाकर उन्होंने संन्यास का फैसला किया।

पाकिस्तान के खिलाफ 15 नवम्बर, 1989 को अंतरराष्ट्रीय करियर का आगाज करने वाले सचिन ने 24 साल और एक दिन के बाद शनिवार को संन्यास लिया। सचिन ने 11 साल की उम्र में क्रिकेट शुरू किया था। इस लिहाज से वह अपने जीवन के 40 साल में से 30 साल खेलते रहे।

सचिन ने कहा, "मेरा शरीर दबाव नहीं झेल पा रहा था। उसने मुझे संकेत कर दिया था। मैं पहले की तरह वर्कआउट नहीं कर पा रहा था। मुझे ट्रेनिंग सेशन के दौरान थोड़ा टीवी देखने का मन होता था।

यह मेरे लिए एक तरह का संकेत था। इस बात ने सवाल खड़ा कर दिया था कि मन तो क्रिकेट में अभी भी रमा है लेकिन शरीर साथ नहीं दे रहा है। ऐसे में क्या करना चाहिए। तब मैंने संन्यास की घोषणा की।"

विश्व के महानतम बल्लेबाजों में से एक सचिन कहा कि शनिवार का दिन उनके लिए भावनाओं में बहने का दिन था। सचिन के मुताबिक वह कई मौकों पर भावनाओं में बहे और इसकी सबसे बड़ी वजह यही थी कि आगे वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए नहीं खेल पाएंगे।

सचिन ने कहा कि वह कई मौकों पर भावनात्मक हुए और कुछ मौकों पर उनकी आंख भी भर आई। इसके पीछे सिर्फ यही वजह था कि शनिवार का दिन उनके अंतरराष्ट्रीय करियर का आखिरी दिन था।

सचिन ने कहा, "मेरे साथियों ने जब मुझे गार्ड ऑफ ऑनर दिया, तब मैं भावनात्मक हुआ। मैदान का चक्कर लगाते वक्त जब कोहली और धोनी ने मुझे उठाया, तब मैं भावनात्मक हुआ। इसके बाद पिच से बात करते हुए मैं भावनात्मक हुआ। मेरे जीवन का यह अनमोल पल था। ऐसे में भला भावनाएं हावी कैसे नहीं होतीं।"

वानखेड़े स्टेडियम में अपने 200वें और अंतिम टेस्ट के बाद पिच को झुककर सलाम करने से जुड़े सवाल पर सचिन ने कहा कि दरअसल वह क्रिकेट को उन सभी चीजों के लिए धन्यवाद देना चाहते थे, जो क्रिकेट ने उनको दिया है।

सचिन ने यह भी स्वीकार किया कि अंतिम बार बल्लेबाजी के लिए जाते वक्त उनकी आंखे भर आई थीं लेकिन उन्होंने इस बात अहसास किसी को नहीं होने दिया क्योंकि इससे उनकी कमजोरी उजागर हो सकती थी।

सचिन ने कहा कि क्रिकेट उनके लिए आक्सीजन रहा है। सचिन ने कहा, "क्रिकेट मेरी जिंदगी रही है। मैंने इससे पहले भी कई बार कहा है कि यह मेरे लिए आक्सीजन का काम करता है और आज भी यही कह रहा हूं। मैंने अपनी जिंदगी के 40 साल में से 30 साल क्रिकेट खेला है और जबकि रिटायर हो चुका हूं, यकीन नहीं हो रहा है कि अब मैं देश के लिए नहीं खेल सकूंगा।"

सचिन से एक सवाल यह भी किया गया कि वह अर्जुन को किस तरह के खिलाड़ी के तौर पर देखना चाहते हैं? इसके जवाब में सचिन ने सिर्फ इतना कहा कि अर्जुन को अकेला छोड़ दीजिए और उसे अपने खेल का लुत्फ लेने दीजिए।

सचिन ने कहा कि उनके माता-पिता ने कभी उन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला और न ही उस समय मीडिया ने उन पर किसी तरह का दबाव उनके पिता और लेखक रमेश तेंदुलकर पर डाला था। और अगर डाला होता तो शायद उनके साथ में कलम होती।

इस महान खिलाड़ी ने 'भारत रत्न' को देशवासियों और उन करोड़ों माताओं को समर्पित किया, जो अपने बच्चों की परवरिश करने और उन्हें काबिल बनाने के लिए तमाम बलिदान करते हैं। सचिन ने कहा कि वह ऐसी सभी माताओं को सलाम करते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि उनकी मां ने उन्हें इस काबिल बनाने के लिए कितना बलिदान किया है।

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