मुरली विजय (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
मुरली विजय... तकनीक से लैस, भारतीय टेस्ट क्रिकेट का एक संपूर्ण ओपनर... संपूर्ण इस मायने में कि चाहे तेज गेंदबाजी हो, स्विंग हो या फिर स्पिन सबको पूरी कमांड के साथ खेलने में माहिर. विजय ने केवल घरेलू मैदानों पर ही नहीं, विदेशी जमीन पर भी अपने झंडे गाड़े हैं... लेकिन ऐसा क्या हुआ कि वेस्टइंडीज के खिलाफ सेंट लूसिया में जारी टेस्ट मैच में वह फिट होने के बावजूद प्लेइंग इलेवन का हिस्सा नहीं हैं. इसके पीछे जो तर्क दिए जा रहे हैं, वह हजम होने लायक नहीं हैं... तो फिर क्या कप्तान के 'दोस्ताने' के कारण उन्हें बाहर बिठाया गया!
बल्लेबाजी की समझ रखने वाले किसी बेहतर बल्लेबाज को कैसे बाहर कर सकते हैं
टीम मैनेजमेंट ने मुरली विजय को बाहर करने का अजीब तर्क दिया है...पहली बात तो यह कि युवा ओपनर केएल राहुल ने अपने प्रदर्शन से छाप छोड़ी और कप्तान के चहेते बन गए. होना भी था, क्योंकि उन्होंने खेल ही ऐसा दिखाया है और फिर युवा भी हैं... तो फिर ऐसी स्थिति में ओपनिंग स्लॉट के लिए सीधा मुकाबला कप्तान विराट कोहली के 'दोस्त' शिखर धवन और ओपनर के रूप में पिछले दो साल से भी अधिक समय से टीम में अहम भूमिका निभा रहे मुरली विजय से था...
बल्लेबाजी कोच संजय बांगड़ और कप्तान विराट कोहली ने लगभग एक जैसा ही तर्क दिया है...विजय का स्ट्राइक रेट कमतर है... जाहिर है अगर वह टेस्ट में औसत की बात करते तो धवन पर विजय भारी पड़ते और यही सबसे अहम होता है कि आप कितने के औसत से रन बटोर रहे हैं... फिर एक बल्लेबाजी कोच और बल्लेबाजी में माहिर कप्तान एक बेहतर बल्लेबाज को कैसे बाहर कर सकता है...
टेस्ट क्रिकेट की जानकारी रखने वाले किसी भी व्यक्ति को यह तर्क हजम नहीं होगा...
टेस्ट में तेज गेंदबाजी के सामने तकनीकी दक्षता पहली शर्त होती है, क्योंकि ओपनर के रूप में किसी बल्लेबाज को लंबे स्पेल तक उनका सामना करना होता है. वीरेंद्र सहवाग जैसे कुछ बिरले बल्लेबाज, जो मूलतः ओपनर नहीं थे, को छोड़ दें तो वर्ल्ड क्रिकेट के ज्यादातर बड़े ओपनर तकनीकी रूप से काफी दक्ष रहे हैं और उनकी सफलता में इसका बड़ा रोल रहा है.. भारत से ही लीजिए... सुनील गावस्कर इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं... वेस्टइंडीज के माइकल होल्डिंग, मैल्कम मार्शल, कॉर्टनी वाल्श, ऑस्ट्रेलिया के डेनिस लिली जैसे तेज गेंदबाजों के सामने अगर वह बिना हेलमेट के खेल पाए, तो इसमें उनकी तकनीक का ही रोल रहा... और तो और उन्होंने विंडीज के तेज विकेटों पर उनके ही खिलाफ कई शतक ठोके और 13 मैचों में 1404 रन बनाए थे... 32 में से सबसे अधिक 13 शतक भी तेज आक्रमण वाले विंडीज के खिलाफ ही बनाए... जाहिर है तकनीकी दक्षता से ही यह संभव हुआ...
औसत की कसौटी पर शिखर धवन-मुरली विजय
अब जरा शिखर धवन और मुरली विजय के प्रदर्शनों को टेस्ट में औसत की कसौटी पर कसते हैं. 2013 के बाद से मुरली विजय अपनी बल्लेबाजी शैली में आमूलचूल बदलाव लाए. इससे पहले तक वह आक्रामक बल्लेबाज माने जाते रहे थे और टेस्ट में औसत दर्जे के थे... मुरली ने इसके बाद इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका न्यूजीलैंड जैसी टीमों के खिलाफ भारत में और विदेश में बल्लेबाजी की और लगभग हर जगह शानदार प्रदर्शन किया... चूंकि शिखर धवन ने 2013 में ही टेस्ट में पदार्पण किया था, इसलिए दोनों की तुलना इसी साल के बाद से करते हैं... मुरली विजय ने 2013 के बाद से अब तक 25 टेस्ट खेल हैं और उनमें 2012 रन बनाए हैं, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जहां उन्होंने भारत में शतक लगाए, वहीं उनकी धरती पर भी शतक ठोका. उनके शतक इंग्लैंड और बांग्लादेश की धरती पर भी आए हैं... और 2013 के बाद से उनका औसत रहा है 46.79, जो शिखर धवन से मीलों आगे है. शिखर धवन अधिकांश समय तक आउट ऑफ फॉर्म रहते हैं और बीच में कुछ पारियों में रन बना देते हैं... इसीलिए उनके स्थान को लेकर कई बार बहस होती रही है...धवन ने 2013 से अब तक 22 टेस्ट खेले हैं, जिनमें 1420 रन बनाए हैं, इसमें वर्तमान सेंट लूसिया टेस्ट की पहली पारी का स्कोर (1 रन) भी शामिल है और उनका औसत 40.57 है... तो फिर विजय यहां उन पर काफी भारी हैं और निरंतरता के मामले में भी वह धवन पर भारी हैं...
तकनीकी दक्षता में विजय हैं धवन से मीलों आगे
वास्तव में भारतीय बल्लेबाजों के असली कौशल की परीक्षा तो विदेशी धरती पर ही होती है, तो फिर मुरली और धवन की इस मामले में तुलना करना अपरिहार्य हो जाता है. तेज पिच पर बल्लेबाजी रिकॉर्ड ही सफल ओपनर की पहचान मानी जाती है...ऑस्ट्रेलिया की धरती पर विजय का औसत 60.25 रहा, तो धवन का 27.83, इंग्लैंड में विजय का औसत 40.20 रहा, तो धवन का 20.33, दक्षिण अफ्रीका में मुरली ने 37 के औसत से रन बनाए हैं, तो धवन ने लगभग 19 के औसत से. मतलब साफ है कि ओपनर और एक बल्लेबाज के रूप में धवन तो मुरली से मीलों पीछे हैं...तकनीकी दक्षता की बात करें तो धवन जहां बाउंसर के सामने असहाय नजर आते हैं, वही विजय काफी संयमित और मजबूत दिखते हैं और उन्हें बखूबी खेलते हैं. तभी तो उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के तेज विकेटों पर भी 60 से अधिक के औसत से रन बटोरे हैं, जहां धवन 27 पर अटके हैं.
इन सबको देखते हुए ही जब टीम मैनेजमेंट को शिखर धवन को खिलाना था, तो उन्होंने स्ट्राइक रेट का बेहूदा तर्क दिया, जैसे कि बात टी-20 या वनडे क्रिकेट की हो, जहां स्ट्राइक रेट ही सबसे अधिक मायने रखता है. आप रिकॉर्ड देखेंगे, तो धवन का स्ट्राइक रेट (60 से अधिक) निश्चित रूप से मुरली विजय (47 के आसपास) से अधिक है, लेकिन एक टेस्ट ओपनर के रूप में तकनीकी दक्षता को तवज्जो दी जानी चाहिए और औसत देखा जाना चाहिए... लेकिन जब अपने पसंदीदा खिलाड़ी या यूं कहें 'दोस्त' को मौका देने की बात हो, तो कोई न कोई बहाना तो ढूंढना ही पड़ेगा, सो टीम मैनेजमेंट ने अपना तर्क दे दिया... और मुरली विजय चोट से उबर जाने के बावजूद प्लेइंग इलेवन से बाहर हो गए... वैसे भी कप्तान विराट कोहली जो शिखर को 'गब्बर' कहकर बुलाते हैं, उनका उनसे याराना छिपा नहीं है... विंडीज में पिछले टेस्ट के दौरान ही हमने दोनों को आइसक्रीम साझा करते हुए देखा था, मतलब 'दांत काटे की रोटी' है... फिर तो कुछ भी किया जा सकता है...
बल्लेबाजी की समझ रखने वाले किसी बेहतर बल्लेबाज को कैसे बाहर कर सकते हैं
टीम मैनेजमेंट ने मुरली विजय को बाहर करने का अजीब तर्क दिया है...पहली बात तो यह कि युवा ओपनर केएल राहुल ने अपने प्रदर्शन से छाप छोड़ी और कप्तान के चहेते बन गए. होना भी था, क्योंकि उन्होंने खेल ही ऐसा दिखाया है और फिर युवा भी हैं... तो फिर ऐसी स्थिति में ओपनिंग स्लॉट के लिए सीधा मुकाबला कप्तान विराट कोहली के 'दोस्त' शिखर धवन और ओपनर के रूप में पिछले दो साल से भी अधिक समय से टीम में अहम भूमिका निभा रहे मुरली विजय से था...
बल्लेबाजी कोच संजय बांगड़ और कप्तान विराट कोहली ने लगभग एक जैसा ही तर्क दिया है...विजय का स्ट्राइक रेट कमतर है... जाहिर है अगर वह टेस्ट में औसत की बात करते तो धवन पर विजय भारी पड़ते और यही सबसे अहम होता है कि आप कितने के औसत से रन बटोर रहे हैं... फिर एक बल्लेबाजी कोच और बल्लेबाजी में माहिर कप्तान एक बेहतर बल्लेबाज को कैसे बाहर कर सकता है...
टेस्ट क्रिकेट की जानकारी रखने वाले किसी भी व्यक्ति को यह तर्क हजम नहीं होगा...
टेस्ट में तेज गेंदबाजी के सामने तकनीकी दक्षता पहली शर्त होती है, क्योंकि ओपनर के रूप में किसी बल्लेबाज को लंबे स्पेल तक उनका सामना करना होता है. वीरेंद्र सहवाग जैसे कुछ बिरले बल्लेबाज, जो मूलतः ओपनर नहीं थे, को छोड़ दें तो वर्ल्ड क्रिकेट के ज्यादातर बड़े ओपनर तकनीकी रूप से काफी दक्ष रहे हैं और उनकी सफलता में इसका बड़ा रोल रहा है.. भारत से ही लीजिए... सुनील गावस्कर इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं... वेस्टइंडीज के माइकल होल्डिंग, मैल्कम मार्शल, कॉर्टनी वाल्श, ऑस्ट्रेलिया के डेनिस लिली जैसे तेज गेंदबाजों के सामने अगर वह बिना हेलमेट के खेल पाए, तो इसमें उनकी तकनीक का ही रोल रहा... और तो और उन्होंने विंडीज के तेज विकेटों पर उनके ही खिलाफ कई शतक ठोके और 13 मैचों में 1404 रन बनाए थे... 32 में से सबसे अधिक 13 शतक भी तेज आक्रमण वाले विंडीज के खिलाफ ही बनाए... जाहिर है तकनीकी दक्षता से ही यह संभव हुआ...
औसत की कसौटी पर शिखर धवन-मुरली विजय
अब जरा शिखर धवन और मुरली विजय के प्रदर्शनों को टेस्ट में औसत की कसौटी पर कसते हैं. 2013 के बाद से मुरली विजय अपनी बल्लेबाजी शैली में आमूलचूल बदलाव लाए. इससे पहले तक वह आक्रामक बल्लेबाज माने जाते रहे थे और टेस्ट में औसत दर्जे के थे... मुरली ने इसके बाद इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका न्यूजीलैंड जैसी टीमों के खिलाफ भारत में और विदेश में बल्लेबाजी की और लगभग हर जगह शानदार प्रदर्शन किया... चूंकि शिखर धवन ने 2013 में ही टेस्ट में पदार्पण किया था, इसलिए दोनों की तुलना इसी साल के बाद से करते हैं... मुरली विजय ने 2013 के बाद से अब तक 25 टेस्ट खेल हैं और उनमें 2012 रन बनाए हैं, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जहां उन्होंने भारत में शतक लगाए, वहीं उनकी धरती पर भी शतक ठोका. उनके शतक इंग्लैंड और बांग्लादेश की धरती पर भी आए हैं... और 2013 के बाद से उनका औसत रहा है 46.79, जो शिखर धवन से मीलों आगे है. शिखर धवन अधिकांश समय तक आउट ऑफ फॉर्म रहते हैं और बीच में कुछ पारियों में रन बना देते हैं... इसीलिए उनके स्थान को लेकर कई बार बहस होती रही है...धवन ने 2013 से अब तक 22 टेस्ट खेले हैं, जिनमें 1420 रन बनाए हैं, इसमें वर्तमान सेंट लूसिया टेस्ट की पहली पारी का स्कोर (1 रन) भी शामिल है और उनका औसत 40.57 है... तो फिर विजय यहां उन पर काफी भारी हैं और निरंतरता के मामले में भी वह धवन पर भारी हैं...
तकनीकी दक्षता में विजय हैं धवन से मीलों आगे
वास्तव में भारतीय बल्लेबाजों के असली कौशल की परीक्षा तो विदेशी धरती पर ही होती है, तो फिर मुरली और धवन की इस मामले में तुलना करना अपरिहार्य हो जाता है. तेज पिच पर बल्लेबाजी रिकॉर्ड ही सफल ओपनर की पहचान मानी जाती है...ऑस्ट्रेलिया की धरती पर विजय का औसत 60.25 रहा, तो धवन का 27.83, इंग्लैंड में विजय का औसत 40.20 रहा, तो धवन का 20.33, दक्षिण अफ्रीका में मुरली ने 37 के औसत से रन बनाए हैं, तो धवन ने लगभग 19 के औसत से. मतलब साफ है कि ओपनर और एक बल्लेबाज के रूप में धवन तो मुरली से मीलों पीछे हैं...तकनीकी दक्षता की बात करें तो धवन जहां बाउंसर के सामने असहाय नजर आते हैं, वही विजय काफी संयमित और मजबूत दिखते हैं और उन्हें बखूबी खेलते हैं. तभी तो उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के तेज विकेटों पर भी 60 से अधिक के औसत से रन बटोरे हैं, जहां धवन 27 पर अटके हैं.
इन सबको देखते हुए ही जब टीम मैनेजमेंट को शिखर धवन को खिलाना था, तो उन्होंने स्ट्राइक रेट का बेहूदा तर्क दिया, जैसे कि बात टी-20 या वनडे क्रिकेट की हो, जहां स्ट्राइक रेट ही सबसे अधिक मायने रखता है. आप रिकॉर्ड देखेंगे, तो धवन का स्ट्राइक रेट (60 से अधिक) निश्चित रूप से मुरली विजय (47 के आसपास) से अधिक है, लेकिन एक टेस्ट ओपनर के रूप में तकनीकी दक्षता को तवज्जो दी जानी चाहिए और औसत देखा जाना चाहिए... लेकिन जब अपने पसंदीदा खिलाड़ी या यूं कहें 'दोस्त' को मौका देने की बात हो, तो कोई न कोई बहाना तो ढूंढना ही पड़ेगा, सो टीम मैनेजमेंट ने अपना तर्क दे दिया... और मुरली विजय चोट से उबर जाने के बावजूद प्लेइंग इलेवन से बाहर हो गए... वैसे भी कप्तान विराट कोहली जो शिखर को 'गब्बर' कहकर बुलाते हैं, उनका उनसे याराना छिपा नहीं है... विंडीज में पिछले टेस्ट के दौरान ही हमने दोनों को आइसक्रीम साझा करते हुए देखा था, मतलब 'दांत काटे की रोटी' है... फिर तो कुछ भी किया जा सकता है...
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