श्रीनिवासन पर शिकंजा : क्या हुआ कोर्ट में...

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस टीएस ठाकुर और एफ़एमआई कलीफुल्ला के आते ही सबकी सांसे इस बात को लेकर अटकी रहीं कि एन श्रीनिवासन को लेकर क्या फ़ैसला सुनाया जाएगा। कोर्ट ने आते ही बताया कि पूरी सुनवाई सात सवालों के गिर्द की गई है। कोर्ट ने बिना किसी भूमिका के 130 पन्नों के फ़ैसले को सबसे सामने रख दिया।

कोर्ट ने आते ही साफ़ कर दिया कि राजस्थान रॉयल्स के मालिक राज कुंद्रा और गुरुनाथ मयप्पन टीम ऑफ़िशियल हैं। इसके बाद ये भी कहा कि एन श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पम बेटिंग के दोषी हैं, लेकिन श्रीनिवासन के ख़िलाफ़ सबूत नहीं मिलने की वजह से उन्हें मयप्पन को बचाने के आरोप से बरी कर दिया।


कोर्ट ने एक बड़ा फ़ैसला सुनाते हुए बीसीसीआई के संविधान के 6.2.4 के नियम को खत्म करने के आदेश दिए। कोर्ट ने कहा कि बोर्ड ने 2008 में जो नियम में बदलाव किए थे उसके मुताबिक बीसीसीआई के अधिकारियों को आईपीएल और चैंपियंस लीग में टीम खरीदने की अनुमति थी, इसलिए हितों के टकराव के मामले में श्रीनिवासन को क्लीन चिट नहीं मिली।
 

कोर्ट ने कहा कि श्रीनिवासन को बीसीसीआई या चेन्नई सुपरकिंग्स में एक को चुनना होगा। कहा गया कि श्रीनिवासन टीम खरीद सकें इस वजह से जो नियमों में बदलाव किए गए वो सही नहीं थे। इसके बाद राजस्थान रॉयल्स के मालिक राज कुन्द्रा को बड़ा झटका लगा। राज कुन्द्रा, मयप्पन को बेटिंग का दोषी बताया गया। कोर्ट ने कहा कि पूरे मसले को लेकर वो फ़ैसला नहीं ले सकते न ही बीसीसीआई की कोई कमेटी इस पर फ़ैसला ले सकती है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढा, अशोक भान और आरवी रवीन्द्रन की तीन सदस्यों की समिति का ऐलान किया। ये समिति मयप्पन, कुन्द्रा, चेन्नई और राजस्थान टीमों के लिए सज़ा तय करेगी।

कोर्ट ने यह भी कहा कि बीसीसीआई के चुनाव छह हफ़्ते के अंदर करवाए जाएं और जो भी हितों का टकराव की स्थिति पैदा करता हो उसे चुनाव में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं होगी। इस ऐतिहासिक फ़ैसले के दौरान कोर्ट ने साफ़ कर दिया कि बीसीसीआई एक पब्लिक बॉडी (सार्वजनिक इकाई) है और इसलिए हाई कोर्ट बीसीसीआई के खिलाफ़ फ़ैसला ले सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला देते हुए मयप्पन और राज कुंद्रा को सट्टेबाज़ी का दोषी पाया। चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स के साथ इन दोनों की सजा पर फ़ैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन जजों की एक स्वतंत्र समिति बनाई है जो छह महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट देगी।